Bihar Vidhansabha Chunav 2025: बिहार की राजनीति में आधी आबादी की आधी हिस्सेदारी का सच! वोटिंग में आगे, टिकट में पीछे , वंशवाद की छाया में दब गईं महिलाएं

Bihar Vidhansabha Chunav 2025: संसद से पारित ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ भले ही राजनीति में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने का वादा करता है, लेकिन बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में इसकी झलक कहीं दिखाई नहीं देती।

Bihar Vidhansabha Chunav 2025
बिहार की राजनीति में आधी आबादी की आधी हिस्सेदारी का सच!- फोटो : social Media

Bihar Vidhansabha Chunav 2025: संसद से पारित ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ भले ही 2029 से राजनीति में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने का वादा करता है, लेकिन बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में इसकी झलक कहीं दिखाई नहीं देती।राजनीतिक दलों ने महिला भागीदारी पर बड़ी बातें तो कीं, मगर टिकट बंटवारे में उनके इरादे कमजोर पड़ गए।

आंकड़े बताते हैं कि किसी भी बड़े गठबंधन ने महिलाओं को समान भागीदारी देने का साहस नहीं दिखाया है। एनडीए (भाजपा-जदयू-लोजपा-हम) ने कुल 34 महिला उम्मीदवारों को टिकट दिया है।

महागठबंधन (राजद-कांग्रेस-वाम दल) ने 31 महिलाओं को मौका दिया।जन सुराज पार्टी ने 25 महिलाओं को मैदान में उतारा है।

इन आंकड़ों में एकमात्र अपवाद रही जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा)जिसने अपनी 6 सीटों में से 2 पर महिला उम्मीदवार उतारकर 33.33 फीसदी का संतुलन बनाया। वैसे भी बिहार की राजनीति में महिलाओं की एंट्री आज भी वंशानुगत रास्तों से हो रही है।इस बार चुनावी मैदान में उतरीं अधिकांश महिला प्रत्याशी राजनीतिक घरानों की वारिस हैं।

दीपा मांझी — इमामगंज से ‘हम’ सुप्रीमो जीतन राम मांझी की पुत्रवधू।

वीणा देवी — मोकामा से पूर्व सांसद सूरजभान सिंह की पत्नी।

कोमल सिंह — गायघाट से जदयू विधान पार्षद दिनेश सिंह व लोजपा सांसद वीणा देवी की बेटी।

शिवानी शुक्ला — लालगंज से पूर्व विधायक मुन्ना शुक्ला की बेटी।

स्नेह लता कुशवाहा — सासाराम से राज्यसभा सांसद उपेंद्र कुशवाहा की पत्नी।

स्मिता पूर्वे — परिहार से राजद नेता रामचंद्र पूर्वे की पुत्रवधू।

करिश्मा राय — परसा से पूर्व मुख्यमंत्री दरोगा प्रसाद राय की पोती।

जागृति ठाकुर — मोरवा से जननायक कर्पूरी ठाकुर की पोती।

लता सिंह — अस्थावां से पूर्व केंद्रीय मंत्री आर.पी. सिंह की बेटी।

यह सूची बताती है कि “नारी शक्ति” की शुरुआत अब भी घर की राजनीतिक विरासत से होती है, न कि जमीनी संघर्ष से। बिहार में महिला मतदाता अब चुनावी तस्वीर बदलने में निर्णायक भूमिका निभा रहे हैं। 2020 विधानसभा चुनाव में कुल 57 फीसदी  मतदान हुआ था, जिसमें महिलाओं का हिस्सा 59 फीसदी था  यानी पुरुषों से ज़्यादा।इसके बावजूद बिहार विधानसभा में इस समय केवल 29 महिला विधायक हैं।राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बिहार में महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों से अधिक है, पर टिकट वितरण में वे अब भी हाशिए पर हैं। असली सशक्तिकरण तब होगा जब महिलाएं योग्यता के बल पर टिकट पाएंगी, न कि सिर्फ वंश के सहारे।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो  के नवीनतम आंकड़े बताते हैं कि बिहार में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में लगातार वृद्धि दर्ज की गई है।ग्रामीण इलाकों में घरेलू हिंसा, छेड़छाड़ और यौन उत्पीड़न के मामले बढ़े हैं।दल अपने घोषणापत्रों में महिलाओं की सुरक्षा को प्राथमिकता बताते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत अलग कहानी कहती है।

बिहार की राजनीति में महिलाएं मतदाता के रूप में ताक़तवर, पर उम्मीदवार के रूप में कमजोर बनी हुई हैं।नारी शक्ति वंदन अधिनियम के लागू होने से पहले अगर दल अपने दृष्टिकोण नहीं बदलते, तो 2029 में आरक्षण के बावजूद ‘सत्ता में बराबरी’ सिर्फ कागज़ों तक सीमित रह जाएगी।