Bihar Vidhansabha Chunav 2025: सीवान में सियासत का संग्राम, ठंड बढ़ी, वोट का बढ़ गया है तापमान, मंगल बनाम अवध बिहारी, मैदान में कई शह- मात के खिलाड़ी

आठ विधानसभा क्षेत्रों वाला सीवान जिला इस बार राष्ट्रीय और प्रांतीय सियासत के दिलचस्प मुकाबले का केंद्र बना हुआ है। खासकर सीवान और रघुनाथपुर, जहाँ मुकाबला सिर्फ चुनावी नहीं, प्रतिष्ठा का भी है।

Bihar Vidhansabha Chunav 2025
सीवान में सियासत का संग्राम- फोटो : Hiresh Kumar

Bihar Vidhansabha Chunav 2025: देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की कर्मभूमि सीवान जहाँ इस मौसम में धरती की ठंडक भले बढ़ रही हो, मगर सियासी बयार में तपिश अपने चरम पर है। आठ विधानसभा क्षेत्रों वाला यह जिला इस बार राष्ट्रीय और प्रांतीय सियासत के दिलचस्प मुकाबले का केंद्र बना हुआ है। खासकर सीवान और रघुनाथपुर, जहाँ मुकाबला सिर्फ चुनावी नहीं, प्रतिष्ठा का भी है।

सीवान विधानसभा सीट पर मुकाबला एनडीए बनाम महागठबंधन, और उनके इर्द-गिर्द खड़े छोटे दलों की रणनीति से बहुकोणीय हो चुका है। एक तरफ बीजेपी के वरिष्ठ नेता, स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय, जिनके पास दिल्ली से लेकर पटना तक की ताकत पीएम नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता, सीएम नीतीश कुमार का विकास कार्ड और संगठन की मजबूत पकड़। दूसरी तरफ राजद के दिग्गज, छह बार विधायक रह चुके अवध बिहारी चौधरी, जिनके साथ समाजिक समीकरण, राजद का कोर वोटबैंक और माले का जमीनी असर जुड़ा है। मुकाबला सीधा, रोचक और धारदार है हार जीत सिर्फ वोट की नहीं, इज़्ज़त की भी है।

माहौल को और दिलचस्प बना रहे हैं जन सुराज के इंतिखान अहमद और एआईएमआईएम के कैफी समशीर ये वोट काटने से लेकर समीकरण बिगाड़ने तक, चुनाव में तीसरी-चौथी धुरी बनने का दावा कर रहे हैं। यही वजह है कि मैदान सिर्फ दोतरफा नहीं, बल्कि शह-मात के कई चालों से भरा हुआ दिखाई देता है।

इधर रघुनाथपुर में पहली बार किस्मत आजमा रहे राजद के ओसामा और बीजेपी के विकास कुमार सिंह उर्फ जीशु सिंह दोनों मैदान में नए, मगर दांव बड़े। ओसामा की पहचान उनके नाम से पहले उनके पिता पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन से जुड़ जाती है, और यह पहचान कुछ लोगों के लिए समर्थन है तो कुछ के लिए सवाल। यहां दो तरफा लड़ाई है, औरतों ने मन बना लिया है, अब पुरुष बदलें या न बदलें।

विकास के मुद्दे भी बड़े हैं शहर में घुटन बन चुकी ट्रैफिक की समस्या, सिसवन रेलवे फाटक पर ओवरब्रिज की कमी, बाईपास का इंतज़ार, नगर परिषद की नाकामी, कचरे की बदहाली, और शहर के गले से गुजरती दाहा नदी की उपेक्षा ये सब चुनावी मंच पर बार-बार उठाए जा रहे हैं।

सीवान का सच साफ है यहां वोट सिर्फ झंडे देखकर नहीं पड़ता, लोग मुद्दे भी गिनते हैं और काम भी। हवा हर ओर चल रही है, पर हवा की रफ्तार किस ओर मुड़ेगी, यह कहना अभी जल्दबाज़ी होगी। इतना तय संग्राम घमासान है, फैसला जनता की अदालत में।