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शुभ कार्य में 3 का आंकड़ा क्यों है अशुभ? जानिए दादी-नानी की परंपराओं का राज

दादी-नानी के अनुसार शुभ काम में 3 लोगों का जाना अशुभ माना जाता है। धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं के आधार पर इस परंपरा के कारणों को जानें और इस विश्वास के पीछे की कहानी समझें।

तीन का आंकड़ा अशुभ

भारत की संस्कृति और परंपराएं विविध और गहरी हैं। दादी-नानी की कहानियां और उनकी बातें न सिर्फ मनोरंजन के लिए होती थीं बल्कि इनमें जीवन की गहरी सीख छिपी होती है। ऐसी ही एक परंपरा है शुभ काम में तीन लोगों का न जाना। इस प्रथा के पीछे कई धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएं छिपी हुई हैं। आइए जानते हैं इस परंपरा के कारण।


‘तीन तिगड़ा काम बिगड़ा’ का अर्थ

हम सबने यह कहावत जरूर सुनी होगी – "तीन तिगड़ा, काम बिगड़ा।" इसका अर्थ है कि जहां तीन लोग किसी काम में शामिल होते हैं, वहां बाधा उत्पन्न होने की संभावना बढ़ जाती है। इस कहावत को शुभ कार्यों में लागू करते हुए दादी-नानी मानती थीं कि शुभ काम के लिए तीन लोगों का घर से जाना अशुभ होता है।


धार्मिक मान्यताएं और 3 का आंकड़ा

धार्मिक दृष्टि से देखा जाए तो 3 का अंक सृष्टि के त्रिदेव – ब्रह्मा (सृजनकर्ता), विष्णु (पालनकर्ता), और महेश (संहारकर्ता) का प्रतीक है। इसके अलावा, त्रिदेवियां – सरस्वती (ज्ञान), लक्ष्मी (धन), और पार्वती (शक्ति) – भी सृष्टि के संतुलन को बनाए रखती हैं। हालांकि, शुभ कामों में तीन का आंकड़ा अशुभ माना जाता है। इसका कारण यह है कि जब तीन लोग किसी कार्य में जाते हैं, तो यह "अपूर्णता" या "अनिश्चितता" का संकेत देता है। माना जाता है कि तीन की उपस्थिति से ऊर्जा का संतुलन बिगड़ सकता है।


परंपराओं में तीन का महत्व

भोजन में तीन रोटी का परोसना:

कहा जाता है कि भोजन की थाली में तीन रोटियां परोसना अशुभ है। इसका संबंध संतुलन और पूर्णता से है, जहां तीन को अपूर्ण माना जाता है।


पूजा और धार्मिक कार्य:

पूजा में तीन लोगों का बैठना अशुभ माना जाता है। धार्मिक अनुष्ठानों में सम संख्या जैसे 2, 4, या 6 को प्राथमिकता दी जाती है।


मांगलिक कार्य:

शादी, गृह प्रवेश, या किसी अन्य शुभ कार्य के लिए तीन लोगों का जाना अशुभ माना जाता है। बड़े-बुजुर्ग इसे रोकने के लिए कहते हैं।


क्या यह सिर्फ एक मान्यता है?

ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास के अनुसार, यह एक सांस्कृतिक मान्यता है। हालांकि, कुछ स्थितियों में यह मानसिक संतुलन बनाए रखने के लिए उपयोगी हो सकती है। तीन को अपूर्णता का प्रतीक माना गया है, लेकिन यह हर परिस्थिति में लागू नहीं होता।


आधुनिक समय में इसकी प्रासंगिकता

आज के समय में यह मान्यता वैज्ञानिक आधार पर नहीं है। हालांकि, परंपराएं हमारी सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं और उन्हें समझने की कोशिश करनी चाहिए। यदि आप इसे मानते हैं, तो यह आपकी आस्था का विषय है।


निष्कर्ष

शुभ कार्यों में तीन का आंकड़ा अशुभ मानना दादी-नानी की एक मान्यता है, जो संस्कृति और परंपराओं से जुड़ी हुई है। इसका पालन करना न करना आपकी व्यक्तिगत सोच पर निर्भर करता है। लेकिन इन परंपराओं के पीछे की वजह जानने से हमें अपनी संस्कृति को समझने का अवसर मिलता है।

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