Bihar Vidhansabha Chunav 2025: बागी सभी दलों के लिए बनेंगे सिरदर्द, उलटफेर के खतरे की आशंका, 2020 में इन सीटों पर हुआ था बड़ा खेला

Bihar Vidhansabha Chunav 2025: सबसे बड़ी चिंता अब बागी उम्मीदवारों की है। यदि ये बागी नेता मैदान में उतर गए, तो चुनावी खेल में भारी उलटफेर हो सकता है।

Bihar Vidhansabha Chunav 2025
बागियों की संख्या बढ़ी तो बढ़ेगी सभी दलों के लिए बढ़ती चिंता- फोटो : social Media

Bihar Vidhansabha Chunav 2025:  बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। अक्टूबर के पहले सप्ताह में चुनाव की घोषणा की संभावना जताई जा रही है। चुनाव आयोग की तैयारियाँ चरम पर हैं और राजनीतिक दल भी सीट बंटवारे और उम्मीदवार चयन को लेकर गहरी गहमा-गहमी में हैं। लेकिन सबसे बड़ी चिंता अब बागी उम्मीदवारों की है। यदि ये नेता मैदान में उतर गए, तो चुनावी खेल में भारी उलटफेर हो सकता है।

राजनीतिक पंडितों के अनुसार  पिछले चुनावों की तरह इस बार भी कुछ सीटों पर बागियों की वजह से नतीजे प्रभावित हो सकते हैं। 2020 में कई सीटों पर निर्दलीय और बागी उम्मीदवारों ने जीत-हार का समीकरण पलट दिया था। कुछ सीटों पर बागियों ने 40,000 से 50,000 वोट तक जुटाकर चुनावी खेल को अंतिम क्षण तक उलझा दिया।

बात करें पटना की तो पटना जिले की बाढ़ विधानसभा सीट पर बीजेपी के ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानू पिछले दिनों अपने बयानों को लेकर चर्चा में रहे। जेडीयू के संजय सिंह ने भी बयान दिए। दावेदारों की लंबी सूची में करणवीर सिंह यादव उर्फ लल्लू मुखिया भी शामिल हैं। यदि उन्हें पार्टी से टिकट नहीं मिलता है, तो वह निर्दलीय चुनाव लड़ सकते हैं।

लोकहा से प्रमोद कुमार प्रियदर्शी ने 2015 में बीजेपी से चुनाव लड़ा था। टिकट न मिलने पर 2020 में लोजपा के टिकट पर मैदान में आए और 30,000 वोट हासिल किए। इस वजह से जेडीयू उम्मीदवार को हार का सामना करना पड़ा।

पूर्णिया के कसबा क्षेत्र में प्रदीप कुमार दास ने 2020 में लोजपा के टिकट पर 60,000 वोट लिए और हम पार्टी का उम्मीदवार तीसरे स्थान पर चला गया।

मीनापुर से 2015 में बीजेपी उम्मीदवार रहे अजय कुमार ने पार्टी से टिकट न मिलने पर 2020 में लोजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और 43,000 से अधिक वोट प्राप्त किए। इसके चलते जेडीयू उम्मीदवार 16,000 वोट से हार गया।

सिकटा विधानसभा क्षेत्र में दिलीप वर्मा ने 2020 में निर्दलीय चुनाव लड़ा और दूसरे स्थान पर रहे, जबकि जेडीयू का उम्मीदवार तीसरे स्थान पर रहा। इसी तरह, एकमा, बैकुंठपुर और महाराजगंज जैसी सीटों पर बागियों ने निर्णायक भूमिका निभाई।

गायघाट सीट पर पिछली बार जेडीयू एमएलसी दिनेश सिंह की बेटी कोमल सिंह लोजपा के टिकट पर चुनाव लड़ी थीं। इस बार लोजपा की ओर से दावेदारी हो रही है, जबकि पूर्व विधायक महेश्वर प्रसाद यादव के बेटे भी दावेदारी ठोक रहे हैं। एनडीए के कार्यक्रम में दोनों के बीच विवाद भी हो चुका है।

चकाई विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय सुमित सिंह 2020 में चुनाव जीतकर बाद में जेडीयू का समर्थन दे चुके हैं और सरकार में मंत्री बने। इस बार वह जेडीयू की टिकट पर चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं, जबकि संजय प्रसाद को भरोसा है कि टिकट कटने नहीं पाएगा। ऐसे में यहां भी बगावत तय है।

राजनीतिक दलों में टिकट चयन में पारदर्शिता की कमी बागी होने का सबसे बड़ा कारण मानी जाती है। जो कार्यकर्ता सालों से मेहनत करते हैं, उन्हें टिकट देने के वक्त नज़रअंदाज किया जाता है। इसके अलावा धनबल और बाहरी दबाव भी टिकट बंटवारे में भूमिका निभाते हैं।

छोटी पार्टियों पर अक्सर टिकट बेचने के आरोप लगते हैं। कई पुराने नेता इसी उम्मीद में दूसरे दलों में शामिल होते हैं कि उन्हें टिकट मिलेगा। जब ऐसा नहीं होता, तो वे बागवत कर मैदान में उतर जाते हैं। बाहरी नेताओं को टिकट मिल जाने पर भी कई पुराने नेता बगावत पर उतर आते हैं।

राजनीतिक पंडितों के अनुसार  बिहार की राजनीति में बागियों की भूमिका निश्चित रूप से अहम है। 2025 में भी दो-दो ढाई दर्जन सीटों पर बागियों का खेल देखने को मिल सकता है। डुमरांव, करहगर, आरा, महुआ और दानापुर जैसी सीटों पर कई दावेदार हैं। पटना जिले की कुम्हरार और दीघा विधानसभा सीट पर भी बागी उम्मीदवारों की संभावना है।

2020 के अनुभव से यह स्पष्ट है कि बागियों की वजह से कुछ सीटों पर जीत-हार का अंतर सिर्फ हजारों वोटों का रहा। इस बार भी वही स्थिति बन सकती है। राजनीतिक दल जिताऊ उम्मीदवार पर दांव लगाना चाहते हैं, लेकिन दावेदारों की संख्या अधिक है। ऐसे में टिकट वितरण के बाद ही स्पष्ट होगा कि कितने नेता बागी बनकर चुनावी खेल में उलटफेर करेंगे।

बिहार चुनाव 2025 में बागी उम्मीदवारों का असर सभी दलों के लिए चुनौती होगा। पिछले चुनावों के आंकड़े बताते हैं कि बागी और निर्दलीय उम्मीदवार केवल वोट बंटवाकर ही नहीं बल्कि राजनीतिक समीकरण भी बदल सकते हैं।

टिकट वितरण, पार्टी में पारदर्शिता और स्थानीय नेताओं की महत्वाकांक्षा इस बार भी बिहार के चुनावी माहौल को रोमांचक और जटिल बनाएगी। इसलिए 2025 के विधानसभा चुनाव में बागी उम्मीदवार न केवल वोटों का समीकरण बदलने वाले हैं, बल्कि वे राजनीतिक तनाव और गठबंधन समीकरणों के लिए भी चिंता का विषय बन सकते हैं।