Bihar Vidhansabha chunav 2025: बिहार के पालिटिक्स में आठ पूर्व मुख्यमंत्रियों के घरों से सजा चुनावी दंगल , विरासत की जंग में कौन करेगा सियासत पर कब्ज़ा?
सियासी बयार इस बार सिर्फ दलों के बीच नहीं, बल्कि विरासत बनाम जनादेश की जंग के रूप में बह रही है। बिहार की राजनीति में इस बार आठ पूर्व मुख्यमंत्रियों के परिवार चुनावी मैदान में हैं....
                            Bihar Vidhansabha chunav 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का माहौल पूरे शबाब पर है। सियासी बयार इस बार सिर्फ दलों के बीच नहीं, बल्कि विरासत बनाम जनादेश की जंग के रूप में बह रही है। बिहार की राजनीति में इस बार आठ पूर्व मुख्यमंत्रियों के परिवार चुनावी मैदान में हैं यानी यह मुकाबला सिर्फ सीटों का नहीं, बल्कि सियासी घरानों की साख और असर का भी है।
लालू परिवार की दो राहें - “राघोपुर बनाम महुआ”
सबसे ज़्यादा सुर्खियों में हैं बिहार की सियासत के सबसे ताक़तवर परिवार लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी का घराना। उनके दोनों बेटे तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव आमने-सामने हैं, भले ही अलग-अलग मैदानों में।तेजस्वी यादव महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हैं और एक बार फिर राघोपुर से किस्मत आज़मा रहे हैं, वही सीट जहाँ से कभी लालू और राबड़ी देवी जीत का परचम लहराते रहे।दूसरी तरफ़ तेज प्रताप यादव, जिनकी सियासी राह अब अपने परिवार और पार्टी दोनों से अलग हो चुकी है, महुआ से अपनी नई पार्टी के टिकट पर मैदान में हैं। 2020 में राजद से हसनपुर से चुनाव लड़े थे, मगर इस बार पारिवारिक मतभेदों ने उन्हें बग़ावती बना दिया। दिलचस्प यह कि दोनों भाइयों ने एक-दूसरे के खिलाफ प्रचार किया है, जिससे बिहार की सियासत में घर की जंग, गली की चर्चा बन चुकी है।
जननायक कर्पूरी ठाकुर की विरासत - पोती मैदान में
कर्पूरी ठाकुर, जिन्हें बिहार का जननायक कहा जाता है, अपने जीवनकाल में परिवार को राजनीति से दूर रखते थे। मगर उनके बाद उनका परिवार भी सियासी राह पर है। उनके बेटे केंद्र में मंत्री हैं और अब पोती डॉ. जागृति ठाकुर प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज से मोरवा सीट से चुनाव लड़ रही हैं।
जागृति के मैदान में उतरते ही मोरवा सीट चर्चा में आ गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी हाल ही में कर्पूरी ग्राम जाकर जननायक को श्रद्धांजलि दे चुके हैं, जिससे इस सीट पर सियासी हलचल और बढ़ गई है। जागृति ठाकुर का कहना है, “जननायक की सोच आज भी लोगों के दिलों में ज़िंदा है, और वही हमारा असली वोट बैंक है।”
सतीश प्रसाद सिंह, दारोगा राय और जगन्नाथ मिश्रा की विरासत
पूर्व मुख्यमंत्री सतीश प्रसाद सिंह के बेटे सुशील कुमार इस बार राजद के टिकट पर चेरिया बरियारपुर से चुनाव लड़ रहे हैं। पाँच दिन के मुख्यमंत्री रहे सतीश सिंह की विरासत अब बेटे के कंधों पर है, और यह सीट भी इस बार हॉट सीट मानी जा रही है।
दारोगा प्रसाद राय की पोती डॉ. करिश्मा राय सारण के परसा से राजद की प्रत्याशी हैं। दिलचस्प बात यह है कि करिश्मा, तेज प्रताप यादव की पत्नी ऐश्वर्या राय की चचेरी बहन हैं। यानी राजनीति में रिश्तेदारी और प्रतिद्वंद्विता दोनों की मिली-जुली तस्वीर दिख रही है।
जगन्नाथ मिश्रा, जिन्हें मिथिलांचल का सियासी मसीहा कहा जाता था, उनके बेटे नीतीश मिश्रा फिर से झंझारपुर से बीजेपी टिकट पर मैदान में हैं। 2020 में जीत चुके नीतीश का मानना है कि “काम ही सबसे बड़ा धर्म है, पिता का नाम सम्मान है, सहारा नहीं।” इसलिए झंझारपुर भी इस बार दिलचस्प मुकाबले में है।
केदार पांडे और मांझी परिवार भी रण में
पूर्व मुख्यमंत्री केदार पांडे के पोते शाश्वत केदार कांग्रेस टिकट पर नरकटियागंज से मैदान में हैं। पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ रहे शाश्वत युवाओं के बीच नई उम्मीद के रूप में देखे जा रहे हैं।
वहीं, जीतन राम मांझी के परिवार से उनकी बहू दीपा मांझी (इमामगंज) और समधन ज्योति देवी (बाराचट्टी) भी चुनावी रण में हैं। मांझी परिवार की इन दोनों महिलाओं को उम्मीद है कि मांझी नाम का करिश्मा वोटों में तब्दील होगा।
बिहार की राजनीति में परिवारवाद का मुद्दा नया नहीं है। बीजेपी और जदयू इस पर अक्सर निशाना साधते रहे हैं, मगर सच्चाई यह है कि कोई भी दल इससे अछूता नहीं है। इस बार आठ-आठ पूर्व मुख्यमंत्रियों के घरों के चिराग़ मैदान में हैं कुछ अपनी मेहनत पर, तो कुछ विरासत के सहारे।अब असली इम्तिहान जनता का है क्या बिहार की आवाम विरासत की विरासत को वोट देगी या नई सोच और काम के नाम पर जनादेश देगी?सवाल यही है कि क्या राजनीति अब भी वंश की मोहताज रहेगी, या बिहार की जनता बदल देगी सियासत का नक़्शा?