Son of Wind : 49 प्रकार की हवाओं की शक्ति है हनुमान जी के पास, हवा या वायु के इन प्रकारों के बारे में जान लीजिए

Types of Air: हवा या वायु के 49 प्रकार होते हैं, जिन्हें मारुत कहा जाता है। ये मरुत वायुरूप में होते हैं और इनके अधिपति पवनपुत्र हनुमान माने जाते हैं।

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49 प्रकार की हवाओं की शक्ति - फोटो : Hiresh Kumar

Types of Air: हवा या वायु के 49 प्रकार होते हैं, जिन्हें मारुत कहा जाता है। ये मरुत वायुरूप में होते हैं और इनके अधिपति पवनपुत्र हनुमान माने जाते हैं। रामायण के सुंदरकांड में इन 49 मरुतों की शक्तियों का वर्णन किया गया है।

तुलसीदास ने रामचरितमानस के  “सुन्दर कांड” में एक महत्वपूर्ण संदर्भ दिया है जिसमें हनुमान जी द्वारा लंका में आग लगाने के प्रसंग का उल्लेख किया गया है। 

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“हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास।

अट्टहास करि गर्जा कपि बढ़ि लाग अकास।।”

इसका अर्थ है कि जब हनुमान जी ने लंका को अग्नि के हवाले किया, तब भगवान की प्रेरणा से 49 प्रकार की हवाएं (मरुत) चलने लगीं। 

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वेदों और पुराणों में वायु की 7 शाखाओं का वर्णन मिलता है।

प्रवह: यह वायु पृथ्वी से लेकर मेघ मंडल तक फैली होती है। यह बादलों को स्थानांतरित करती है और वर्षा के लिए आवश्यक जल को समुद्र से खींचती है।

आवह: यह सूर्यमंडल में स्थित होती है और सूर्य मंडल को घुमाने का कार्य करती है।

उद्वह: चंद्रलोक में प्रतिष्ठित, यह चंद्र मंडल को ध्रुव से जोड़कर घुमाती है।

संवह: नक्षत्र मंडल में स्थित, यह नक्षत्रों को ध्रुव से जोड़कर संचालित करती है।

विवह: ग्रह मंडल में स्थित, यह ग्रहों को गति प्रदान करती है।

परिवह: सप्तर्षी मंडल में स्थित, यह सप्तर्षियों को गति देती है।

परावह: ध्रुव मंडल में स्थित, यह अन्य मंडलों को एक स्थान पर स्थिर रखती है।

इन 7 प्रकार की वायुओं के प्रत्येक के साथ 7-7 गण होते हैं, जिससे कुल मिलाकर 49 मरुत बनते हैं। ये मरुत विभिन्न लोकों में विचरण करते हैं जैसे: ब्रह्मलोक, इन्द्रलोक, अंतरिक्ष, भूलोक की पूर्व दिशा, पश्चिम दिशा, उत्तर दिशा,दक्षिण दिशा

इस प्रकार, “चले मरुत उनचास” का अर्थ होता है कि हनुमान जी के समय पर इन सभी 49 प्रकार की हवाएं सक्रिय थीं, जो उनके कार्य को संपन्न करने में सहायक बनीं।

 हवा (मरुत) वास्तव में केवल एक ही नहीं बल्कि कई प्रकार की होती हैं, जिनका अलग-अलग गुण और व्यवहार होता है।वाल्मीकि रामायण के अनुसार, देवराज इंद्र को कश्यप ऋषि की दूसरी पत्नी दिति से उत्पन्न होने वाले पुत्र से भय था। इस भय के कारण इंद्र ने गर्भ में ही उस संतान को सात टुकड़ों में काट दिया। जब दिति को इस घटना का ज्ञान हुआ, तो उसने इंद्र से कहा कि इन टुकड़ों के बावजूद, मेरे गर्भ के ये टुकड़े आकाश में विचरण करेंगे और मरुत के नाम से जाने जाएंगे।

इन सातों मरुत के साथ-साथ प्रत्येक के सात गण होंगे, जो विभिन्न स्थानों पर विचरण कर सकते हैं। इस प्रकार, कुल मिलाकर 49 मरुत बनते हैं और देव रूप में आकाश में भ्रमण करते हैं।