Bihar Vidhansabha chunav 2025: एनडीए में सीट बंटवारे की आग, चिराग की महत्वाकांक्षा और नीतीश की नाराज़गी ने बढ़ाई राजनीतिक तनातनी
बिहार की राजनीति में वर्तमान समय एक संवेदनशील और विस्फोटक चरण में प्रवेश कर चुकी है। एनडीए की आंतरिक खींचतान, चिराग की महत्वाकांक्षा और नीतीश की संतुलित, मगर कड़ी रणनीति इस गठबंधन के भविष्य और बिहार की सत्ता पर सीधा असर डालने वाली है।

Bihar Vidhansabha chunav 2025: बिहार में सोमवार से हीं सियासी तापमान चरम पर है। राज्य के चुनावी मौसम में आग इस बार दोनों गठबंधनों में एक साथ लगी है। मगर केंद्र बिंदु अब एनडीए की आंतरिक राजनीति है। खासकर चिराग पासवान की बढ़ती महत्वाकांक्षा ने सीट बंटवारे की राजनीति को विस्फोटक बना दिया है। प्रथम चरण के नामांकन के लिए मात्र तीन दिन शेष हैं, लेकिन गठबंधन की तस्वीर अभी तक धुंधली और अस्पष्ट है। भाजपा और जदयू अपने-अपने प्रत्याशियों को धड़ाधड़ टिकट और चुनाव चिन्ह सौंप रही हैं। यह संकेत साफ कर रहा है कि लोजपा को साधने के बजाय जदयू अपनी चालाकी से यह संदेश देना चाह रही है कि बिहार की सीटें केवल और केवल नीतीश कुमार की शर्तों के अनुसार ही बंटेंगी।
सोनबरसा की सीट लोजपा के खाते में सौंप दी गई है, मगर जदयू ने अपने मंत्री रत्नेश सदा को वहीं से टिकट थमा दिया है। यह कदम यह स्पष्ट कर रहा है कि नीतीश कुमार किसी भी हाल में अपने प्रभाव क्षेत्र में किसी भी तरह की सेंधबाजी बर्दाश्त नहीं करेंगे। यही पैटर्न मोरवा और सरायरंजन में भी नजर आ रहा है। मोरवा में किसी सहनी को टिकट नहीं दिए जाने से और सरायरंजन में सामाजिक समीकरणों के चलते सीट बंटवारे को लेकर नीतीश की नाराज़गी खुलकर सामने आ चुकी है।
नीतीश की यह नाराज़गी केवल व्यक्तिगत मनमुटाव नहीं, बल्कि सम्मान और संतुलन की राजनीति से जुड़ी हुई है। वे अच्छे से जानते हैं कि अगर चिराग की आक्रामक राजनीति बेलगाम हो गई, तो 2020 जैसी पुनरावृत्ति होने की संभावना है। उस समय लोजपा के हमलों ने जदयू को हाशिये पर धकेल दिया था। इस बार चिराग भाजपा के साथ अपने राजनीतिक विस्तार की जमीन तैयार कर रहे हैं, और यही गठबंधन के भीतर बेचैनी और खटास की जड़ है।
राजगीर, सोनबरसा और मोरवा जैसी सीटों पर चल रही खींचतान अब सिर्फ चुनावी झगड़ा नहीं रह गई है; यह अब शासकीय वर्चस्व और प्रभाव क्षेत्र की लड़ाई बन चुकी है। सोमवार को एनडीए की साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस स्थगित होना भी उसी अंदरूनी धुएं का संकेत है। यह स्पष्ट कर रहा है कि चिराग की लंबी दुम अब आग पकड़ चुकी है और उसकी लपटें गठबंधन की एकता को झुलसाने लगी हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि चिराग पासवान की महत्वाकांक्षा और युवा राजनीतिक शैली जदयू के पुराने संतुलन की राजनीति के लिए चुनौती बन चुकी है। भाजपा और जदयू के बीच बढ़ती यह खींचतान यह संदेश दे रही है कि एनडीए की सीटें अब सिर्फ गणितीय बंटवारे का मसला नहीं, बल्कि सत्ता और वर्चस्व के युद्ध का मैदान बन गई हैं।
नीतीश कुमार फिलहाल पूरी तरह होश में हैं। उनकी रणनीति साफ है—समझौता तब तक नहीं, जब तक उनकी शर्तों पर नहीं होता। वे जानते हैं कि यदि चिराग को मनमाफिक विस्तार की इजाज़त दे दी गई, तो जदयू की चुनावी जमीन कमजोर पड़ सकती है। इसीलिए मोरवा और सरायरंजन जैसी सीटों पर उनका कड़ा रुख गठबंधन में स्पष्ट असहमति का प्रतीक बन गया है।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, बिहार के इस चुनावी अध्याय में केवल सीट बंटवारा ही नहीं, बल्कि गठबंधन के भीतर सामरिक और भावनात्मक संतुलन भी दांव पर है। चिराग की आक्रामक चाल और नीतीश का स्थिर और कड़ा रुख इस गठबंधन की राजनीति को भीतर से हिला रहा है। परिणामस्वरूप, एनडीए की आंतरिक राजनीति में ऐसे धुएं और आग के संकेत दिखाई दे रहे हैं, जिनका असर आने वाले दिनों में पूरे चुनावी परिदृश्य पर पड़ेगा।
बहरहाल बिहार की राजनीति में वर्तमान समय एक संवेदनशील और विस्फोटक चरण में प्रवेश कर चुकी है। एनडीए की आंतरिक खींचतान, चिराग की महत्वाकांक्षा और नीतीश की संतुलित, मगर कड़ी रणनीति इस गठबंधन के भविष्य और बिहार की सत्ता पर सीधा असर डालने वाली है।