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गया के पटवाटोली में होगा “औद्योगिक क्लस्टर” का निर्माण, जीतनराम मांझी ने दी बड़ी खुशखबरी, कहा - दुनिया के बाजारों में होगा गया जी का नाम रोशन

गया के पटवाटोली में होगा “औद्योगिक क्लस्टर” का निर्माण, जीतनराम मांझी ने दी बड़ी खुशखबरी, कहा - दुनिया के बाजारों में होगा गया जी का नाम रोशन

GAYA : बिहार में जब भी गया के पटवा टोली का जिक्र किया जाता है। तो सबसे पहले यहां हर साल सैंकड़ों की संख्या में आईआईटी निकालनेवाले अभ्यर्थियों की बात होती है। यही कारण है कि पटवाटोली को आईआईटीयन की फैक्ट्री भी कही जाती है। लेकिन यह पटवाटोली की पूरी पहचान नहीं है। पटवाटोली की एक और पहचान यहां तैयार किए जानेवाले कपड़े भी हैं। हालांकि पिछले कुछ सालों में यहां के कपड़ा बाजार की स्थिति खराब हुई है। लेकिन अब स्थिति बदलने की तैयारी शुरू कर दी गई है। केंद्रीय मंत्री व गया के सांसद जीतनराम मांझी ने पटवाटोली की तस्वीर बदलने की पहल शुरू कर दी है। उन्होंने बताया कि पटवा टोली में जल्द ही “औद्योगिक क्लस्टर” का निर्माण शुरू होगा, जिसके लिए अब सिर्फ कागजी कार्रवाई बाकी है। 

सोशल मीडिया पर दी खुशखबरी

पटवाटोली में “औद्योगिक क्लस्टर” निर्माण की जानकारी खुद मांझी नए अपने एक्स हैंडल पर दी है। उन्होंने लिखा है कि गया जी के पटवा टोली के लोगो के लिए बड़ी ख़बर है। जल्द ही वहां से निर्मित वस्त्र पूरे दुनिया के बाजारों में गया जी का नाम रौशन करेगा। पटवा टोली में “औद्योगिक क्लस्टर” के निर्माण को लेकर सैद्धांतिक सहमती बन गई है,जल्द ही कागजी कारवाई के बाद कार्य आरंभ होगा।

क्या है पटवा टोली की वर्तमान स्थिति

पटवाटोली में आज की तारीख में 11 हजार पवारलूम प्लांट संचालित हैं. सामाजिक कार्यकर्ता गोपाल पटवा व दुखन पटवा ने बताया कि मानपुर में निर्मित सूती कपड़े बिहार, बंगाल व झारखंड के अलावा नेपाल व बांग्लादेश भेजे जाते हैं. अभी मानपुर में 11 हजार पावरलूम प्लांट संचालित हैं और इसके संचालन में लगभग 15 हजार मजदूर 24 घंटे काम कर रहे हैं. पावरलूम में कम समय और कम लागत में अधिक कपड़ा का उत्पादन होता है. 

महारानी विक्टोरिया ने भी पहने थे कपड़े

बता दें कि गया के मानपुर पटवाटोली में ब्रिटिश शासन काल से ही कपड़ों का निर्माण कार्य चल रहा है. समय के साथ यहां कपड़े के निर्माण कार्य में काफी बदलाव हुआ है. पहले हैंडलुम (हस्तकरघा) से मानव बल के द्वारा सूती, रेशमी व सिल्क के कपड़ाें का निर्माण हुआ करता था. हालांकि अब हैंडलूम मशीनें विलुप्त होने के कगार पर हैं और इसकी जगह पावरलूम (विद्युत ऊर्जा संचालित) ने ले लिया है. पटवाटोली, पेहानी, रेवरटोली के पुराने बुनकरों ने बताया कि मानपुर में पहले उच्च क्वालिटी के सिल्क के कपड़े का हैंडलूम पर निर्माण किया जाता था. जब देश में ब्रिटिश हुकूमत थी, तो मानपुर में बने कपड़ा का इस्तेमाल महारानी विक्टोरिया ने किया था.  

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