आजकल के पेरेंट्स अपने कामों में इतना व्यस्थ्य हो जाते हैं कि वे अपने बच्चों पर ध्यान नहीं दे पाते हैं। वे बच्चों को पालने के लिए या तो आया रख लेते हैं, या फिर उनके घर में कोई मौजूद रहता है तो उसे देखते हैं। इस दौरान उनके अंदर कई सारी आदतों को डालना पड़ता है। कुछ बच्चों को बड़े होने के बाद भी दूसरे पर कामों को लेकर निर्भर रहते हैं।
जैसे- उन्हें किसी भी समस्या का हल निकालना हो तो प्रयास करने के बजाय किसी बड़े से पूछना, अपने काम खुद करने की जगह बार-बार मम्मी या किसी बड़े को आवाज लगाना या फिर ख़ुद जाकर किसी से बात भी ना कर पाना। इससे वे खुद को भविष्य के लिए न तो मानसिक रूप से तैयार कर पाते हैं और ना ही शारीरिक रूप से। इसलिए बच्चे को भविष्य की जिम्मेदारियों को निभाने और आत्मनिर्भर बनाने के लिए उम्र के अलग-अलग पड़ाव पर इन कौशलों से ज़रूर रूबरू कराएं।
अच्छी आदतों को अपनाने में थोड़ा समय तो लगता ही है, चाहे इंसान बड़ा हो या फिर बच्चा। अच्छे व्यवहार और अच्छे व्यक्तित्व और अच्छे व्यवहार का निर्माण बचपन में सीखी गई अच्छी आदतें करती है। वैसे भी ताउम्र बचपन में लगी आदतें साथ रहती हैं। इसके साथ ही इन्हें बदलने की कोशिश करने में भी काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।
बच्चों को नियमित रूप से किताबें पढ़ने की आदत डलवाएं। यह बच्चों की ज्ञानवर्धक क्षमता को बढ़ाता है। बच्चों को समय का सदुपयोग करना सिखाएं। वे अपने कार्यों को इससे समय पर पूरा कर पाएंगे। हेल्दी खाने की आदत बच्चों के लिए लाभदायक साबित होगी। इससे उनका शारीरिक और मानसिक विकास होगा। दूसरों को ध्यान से सुनने की आदत से बच्चों की बात करने की स्कील अच्छी हो जाएगी। आपके बच्चे को खेल बहुत कुछ सिखा सकता है।
2 से 3 साल के बच्चों में दुनिया को समझने की शुरुआत कर देनी चाहिए। बच्चों को सिखाएं कि खिलौने से खेलने के बाद उन्हें सही स्थान पर रखना है। हालांकि वे ऐसा कर पाएं इसके लिए खिलौनों की टोकरी उनकी पहुंच में रखें। बच्चों को आपस में चीज़ें साझा करना सिखाएं।
वहीं, 4 से 5 साल के बच्चे थोड़ा स्वतंत्र होना शुरू करते हैं। उन्हें अब अतिरिक्त ज़िम्मेदारियां सौंपी जा सकती हैं। बच्चों को अपना नाम, माता-पिता का नाम और घर का पता याद कराएं, ताकि ज़रूरत पड़ने पर वे पहचान बता सकें। स्वयं चुनाव करने का अवसर दें। जैसे- वे क्या पहनना चाहते हैं या फिर किस खिलौने से खेलना चाहते हैं ये उन्हें ख़ुद करने तय करने दें। इससे उनमें आत्मनिर्भरता और निर्णय लेने की क्षमता बढ़ेगी।
6 से 7 साल के बच्चों की तर्क और समस्या-समाधान करने की क्षमता विकसित होती है। उन्हें अब व्यावहारिक कौशल सिखाने होंगे। बच्चों को छुट-पुट कामों से परिचित कराएं। बच्चों को रसोई से जुड़े बुनियादी काम सिखाएं। जैसे- थाली जमाना, फल धोकर टोकरी में जमाना या खाना परोसना आदि।
8 से 9 साल के बच्चों में आत्मनियंत्रण की भावना विकसित होती है। इसलिए ये बढ़िया वक़्त है उन्हें सामाजिक और व्यावहारिक कौशल सिखाने का। वे ऑनलाइन जानकारी लेने में भी सक्षम बनें इसलिए इस समय उन्हें सायबर से जुड़े नियम सिखाए जा सकते हैं। वहीं, 10-13 साल के बच्चों को निर्णय लेने में सक्षम बनाना ज़रूरी है। उन्हें घर और समाज के प्रति उनकी ज़िम्मेदारी से भी अवगत कराएं।