Bihar Poltics: कुशेश्वरस्थान की सियासत, एक ही खानदान का राज, अवाम का आरोप-तरक्क़ी के लिए तरस रहे

विधानसभा चुनाव सर पर हैं, हुक़ूमत दावे और वादों के झंडे बुलंद कर रही है, मगर ज़मीनी हक़ीक़त यह है कि कुशेश्वरस्थान आज भी तरक़्क़ी की राह देख रहा है। ...

Bihar Poltics: कुशेश्वरस्थान की सियासत,  एक ही खानदान का राज

Bihar Poltics: दरभंगा ज़िले की कुशेश्वरस्थान विधानसभा सीट बिहार की राजनीति में हमेशा से चर्चा में रही है। विधानसभा चुनाव सर पर हैं, हुक़ूमत दावे और वादों के झंडे बुलंद कर रही है, मगर ज़मीनी हक़ीक़त यह है कि कुशेश्वरस्थान आज भी तरक़्क़ी की राह देख रहा है। अवाम का ग़ुस्सा और मायूसी साफ़ झलकती है जब लोग कहते हैं कि सालों से एक ही खानदान से विधायक चुने जाते हैं, लेकिन इलाक़े की हालत जस की तस बनी हुई है।

यह सीट 2008 के परिसीमन के बाद आरक्षित हुई। पहले यहाँ जदयू के शशि भूषण हजारी विधायक हुआ करते थे। उनके इंतक़ाल के बाद उपचुनाव में अमन भूषण हजारी, यानी उन्हीं के बेटे को टिकट मिला और वो जीतकर विधायक बने। स्थानीय लोगों का कहना है कि “वो जीत गए मगर कभी लौटकर झाँकने तक नहीं आए।”

गाँव-देहात के बुज़ुर्ग रामेश्वर पासवान बताते हैं, “हमें लगा था नया चेहरा नया काम करेगा, लेकिन हालात बदतर हैं। रोड टूटी-फूटी है, पुल-पुलिया अधूरी है, नाले की व्यवस्था ख़स्ता हाल है। चुनाव जीतने के बाद कोई हमारी ख़बर लेने तक नहीं आया।”

युवाओं का कहना है कि हमें ऐसा उम्मीदवार चाहिए जो ज़मीनी मसाइल को समझे, जहाँ सड़क चाहिए वहाँ सड़क बनाए, जहाँ नाला चाहिए वहाँ नाला डाले, और जो बाढ़ पीड़ितों की तकलीफ़ को अपनी तकलीफ़ समझे।

कुशेश्वरस्थान की तक़दीर पर बाढ़ हमेशा भारी पड़ती है। साल का आधा वक़्त पानी में डूबा रहता है, मगर आज तक इस मसले का कोई स्थायी हल नहीं निकला। दूसरी तरफ़, इसी इलाक़े में बाबा कुशेश्वरनाथ मंदिर है, जहाँ नेपाल तक से श्रद्धालु आते हैं। धार्मिक आस्था के बावजूद इलाक़े का इंफ़्रास्ट्रक्चर जीरो पर खड़ा है।

सियासी जानकारों का कहना है कि अबकी बार खानदानी राजनीति पर सवाल उठ रहे हैं। जनता के बीच यह बहस गर्म है कि क्या सिर्फ़ नाम और वंश से टिकट मिलना काफ़ी है या फिर उम्मीदवार को जनता के दुख-दर्द में शामिल होना पड़ेगा।साफ़ है, कुशेश्वरस्थान की अवाम अब महज़ वादों से बहलने वाली नहीं। वो चाहती है बदलाव, चाहती है ऐसा क़ाइद जो सिर्फ़ जीतने के बाद ग़ायब न हो, बल्कि हक़ीक़तन यहाँ की तस्वीर और तक़दीर बदल दे।

रिपोर्ट- वरुण कुमार ठाकुर