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108 साल बाद कोर्ट ने सुनाया फैसला : जमीन विवाद में पीढ़ियां बदलती रही, अंग्रेजों से देश को आजादी भी मिल गई, लेकिन खत्म नहीं हुई लड़ाई

108 साल बाद कोर्ट ने सुनाया फैसला : जमीन विवाद में पीढ़ियां बदलती रही, अंग्रेजों से देश को आजादी भी मिल गई, लेकिन खत्म नहीं हुई लड़ाई

ARA : भारत में अगर कोई केस मुकदमा लड़ने कई साल और दशक लग जाते हैं। लेकिन यहां जिस मुकदमे की बात कर रहे हैं। उसका फैसला आने में 108 साल का समय लग गया। जमीन संबंधी एक मुकदमे में बिहार में आरा की अदालत ने 108 साल बाद फैसला सुनाया है। केस के दौरान देश को आजादी भी मिल गई, बंटवारा भी हो गया, देश का अपना संविधान भी लागू हो गया। भारत दुनिया के शक्तिशाली देश में शामिल हो गया। लेकिन कोर्ट का फैसला नहीं आ सका था। यहां तक केस लड़ रहे वादी की यह चौथी पीढ़ी है, जबकि उनके वकील की तीसरी पीढ़ी है।

1914 में दर्ज हुआ था केस

अधिवक्ता सत्येंद्र नारायण सिंह ने बताया कि कुल नौ एकड़ जमीन मूलत: कोईलवर निवासी नथुनी खान की थी। 1911 में नथुनी के निधन के बाद पत्नी जैतून खान, बहन बदलन एवं बेटी बीबी सलमा के बीच बंटवारे का विवाद हो गया। कोर्ट में 1914 में वाद दायर किया गया। इस बीच जमीन के एक हिस्सेदार से कोईलवर के रईस स्व. दरबारी सिंह ने तीन एकड़ जमीन खरीद ली। वहीं, जैतून खान की पत्नी से दूसरी पार्टी ने पूरी जमीन खरीद ली। इस पर दोनों खरीदारों में मुकदमा शुरू हो गया। तत्कालीन दंडाधिकारी ने धारा 145/146 के तहत 14 दिसंबर 1931 को पूरी नौ एकड़ विवादित जमीन को जब्त करने का आदेश दे दिया। तब स्व. दरबारी सिंह ने जमीन को मुक्त कराने के लिए कोर्ट में वाद दाखिल किया। 17 मार्च 1992 को अदालत ने पक्ष में जमीन मुक्त करने का आदेश दिया। इसके खिलाफ दूसरे पक्ष के लोगों ने अपील दायर की थी। 

अपील पर फैसला आने में लगा तीन दशक का समय

 न्याय में लगभग तीन दशकों की देरी के बावजूद कोईलवर के अतुल सिंह और उनका परिवार संतुष्ट है। अब अतुल आरा के व्यवहार न्यायालय में एडीजे-7 श्वेता सिंह के फैसले की कापी लेकर एसडीएम कोर्ट में जमीन को मुक्त कराने के लिए जाएंगे। कोईलवर से बबुरा जाने वाली सड़क पर तीन एकड़ जमीन अभी भी परती पड़ी है। 


दीमक चाट गए थे सारे कागजात

अधिवक्ता गणेश पांडेय और सत्येंद्र नारायण सिंह ने बताया कि जज श्वेता सिंह ने इतने पुराने मामले को सुलझाने के लिए कड़ी मेहनत की और कोरोना में भी केस की लगातार सुनवाई की। कई कागज दीमक चाट गए थे और उन्हें किसी तरह जोड़ कर उनका अवलोकन किया गया। मुस्लिम परिवार का अपना बंटवारा का केस, उनके वारिसों के द्वारा बिक्री की गई जमीन का केस और स्व.दरबारी सिंह का केस सब आपस में जुड़े हुए थे। 

पीढ़ियां बदलती रहीं और केस चलता रहा

108 साल तक चली कानूनी लड़ाई को जीतकर खुश नजर आए अतुल सिंह ने बताया कि उनके परदादा स्व. दरबारी सिंह ने जमीन खरीदी थी और लगभग 40 साल केस लड़ा। फिर उनके पुत्र स्व.राजनारायण सिंह इस केस को लेकर आगे बढ़े, उनके बाद अतुल के पिता अलखदेव नारायण सिंह ने केस को देखा। 

वहीं, इस केस को लड़ रहे अधिवक्ता सत्येंद्र नारायण सिंह के दादा स्व.शिवव्रत नारायण सिंह स्व.दरबारी सिंह के वकील थे। उसके बाद उनके पुत्र अधिवक्ता स्व. बद्री नारायण सिंह ने इस केस को लड़ा। फैसले के समय स्व.ब्रदी नारायण के पुत्र सत्येंद्र नारायण केस को देख रहे थे।  

व्यवहार न्यायालय ने सुनाया फैसला

आरा के व्यवहार न्यायालय में एडीजे-7 श्वेता सिंह के फैसले की कापी लेकर एसडीएम कोर्ट में जमीन को मुक्त कराने के लिए जाएंगे। कोईलवर से बबुरा जाने वाली सड़क पर तीन एकड़ जमीन अभी भी परती पड़ी है। अधिवक्ता सत्येंद्र नारायण सिंह ने बताया कि कुल नौ एकड़ जमीन की कानूनी लड़ाई 108 साल पहले 1914 में शुरू हुई थी। इसी में फैसला आया है।

अतुल कुमार सिंह ने बताया कि उनकी मां मुन्नी देवी को जब फैसले की जानकारी हुई तो उनकी आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे, उन्होंने इस जमीन के लिए पिता जी और बाबा के संघर्ष को देखा है। 

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