Literature: उधार की मुस्कान में छिपे आंसुओं का रहस्य, हंसी के पीछे सोया वो पुराना दर्द, पढ़िए छिपाव और पीड़ा की द्वंद्वता , रात के सन्नाटे और चीखों के साए को पढ़ कर दंग रह जाएंगे आप

मंजू देवी की कविता चेतावनी देता है कि चेहरे की मुस्कान उधार की है, होंठ हँसते हैं पर अंतर्मन गहरे घावों से व्यथित है, जिन्हें वह विश्व से छिपाए रखता है।...

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आंसुओं की चमक के पीछे छिपे जख्मों की मुस्कान- फोटो : X

आंसुओं की चमक,छिपे जख्मों की मुस्कान

कुछ शब्द 

मेरे चेहरे पर मत जाइए,

ये होंठों पर फैली मुस्कान,

हम उधार मांगकर लाए हैं,

मेरे अंदर जख्म बहुत गहरे हैं,

जिसे दुनियां से हम छुपाए हैं।

ये जो मेरी आंखों में चमक दिखती है,

वो आंसुओं के नमी से बन पाए हैं,

क्योंकि.....

मेरे इस हंसी के पीछे एक दर्द सोया है,

जो बार-बार उठकर खामोशी में रोया है।

कुछ शब्द भी ऐसे होते हैं,

जो कभी जुवां नहीं आते,

किन्तु हर रात के सन्नाटों की शोर में,

चीखों के साए डराते हैं।

ऐसा भी मत समझिए कि,

हम हर बात से बेखबर रहते हैं,

हम हर दर्द को अमृत,

समझ करके पी लेते हैं,

और दुनियां के समक्ष,

बस मुस्कान ओढ़ लेते हैं।

(पेशे से शिक्षक रहीं मंजू कुमारी की ये कविता मानव हृदय की गहन वेदना को यह रचना बड़ी मार्मिकता से उकेरती है। कवयित्री मंजू  कहती हैं कि चेहरे पर फैली मुस्कान उधार की है, होंठ हँसते हैं किन्तु अंतर्मन गहरे जख्मों से आहत है, जिन्हें वह जगत से छिपाए रखतीं हैं। आँखों की चमक आँसुओं की नमी से उत्पन्न है तथा हँसी के पीछे एक निष्क्रिय दर्द सोया रहता है, जो रात्रि के सन्नाटे में बारंबार जागकर खामोश आँसू बहाता है। कवयित्री मंजू  के अनुसार कुछ शब्द ऐसे भी होते हैं जो जिह्वा पर कभी नहीं आ पाते, परन्तु निशीथ के एकांत में चीख बनकर आत्मा को भयभीत करते हैं। कवयित्री यह भी स्पष्ट करती हैं कि वह दुनियादारी से अनभिज्ञ नहीं; प्रत्येक पीड़ा को अमृत समझकर पी जाती हैं और बाहर केवल मुस्कान का आवरण ओढ़ लेती हैं।यह रचना मानव के बाह्य आनन्द और आंतरिक यातना के द्वन्द्व को अत्यंत संवेदनशीलता से अभिव्यक्त करती है।)