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मुंबई हमले के 15 साल : दहशतगर्दों ने मायानगरी में किया “आतंकवाद” का नंगा नाच, ताबड़तोड़ फायरिंग कर ली 160 लोगों की जान

मुंबई हमले के 15 साल : दहशतगर्दों ने मायानगरी में किया “आतंकवाद” का नंगा नाच, ताबड़तोड़ फायरिंग कर ली 160 लोगों की जान

N4N DESK : मायानगरी के रूप में जाने जानेवाले मुबई की वो रात आज भी शायद किसी ने भूला होगा। जब सीमा पार से आये दहशतगर्दो ने अपनी रफ़्तार में चल रही मुंबई में तांडव मचा दिया था। इस घटना में करीब 160 लोगों की मौत हो गयी थी। जबकि 300 से अधिक लोग जख्मी हो गए थे। जी हां, वो दिन था 26 नवम्बर 2008। 

दरअसल हमले से तीन दिन पहले यानी 23 नवंबर को कराची से समुद्री रास्ते से एक नाव के जरिए ये आतंकी मुंबई पहुंचे थे। जिस नाव से आतंकी भारत आए थे। उसपर सवार  चार भारतीयों को मौत के घाट उतारते हुए उस पर कब्जा किया था। रात तकरीबन आठ बजे आतंकी कोलाबा के पास कफ परेड के मछली बाजार पर उतरे। यहां से वो चार समूहों में बंट गए और टैक्सी लेकर अपनी-अपनी मंजिलों की ओर बढ़ गए थे। बताया जाता है कि जब ये आतंकी मछली बाजार में उतरे तो इन्हें देखकर वहां के मछुआरों को शक भी हुआ था। जानकारी के अनुसार मछुआरों ने इसकी जानकारी स्थानीय पुलिस के पास भी पहुंचाई थी। लेकिन पुलिस ने इस पर कुछ खास ध्यान नहीं दिया। 

इसी दिन पुलिस को रात के 09.30 बजे छत्रपति शिवाजी रेलवे टर्मिनल पर गोलीबारी की खबर मिली। बताया गया कि यहां रेलवे स्टेशन के मुख्य हॉल में दो हमलावरों ने अंधाधुंध गोलीबारी की है। इसके बाद दक्षिणी मुंबई के लियोपोल्ट कैफे में भी दहशतगर्दों ने गोलीबारी की में मारे गए। जिसमें 10 लोग मारे गए। इसमें कई विदेशी भी शामिल थे। इसी दिन रात 10.30 बजे खबर आई कि विले पारले इलाके में एक टैक्सी को बम से उड़ा दिया गया है जिसमें ड्राइवर और एक यात्री मारा गया है। इससे करीब 15-20 मिनट पहले बोरीबंदर से भी इसी तरह के धमाके की खबर मिली थी। जिसमें एक टैक्सी ड्राइवर और दो यात्रियों की मौत हेने की जानकारी मिली थी। इन हमलों में तकरीबन 15 घायल हुए थे।हमलों का सिलसिला यहीं नहीं रुका। 26/11 के तीन बड़े मोर्चों में मुंबई का ताज होटल, ओबेरॉय ट्राइडेंट होटल और नरीमन हाउस शामिल था। जब हमला हुआ तो ताज में 450 और ओबेरॉय में 380 मेहमान मौजूद थे। इस घटना में जहाँ दिन रात चलनेवाली मुबई की रफ़्तार जहाँ थम गयी थी। वहीँ पूरी दुनिया के देशों ने आतंकवाद का जमकर विरोध किया था।  

हालाँकि 29 नवंबर की सुबह तक नौ हमलावर आतंकियों का सफाया हो चुका था और अजमल कसाब के तौर पर एक हमलावर पुलिस की गिरफ्त में था। जिसके बाद में फांसी दे दी गयी। इस घटना के आज डेढ़ दशक पुरे हो गए। लेकिन इसकी टीस आज भी बनी हुई है। इतिहास के पन्नों में यह काला दिन के तौर पर जाना जाता है।

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