अलौली विधानसभा: चाचा-भतीजे की सीधी जंग, चिराग की राह में सबसे बड़ी बाधा, चुनाव के पहले पशुपति का बड़ा दांव
Bihar Vidhansabha Election: बिहार विधानसभा चुनाव में अलौली विधानसभा सीट पर रोचक मुकाबला देखने को मिलेगा। यहां चिराग के चाचा उनकी मुश्किल बढ़ा सकते हैं। पढ़िए आगे...

Bihar Vidhansabha Election: बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी सरगरमी तेज है। सभी सीटों पर जीत हासिल करने के लिए उम्मीदवार जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं। फिलहाल तो एनडीए और महागठबंधन में सीटों का बंटवारा और प्रत्याशियों के नामों पर मुहर नहीं लगी है लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि कुछ सीटों पर बेहद दिलचस्प मुकाबला होगा। ऐसा ही एक सीट है खगड़िया जिले की अलौली विधानसभा सीट। यहां चाचा-भतीजे आमने-सामने हैं।
चाचा-भतीजे में सीधी टक्कर
दरअसल, पूर्व केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस अपने बेटे यशराज पारस को मैदान में उतार चुके हैं जो लगातार जनसंपर्क और पंचायत चौपालों के जरिए राजनीतिक पकड़ मजबूत करने में जुटे हैं। तो वहीं दूसरी ओर, चिराग पासवान भी अपने उम्मीदवार को उतारने की तैयारी कर रहे हैं। सीट बंटवारे में चिराग पासवान की कोशिश रहेगी कि ये सीट उनके हिस्से में आए और उनका उम्मीदवार अलौली विधानसभा सीट से चुनाव लड़े।
पासवान परिवार की पुश्तैनी सीट
बता दें कि, अलौली सीट पासवान परिवार की परंपरागत राजनीति से जुड़ी रही है। रामविलास पासवान यहां से 1969 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से विधायक बने थे। पशुपति कुमार पारस इस सीट से सात बार विधायक रह चुके हैं। यानी, यहां की जंग महज राजनीतिक नहीं बल्कि पारिवारिक विरासत की भी है। ऐसे में पशुपति पारस और चिराग पासवान दोनों ही इस सीट को अपने पाले में लाना की कोशिश करेंगे।
राजद विधायक के लिए खड़ी हो सकती है मुश्किल
सूत्रों की मानें तो अगर पारस गुट महागठबंधन का हिस्सा बनता है और यशराज पारस को टिकट मिलता है तो वर्तमान राजद विधायक रामवृक्ष सदा के सामने चुनौती खड़ी होगी। रामवृक्ष सदा 2020 में जदयू की साधना देवी को हराकर जीते थे और राजद के फायरब्रांड नेताओं में गिने जाते हैं। ऐसे में अगर उन्हें दरकिनार किया गया तो राजद कार्यकर्ताओं की नाराजगी महागठबंधन के लिए सिरदर्द बन सकती है।
जातीय समीकरण का दबदबा
अलौली विधानसभा में जातीय समीकरण हमेशा से निर्णायक रहे हैं। यहां पासवान, सदा (मुसहर), यादव और कुशवाहा समुदाय को मिलकर करीब 70% मतदाता हैं। यानी, किसी भी उम्मीदवार की जीत-हार इन्हीं समुदायों की एकजुटता पर निर्भर करेगी। यहां से चिराग पासवान के पिता स्व. रामविलास पासवान ने जीत हासिल की थी तो वहीं दूसरी ओर खुद पशुपति पारस इस सीट से 7 बार विधायक रह चुके हैं। ऐसे में चाचा-भतीजा एक दूसरे को कड़ टक्कर दे सकते हैं। मालूम हो कि रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, बाढ़ नियंत्रण और पलायन जैसे मुद्दे यहां की जनता की बड़ी चिंताएं हैं। कई गांव अब भी बिजली, पक्की सड़क और शुद्ध पेयजल जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं।
पिछली तीन चुनावी तस्वीर
2010 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो 2010 में जनता ने नाराज होकर पशुपति पारस को चुनाव में हराया था और इस सीट से जदयू के रामचंद्र सदा विजेता बने थे। वहीं 2015 में राजद के चंदन कुमार ने जबरदस्त जीत दर्ज की और पारस को 24,470 वोटों से हराया। जबकि 2020 में राजद के रामवृक्ष सदा ने जदयू की साधना देवी को 2,773 वोटों से हराया। इस चुनाव में लोजपा(रा) तीसरे स्थान पर रही।