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क्या महावीर मन्दिर में बिकनेवाले 'नैवेद्यम' में भी है मिलावट? किशोर कुणाल ने बताई सच्चाई, तिरुपति प्रसादम में फ़ीस ऑयल और चर्बी पर खड़ा हुआ है बवाल

क्या महावीर मन्दिर में बिकनेवाले 'नैवेद्यम' में भी है मिलावट? किशोर कुणाल ने बताई सच्चाई, तिरुपति प्रसादम में फ़ीस ऑयल और चर्बी पर खड़ा हुआ है बवाल

PATNA : आंध्र प्रदेश के प्रसिद्ध तिरुपति मंदिर (Tirupati Temple) में प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाने वाला लड्डू, इन दिनों राजनीतिक विवाद का केंद्र बना हुआ है। गुजरात की एक प्रयोगशाला ने लड्डू को बनाने में घी के साथ पशु की चर्बी और फिश ऑयल का इस्तेमाल किए जाने का दावा किया है। इस बीच पटना जंक्शन स्थित महावीर मंदिर में बिकने वाले नैवेद्यम को लेकर भी संशय की स्थति बनी थी। जिसे तिरुपति से आये कारीगर ही बनाते हैं। 

इस मामले को लेकर महावीर मंदिर की और से कहा गया है की मन्दिर का मुख्य प्रसाद नैवेद्यम गाय के शुद्ध घी से तैयार किया जाता है। कर्नाटक सरकार की इकाई कर्नाटक मिल्क फेडरेशन लिमिटेड के नंदिनी घी में इसे बनाया जाता है। महावीर मन्दिर के नैवेद्यम को शुद्धता और स्वच्छता की कसौटी पर खरा उतरने के बाद भारत सरकार का मानक 'भोग' सर्टिफिकेट भी मिला हुआ है। महावीर मन्दिर न्यास के सचिव आचार्य किशोर कुणाल ने बताया कि नैवेद्यम की गुणवत्ता की हर तीन महीने पर लैब से जांच करायी जाती है। इतना ही नहीं कर्नाटक मिल्क फेडरेशन के नंदिनी घी की हर खेप की गुणवत्ता रिपोर्ट प्राप्त कर ही घी लिया जाता है। आचार्य किशोर कुणाल ने बताया कि बाजार में शुद्ध घी के नाम पर कई ब्रांड उपलब्ध हैं। लेकिन गाय के दूध से तैयार होने और एकदम शुद्ध होने के कारण कर्नाटक मिल्क फेडरेशन के नंदिनी घी का ही इस्तेमाल किया जा रहा है। अभी औसतन सवा लाख किलो प्रति माह नैवेद्यम की खपत हो रही है। इसके लिए हरेक महीने लगभग 15 हजार किलो शुद्ध घी मंगाया जा रहा है। 

आचार्य किशोर कुणाल ने बताया कि प्रत्येक महीने दो खेप में लगभग 94 लाख रुपये का भुगतान शुद्ध घी की खरीद के लिए कर्नाटक मिल्क फेडरेशन लिमिटेड को किया जा रहा है। इस साल फरवरी महीने से अब तक 8 करोड़ रुपये से अधिक राशि का भुगतान कर्नाटक मिल्क फेडरेशन को गाय के शुद्ध घी की खरीद के मद में किया गया है। नैवेद्यम को तैयार करने में चना दाल का बेसन, गाय का शुद्ध घी, काजू, किशमिश और इलाइची का इस्तेमाल किया जाता है। महावीर मन्दिर के पाणिनी परिसर में पूरी सफाई के साथ पहले चना दाल से बेसन तैयार किया जाता है। फिर शुद्ध घी में पकाकर बेसन की बुंदी तैयार की जाती है। उसमें काजू-किशमिश और इलाइची को निश्चित अनुपात में मिलाकर नैवेद्यम तैयार किया जाता है। पूरी प्रक्रिया मशीन से संचालित की जाती है। इसमें हाथों का इस्तेमाल सीधे नहीं किया जाता। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि तिरुपति के लगभग सवा सौ दक्ष कारीगर ब्रह्म मुहूर्त में स्नान और पूजा पाठ करने के बाद पूरी स्वच्छता से नैवेद्यम तैयार करने में जुटते हैं। 

आचार्य किशोर कुणाल ने बताया कि प्रत्येक तीन महीने पर नैवेद्यम को दिल्ली के लैब में भेजकर जांच करायी जाती है। साथ ही नैवेद्यम बनाने के दौरान इस्तेमाल किए जानेवाले पानी की भी लैब में जांच होती है। महावीर मन्दिर न्यास के सचिव आचार्य किशोर कुणाल ने बताया कि महावीर मन्दिर में वर्ष 1992 में नैवेद्यम की शुरुआत हुई थी। अपनी शुद्धता, पवित्रता, गुणवत्ता और स्वाद के कारण आज यह भक्तों को सबसे अधिक पसंद है। नैवेद्यम की लगातार बढ़ती मांग इसका स्पष्ट प्रमाण है। आचार्य किशोर कुणाल ने महावीर मन्दिर के भक्तों को आश्वस्त किया है कि नैवेद्यम की गुणवत्ता हमेशा बरकरार रहेगी। नैवेद्यम की शुद्धता और पवित्रता को महावीर मन्दिर हमेशा बरकरार रखेगा। आचार्य किशोर कुणाल ने बताया कि नैवेद्यम की बिक्री से प्राप्त आय से परोपकार के कार्य किए जा रहे हैं। नैवेद्यम की आय से महावीर कैंसर संस्थान समेत सात अस्पतालों में गरीब मरीजों की सेवा की जाती है। सभी महावीर अस्पतालों में भर्ती मरीजों को तीनों पहर का भोजन निःशुल्क दिया जाता है। गरीब मरीजों को इलाज के बिल में छुट दी जाती है। वर्तमान वित्तीय वर्ष में महावीर मन्दिर के अस्पतालों में मरीजों को बिल में छूट और निःशुल्क भोजन आदि मद में 22.5 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।

वंदना शर्मा की रिपोर्ट

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