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21 साल के इंतजार के बाद उधम सिंह ने जनरल डायर को मारकर लिया था जलियांवाला बाग नरसंहार का बदला, देखिए शहीद उधम सिंह के फिंगर प्रिंट्स

21 साल के इंतजार के बाद उधम सिंह ने जनरल डायर को मारकर लिया था जलियांवाला बाग नरसंहार का बदला, देखिए शहीद उधम सिंह के फिंगर प्रिंट्स

पटना- जब देश शहीद उधम सिंह का 84वां शहीदी वर्ष मना रहा है और बृहस्पतिवार को उनके जीवन पर बनी एक फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है, ऐसे में उनसे जुड़ी महत्वपूर्ण यादगार चीजें फिल्लौर स्थित पंजाब पुलिस अकादमी में लोगों की नजरों से छिपी हुई हैं.1927 में ली गई उनके फिंगर प्रिंट की दुर्लभ प्रतियां. ये उस समय ली गईं उन्हें गदर पार्टी के कार्यकर्ता के रूप में गिरफ्तार किया गया था.पुलिस अकादमी में शहीद भगत सिंह के फिंगर प्रिंट मिले. अकादमी 1860 के दशक से पुलिस केस फाइलों, दस्तावेजों और हथियारों का भंडार है.

1927 में उधम सिंह पर ब्रिटिश विरोधी गतिविधियों का आरोप लगाया गया और कथित तौर पर गदर पार्टी के 25 सहयोगियों को इकट्ठा किया. ब्रिटिश पुलिस ने बिना लाइसेंस हथियार, रिवॉल्वर, गोला-बारूद रखने के आरोप में उन्हें गिरफ्तार किया और ‘वॉयस ऑफ रिवोल्ट नामक प्रतिबंधित गदर पार्टी के अखबार की प्रतियां जब्त कर ली गईं. उन पर मुकदमा चलाया गया और पांच साल जेल की सजा सुनाई गई. उसी समय ये फिंगर प्रिंट लिए गए थे.

उधम सिंह ने 13 मार्च 1940 को लंदन में ब्रिटिश भारत के पूर्व लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ’डायर की हत्या करके अप्रैल 1919 के जलियांवाला बाग नरसंहार का बदला लिया था. ‘सरदार उधम’ नाम से बनी हिंदी फिल्म ने शुक्रवार को पांच राष्ट्रीय पुरस्कार जीते.

उधम सिंह का वास्तविक नाम शेर सिंह था. वह सुनाम के रहने वाले थे और उनका जन्म 26 दिसंबर, 1899 को टहल सिंह और नारायण कौर के घर हुआ था. उनके एक बड़ा भाई साधु सिंह थे. जब वह तीन वर्ष के थे तब मां की मृत्यु हो गई और बाद में उनके पिता की भी मृत्यु हो गई. दोनों भाइयों को सेंट्रल खालसा अनाथालय ने पाला था. यहां उन्हें नये नाम मुक्ता सिंह और उधम सिंह दिया गया था. कुछ वर्ष बाद उनके बड़े भाई की बीमारी के कारण मृत्यु हो गई.

बता दें उधमसिंह १३ अप्रैल १९१९ को घटित जालियाँवाला बाग नरसंहार के प्रत्यक्षदर्शी थे. राजनीतिक कारणों से जलियाँवाला बाग में मारे गए लोगों की सही संख्या कभी सामने नहीं आ पाई. इस घटना से वीर उधमसिंह तिलमिला गए और उन्होंने जलियाँवाला बाग की मिट्टी हाथ में लेकर माइकल ओ'डायर को सबक सिखाने की प्रतिज्ञा ले ली. अपने इस ध्येय को अंजाम देने के लिए उधम सिंह ने विभिन्न नामों से अफ्रीका, नैरोबी, ब्राजील और अमेरिका की यात्रा की.वर्ष 1934 में उधम सिंह लंदन पहुँचे और वहां 9, एल्डर स्ट्रीट कमर्शियल रोड पर रहने लगे. वहां उन्होंने यात्रा के उद्देश्य से एक कार खरीदी और साथ में अपना ध्येय को पूरा करने के लिए छह गोलियों वाली एक रिवाल्वर भी खरीद ली. भारत के यह वीर क्रांतिकारी, माइकल ओ'डायर को ठिकाने लगाने के लिए उचित वक्त का इंतजार करने लगे.

उधम सिंह को अपने सैकड़ों भाई-बहनों की मौत का बदला लेने का मौका 1940 में मिला. जलियांवाला बाग हत्याकांड के 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हाल में बैठक थी जहां माइकल ओ'डायर भी वक्ताओं में से एक था. उधम सिंह उस दिन समय से ही बैठक स्थल पर पहुँच गए. अपनी रिवॉल्वर उन्होंने एक मोटी किताब में छिपा ली. इसके लिए उन्होंने किताब के पृष्ठों को रिवॉल्वर के आकार में उस तरह से काट लिया था, जिससे डायर की जान लेने वाला हथियार आसानी से छिपाया जा सके.

बैठक के बाद दीवार के पीछे से मोर्चा संभालते हुए उधम सिंह ने माइकल ओ'डायर पर गोलियां दाग दीं. दो गोलियां माइकल ओ'डायर को लगीं जिससे उसकी तत्काल मौत हो गई. उधम सिंह ने वहां से भागने की कोशिश नहीं की और अपनी गिरफ्तारी दे दी. उन पर मुकदमा चला. 4 जून 1940 को उधम सिंह को हत्या का दोषी ठहराया गया और 12 जून 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई. शहीद उधम सिंह को नमन.


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