Bihar Vidhansabha Chunav 2025: मधेपुरा में यादवों का 'महाभारत', कोसी की लहरों पर सवार निखिल मंडल का चंद्रशेखर को नई ललकार? लेकिन सवाल बरकरार, किसके सिर सजेगा ताज, जानिए
Bihar Vidhansabha Chunav 2025: इस विधानसभा चुनाव के एक नए सियासी रण के लिए मधेपुरा फिर तैयार है। इस बार जहां बी.पी. मंडल के पोते निखिल मंडल (जदयू) और मौजूदा विधायक चंद्रशेखर (आरजेडी) के बीच टक्कर की उम्मीद है।

Bihar Vidhansabha Chunav 2025: मधेपुरा, कोसी नदी के किनारे बसा बिहार का वह जिला, जहां हर सियासी लहर यादवों के इर्द-गिर्द घूमती है। यह वही भूमि है, जहां बी.पी. मंडल ने सामाजिक न्याय की अलख जगाई और ओबीसी आरक्षण की सिफारिशों से भारतीय राजनीति की दशा-दिशा बदली। लेकिन 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में मधेपुरा फिर से सुर्खियों में है—न सिर्फ अपनी यादव-प्रधान राजनीति के लिए, बल्कि एक नए सियासी रण के लिए, जहां बी.पी. मंडल के पोते निखिल मंडल (जदयू) और मौजूदा विधायक चंद्रशेखर (आरजेडी) के बीच टक्कर की उम्मीद है। कोसी की बाढ़ जितनी विनाशकारी, उतना ही रोमांचक होने वाला है यह चुनावी दंगल!
यादवों का गढ़, जहां गैर-यादव की हिम्मत टूटी
मधेपुरा का नाम सुनते ही यादव समुदाय की सियासी ताकत की गूंज सुनाई देती है। 1952 मे हुए पहले विधानसभा चुनाव में बीपी मंडल ने जीत का परचम लहराया था। चुनाव1952 से मधेपुरा विधानसभा सीट पर हुए चुनावों में हर बार यादव उम्मीदवार ही जीता। लोकसभा सीट पर भी 1967 और 1968 को छोड़कर हर बार यादव ने ही परचम लहराया। यहां के 32फीसदी मतदाता यादव हैं, जो "रोम पोप का, मधेपुरा गोप का" की कहावत को साकार करते हैं। 17.51 फीसदी अनुसूचित जाति और 11.1फीस,दी मुस्लिम मतदाता भी इस सियासी समीकरण में अहम भूमिका निभाते हैं। ग्रामीण मतदाताओं का दबदबा (88.78फीसदी) और शहरी मतदाताओं की कम हिस्सेदारी (11.23फीसदी) इस क्षेत्र की जमीनी हकीकत को बयान करता है।
लालू-शरद-पप्पू: यादव तिकड़ी का अधूरा सपना
मधेपुरा की राजनीति में लालू प्रसाद यादव, शरद यादव और पप्पू यादव जैसे दिग्गजों ने अपनी छाप छोड़ी, लेकिन कोई भी इस गढ़ को पूरी तरह अपना नहीं बना सका। लालू ने शरद को मधेपुरा की सियासत में लाकर दोस्ती की मिसाल कायम की, लेकिन 1999 में शरद ने लालू को हराकर दोस्ती को दुश्मनी में बदल दिया। पप्पू यादव ने भी बाहुबल और सियासी चातुर्य से अपनी जगह बनाई, लेकिन तीनों दिग्गजों को यहां हार का मुंह देखना पड़ा। यह मधेपुरा की वह खासियत है, जो किसी को भी स्थायी "सुल्तान" नहीं बनने देती।
2025 का रण: निखिल मंडल बनाम चंद्रशेखर
इस बार मधेपुरा में जदयू ने बी.पी. मंडल के पोते निखिल मंडल को उतारने की रणनीति बनाई है। निखिल का सबसे बड़ा हथियार है उनकी दादा की विरासत और चंद्रशेखर के खिलाफ स्थानीय नाराजगी। चंद्रशेखर 2010, 2015 और 2020 में विधायक चुने गए, लेकिन स्थानीय लोग उन पर क्षेत्र की उपेक्षा और "हिंदू शास्त्रों के प्रलाप" में डूबे रहने का आरोप लगाते हैं।
जदयू का दांव: लोकसभा की लहर को विधानसभा में दोहराने की कोशिश
2024 के लोकसभा चुनाव में जदयू ने मधेपुरा की एक विधानसभा क्षेत्र को छोड़ दें तो पांच विधानसभा सीटों पर बढ़त बनाई और डी.सी. यादव ने लगातार दूसरी बार लोकसभा सीट जीती। यह जदयू के लिए सुनहरा मौका है कि वह विधानसभा में भी इस लहर को भुनाए। लेकिन आरजेडी का स्थानीय स्तर पर दबदबा और यादव-मुस्लिम-अनुसूचित जाति मतदाताओं का समर्थन चंद्रशेखर के लिए तुरुप का पत्ता है। अगर निखिल मंडल को टिकट मिलता है, तो यह मुकाबला यादव वोटों के बंटवारे और गैर-यादव मतदाताओं की गोलबंदी पर टिका होगा।
तकनीक पर भरोसा, लेकिन सवाल बरकरार
2025 के विधानसभा चुनाव के लिए चुनाव आयोग ने मधेपुरा सहित बिहार के हर बूथ पर 25फीसदी अतिरिक्त ईवीएम, वीवीपैट और कंट्रोल यूनिट रिजर्व रखने का फैसला किया है। यह कदम तकनीकी गड़बड़ियों से निपटने के लिए उठाया गया है, 2020 में मधेपुरा में 62.13फीसदी मतदान हुआ था, और 2024 के लोकसभा चुनाव तक मतदाता संख्या 3,51,561 हो गई। 2025 में मतदाता सूची का इंतजार है, लेकिन कोसी क्षेत्र की बाढ़ और पलायन जैसे मुद्दे मतदान को प्रभावित कर सकते हैं।
चुनावी मुद्दे: विकास का वादा या जातिगत समीकरण?
मधेपुरा की बदहाल सड़कें, उच्च शिक्षा की कमी, बेरोजगारी और मजदूरों का पलायन स्थानीय लोगों के लिए बड़े मुद्दे हैं। निखिल मंडल मंडल आयोग की विरासत और विकास के वादे के साथ उतर सकते हैं, जबकि चंद्रशेखर सामाजिक न्याय और आरजेडी की सियासी ताकत पर भरोसा करेंगे।
मधेपुरा का चुनावी रण सिर्फ दो उम्मीदवारों की टक्कर नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय, जातिगत गणित और विकास के वादों का संगम है। निखिल मंडल की एंट्री ने चंद्रशेखर की राह मुश्किल कर दी है, लेकिन आरजेडी का मजबूत जनाधार और लालू की सियासी चालबाजी को कम आंकना भूल होगी। कोसी की लहरें इस बार किसके साथ बहेंगी—मंडल की विरासत के साथ निखिल या लालू के भरोसे चंद्रशेखर? यह सवाल मधेपुरा की गलियों से लेकर पटना के सियासी गलियारों तक गूंज रहा है।
क्या निखिल मंडल की विरासत चंद्रशेखर के अनुभव को पछाड़ पाएगी, या मधेपुरा फिर से आरजेडी का गढ़ बनेगा?सबसे बड़ा सवाल है....