N4N DESK : शारदीय नवरात्र के 9 दिन के समाप्ति के बाद आज य़ानि 12 अक्टूबर को पूरे देश में विजयादशमी का त्योहार मनाया जा रहा हैं। सनातन धर्म को मानने वाले लोग विजयदशमी को बुराई पर अच्छाई पर जीत के प्रतीक तौर पर मानते हैं। माना जाता है कि आज ही के दिन प्रभु श्री राम ने लंका के राजा रावण का वध किए थे । उसके बाद से ही सनातन धर्म को मानने वाले लोग आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को विजदशमी के रूप में मनाते हैं।
विजयदशमी को लेकर एक औऱ मान्यता है कि इस दिन मां दुर्गा ने चंडी रूप धारण करके महिषासुर नामक असुर का भी वध किया था। महिषासुर और उसकी सेना द्वारा देवताओं को परेशान किए जाने की वजह से, मां दुर्गा ने लगातार नौ दिनों तक महिषासुर और उसकी सेना से युद्ध किया था और 10 वें दिन उन्हें महिषासुर का अंत करने में सफलता प्राप्त हुई। इसलिए भी शारदीय नवरात्र के बाद दशहरा मनाने की परंपरा है।
विजयदशमी को भारत में कई जगह लोग रावण का पुतला दहन करते हैं। लेकिन आज भी भारत में कुछ ऐसे जगह है जहां के लोग रावण को याद करके रोते है। जोधपुर के श्रीमाला समाज के गोधा गोत्र के लोग आज के समय में भी रावण दहन पर शोक मनाते है। इसका मुख्य कारण यह है कि वे लोग खुद को रावण का वंशज मानते है । इतना ही नहीं रावण दहन के दिन शोक मनाने वाले लोग जोधपुर के मेहरानगढ़ किला रोड पर लंकापति रावण और कुल देवा खारखाना का मंदिर भी बनवाए हुए हैं और उसकी पूजा अर्चना भी करते है। इस मंदिर का निर्माण 2018 में कराया गया था।
वहां के पंडित ने बताया कि रावण की पूजा कर उनके अच्छे गुणों को आत्मसात किया जाए। उन्होंने कहा कि रावण महान संगीतज्ञ होने के साथ ही वेदों के ज्ञाता थे। ऐसे में कई संगीतज्ञ व वेद का अध्ययन करने वाले छात्र रावण का आशिर्वाद लेने इस मंदिर में आते हैं। वहां के पंडित बताते है कि जोधपुर के मंडोर में रावण का ससुराल है। रावण की पत्नी मंदोदरी यहीं की रहने वाली थी। उन्होंने आगे बताया कि गोधा गोत्र के लोग रावण के बारात में मंडोर में आए और यहीं बस गए। वह कहते हैं कि दशहरा हमारे लिए शोक का प्रतीक है। इस दिन हमारे लोग रावण दहन देखने नहीं जाते हैं। शोक मनाते हुए शाम को स्नान कर जनेऊ को बदला जाता है और रावण के दर्शन करने के बाद भोजन किया जाता है।
ऋतिक की रिपोर्ट