Bihar Politics: मधेपुरा का सियासी खेल, यादव बहुल्य इलाके में चंद्रशेखर को निखिल मंडल की चुनौती, 2025 में चुनावी मुकाबला गर्म
सामाजिक न्याय की अलख जगाने वाले बीपी मंडल की धरती मधेपुरा में इस बार राजनीतिक लड़ाई मंडल परिवार और राजद के बीच मानी जा रही है। ...

Bihar Politics: बिहार की राजनीति में एक मशहूर कहावत है “रोम पोप का और मधेपुरा गोप का”.. यहाँ ‘गोप’ यादव समुदाय को दर्शाता है। यानी मधेपुरा विधानसभा और लोकसभा की कुर्सी का मालिक कौन बनेगा, यह इस यादव बहुल्य इलाके के मतदाता तय करते हैं। सामाजिक न्याय की अलख जगाने वाले बीपी मंडल की धरती मधेपुरा में इस बार राजनीतिक लड़ाई मंडल परिवार और राजद के बीच मानी जा रही है। देश में पिछड़ों की राजनीति में बीपी मंडल के योगदान को देखते हुए, उनके परिवार का कोई सदस्य वर्तमान में भारत के विधायी सदन में नहीं है। शरद यादव, पप्पू यादव जैसे दिग्गज इस क्षेत्र के सियासी इतिहास में हमेशा सुर्खियों में रहे हैं। वर्तमान में मधेपुरा विधानसभा सीट पर राजद के प्रो चंद्रशेखर हैं, जो रामचरितमानस पर विवादित बयान देकर चर्चा में आए थे। लेकिन इस बार का राजनीतिक समीकरण कुछ बदला-बदला नजर आ रहा है।
बिहार विधानसभा 2020 के चुनाव में जदयू ने युवा और महत्त्वाकांक्षी नेता निखिल मंडल को उम्मीदवार बनाया। निखिल मंडल उस वक्त जदयू के प्रवक्ता के पद पर थे और विपरीत परिस्थितियों में भी पार्टी की रीढ़ बने रहे। निखिल मंडल सिर्फ पार्टी लाइन का पालन नहीं करते, वे बीपी मंडल के पोते भी हैं, जिन्होंने बिहार की राजनीति में अमिट छाप छोड़ी। राजनीति उनके लिए विरासत है, लेकिन मधेपुरा में अपनी पहचान उन्होंने खुद बनाई।
उनकी पढ़ाई-लिखाई भी उनके व्यक्तित्व का हिस्सा है। दिल्ली यूनिवर्सिटी के किरोड़ीमल कॉलेज से ग्रेजुएशन और लॉ की पढ़ाई कर चुके निखिल मंडल वकील भी हैं। ज्यादातर शिक्षा बाहर हुई, लेकिन उनका दिल हमेशा अपने गांव मुरहो (मधेपुरा) में ही बसा रहा। निखिल कहते हैं, “राजनीति विरासत में मिल सकती है, लेकिन मेहनत और जनसंवाद अपने दम पर करना पड़ता है।”
हालांकि 2020 के चुनाव में निखिल मंडल हार गए, लेकिन उन्होंने 65,070 मतदाताओं का दिल जीत लिया। इतना लोकप्रिय होने के बावजूद हार के पीछे कई कारण थे। मधेपुरा के कुछ वोटरों के अनुसार, हार में कुछ अपने भी शामिल थे। प्रचार में सहयोग की कमी और विरोधी पप्पू यादव तथा कोसी प्रमंडल के नेताओं का मोर्चा निखिल के खिलाफ निर्णायक साबित हुआ। सामने से विरोध और पीछे से विरोध ने उन्हें नुकसान पहुँचाया।
फिर भी निखिल मंडल ने कुल 2,02,000 वोटों में 65,070 वोट जुटाए, यानी लगभग एक चौथाई वोट अकेले उन्होंने हासिल किए। यह तब हुआ जब NDA की सहयोगी लोजपा (चिराग पासवान) भी उनके खिलाफ मैदान में थी। यह आंकड़ा दर्शाता है कि निखिल की लोकप्रियता कितनी गहरी है और आगामी चुनाव में यह समीकरण किस तरह बदल सकता है।
मधेपुरा का यह सियासी खेल स्पष्ट करता है कि यादव बहुल्य इलाके में पार्टी नीतियाँ, स्थानीय समीकरण और व्यक्तिगत लोकप्रियता मिलकर किसी उम्मीदवार की जीत या हार तय करते हैं। निखिल मंडल की मेहनत और जनप्रियता उन्हें आने वाले चुनाव में फिर से मजबूत उम्मीदवार बना सकती है। इस क्षेत्र की राजनीति में उनकी भूमिका अब भी निर्णायक बनी हुई है।
2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में मधेपुरा से बीपी मंडल के पोते निखिल मंडल (जदयू) और मौजूदा विधायक चंद्रशेखर (आरजेडी) के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिल सकता है। जदयू ने इस बार निखिल मंडल को मैदान में उतारकर दादा की विरासत और स्थानीय नाराजगी को अपने पक्ष में करने की रणनीति बनाई है।
स्थानीय लोग चंद्रशेखर पर क्षेत्र की उपेक्षा और “हिंदू शास्त्रों के प्रलाप” में डूबे रहने का आरोप लगाते हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में जदयू ने मधेपुरा की एक विधानसभा सीट छोड़ते हुए बाकी पांच सीटों पर बढ़त बनाई, जबकि डीसी यादव लगातार दूसरी बार लोकसभा सीट जीतने में सफल रहे।राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह जदयू के लिए सुनहरा मौका है कि लोकसभा की इस लहर का फायदा उठाकर विधानसभा में भी अपनी पकड़ मजबूत करे।