बिहार उत्तरप्रदेश मध्यप्रदेश उत्तराखंड झारखंड छत्तीसगढ़ राजस्थान पंजाब हरियाणा हिमाचल प्रदेश दिल्ली पश्चिम बंगाल

LATEST NEWS

Hindi Literature: करिश्माई और बहुमुखी प्रतिभा के धनी कमलेश्वर , बेशुमार रंगों में जीने वाले 'पति, पत्नी और वो'

कमलेश्वर शब्दों के उत्कृष्ट शिल्पकार रहे हैं। उन्होंने अपने प्रभावशाली शब्दों के माध्यम से दूरदर्शन के लिए धारावाहिक लेखन में ऐसे नए मानक स्थापित किए हैं, जिन्हें प्राप्त करना भी आश्चर्यजनक होगा।

Hindi Literature
बेशुमार रंगों में जीने वाले कमलेश्वर - फोटो : Social Media

Hindi Literature: कमलेश्वर भारतीय साहित्य के एक प्रमुख लेखक और विचारक हैं, जिन्होंने अपने लेखन के माध्यम से समाज की जटिलताओं को उजागर किया है। उनकी रचनाएँ न केवल साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि वे सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर भी गहरी सोच प्रदान करती हैं। कमलेश्वर का जन्म 1932 में हुआ था और उन्होंने हिंदी साहित्य में कई महत्वपूर्ण योगदान दिए हैं।

कमलेश्वर के व्यक्तित्व की विशिष्टता उनके समस्त साहित्य में स्पष्ट रूप से प्रकट होती है। वे एक साथ कहानीकार, उपन्यासकार, आलोचक, सम्पादक, रेडियो प्रस्तोता, दूरदर्शन अधिकारी और सिने लेखक के रूप में विभिन्न विधाओं के विशेषज्ञ रहे हैं। इस व्यक्तित्व में विभिन्न गुणों का अद्भुत और संतुलित समन्वय विद्यमान था।

मैनपुरी के सरकारी विद्यालय से अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद, इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने उनके जीवन की धारा को परिवर्तित किया। साहित्य के प्रति उनकी जिज्ञासा और ज्ञान की प्यास को संतुष्ट करने के लिए त्रिवेणी के संगम नगर इलाहाबाद ने उन्हें कर्मभूमि के रूप में चुना। यहीं से उन्होंने साहित्य साधना की जो यात्रा आरंभ की, उसे उन्होंने अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक जारी रखा।

कमलेश्वर शब्दों के उत्कृष्ट शिल्पकार रहे हैं। उन्होंने अपने प्रभावशाली शब्दों के माध्यम से दूरदर्शन के लिए धारावाहिक लेखन में ऐसे नए मानक स्थापित किए हैं, जिन्हें प्राप्त करना भी आश्चर्यजनक होगा। 'दर्पण', 'आकाशगंगा', 'रेत पर लिखे नाम', 'बेताल पच्चीसी', 'युग' और 'चंद्रकांता' जैसे धारावाहिकों के माध्यम से कमलेश्वर की अद्वितीय कल्पनाशीलता, लेखन शैली और प्रस्तुति कला के अनुपम उदाहरण प्रस्तुत हुए हैं। 'चंद्रकांता' के साप्ताहिक एक घंटे के सौ एपिसोड दूरदर्शन की एक अनमोल कृति माने जाते हैं।

कमलेश्वर की कहानियों और उपन्यासों ने सिनेमा उद्योग में कथ्य के महत्व को उजागर किया है। फार्मूला फिल्मों की प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप कला सिनेमा को समांतर सिनेमा के रूप में जाना गया। 1969 में मृणाल सेन की फिल्म 'भुवन सोम' ने हिंदी कला सिनेमा की नींव रखी।  उनके उपन्यास 'काली आंधी' पर आधारित प्रसिद्ध फिल्म 'आंधी' प्रदर्शित हुई। इसके अतिरिक्त, उनके उपन्यास 'आगामी अतीत' का फिल्मांकन कर 'मौसम' का निर्माण किया गया। उन्होंने 'आनंद आश्रम', 'साजन बिना सुहागन', 'सौतन', 'अमानुष', 'छोटी सी बात', 'तुम्हारी कसम', 'पति, पत्नी और वो', 'मिस्टर नटवरलाल', 'राम बलराम', 'साजन की सहेली', 'रंग-बिरंगी', 'लैला', 'सागर संगम' जैसी अनेक फिल्मों के लिए लेखन किया। हिंदी सिनेमा में कमलेश्वर की दृष्टि, विचार और मेहनत सदैव प्रशंसनीय और सम्माननीय रहेगी।


Editor's Picks