कोटा को पीछे छोड़ अब यह शहर मासूम जिंदगियों को रहा है निगल ! बन गया देश का नया ‘साइलेंट किलर’ हब
Student Newsकभी पूर्वोत्तर भारत का एकेडमिक सेंटर कहलाने वाला यह शहर आज टूटते ख़्वाब बिखरते अरमान से एक गहरे मानसिक संकट के गर्त में सामता नज़र आ रहा है. जिस शहर ने अनगिनत छात्रों को उनके सपनों की ओर बढ़ाया, वही अब ऐसे आंकड़ों के लिए जाना जाने लगा है.

N4N डेस्क: टूटते ख़्वाब बिखरते अरमान और ऐम्बुलेंस में सफेद चादर से ढकी लाशों के आंकड़े आपकी रूह को दहला देंगे. दरअसल,मासूम बचपन को कामयाब जिंदगी देने की ख्वाहिश में तमाम मां-बाप ना सिर्फ बिना गारंटी वाले इस ख्वाब को खरीदने की होड में लगे हैं, बल्कि वो अपने बच्चों के बचपन को कामयाब जिंदगी की बजाय मुर्दा बचपन की तरफ धकेलने का काम कर रहे हैं. ये डरावने आंकडें बस उसकी बानगी भर हैं. कभी पूर्वोत्तर भारत का एकेडमिक सेंटर कहलाने वाला गुवाहाटी आज एक गहरे मानसिक संकट के गर्त में समाता नज़र आ रहा है. जिस शहर ने अनगिनत छात्रों को उनके सपनों की ओर बढ़ाया, वही अब ऐसे आंकड़ों के लिए जाना जाने लगा है, जो चिंता और दुख से भरे हुए हैं. छात्रों द्वारा आत्महत्या के मामले यहां इतनी तेज़ी से बढ़े हैं. हालात, इतने खराब हो गए हैं कि इसने देश के सबसे चर्चित एकेडमिक हब कोटा को भी पीछे छोड़ दिया है. जहां गुवाहाटी में 9 साल में 150 मासूम बच्चे सुसाइड कर चुके हैं.
गुवाहाटी - नया ‘साइलेंट किलर’ हब
गुवाहाटी के 17 पुलिस स्टेशनों में से सिर्फ़ पांच के आधिकारिक रिकॉर्ड से पता चलता है कि 2015 से 2024 के बीच लगभग 150 छात्रों ने अपनी जान दे दी है. यह संख्या कोटा के दस सालों में 147 छात्रों की आत्महत्या से कहीं अधिक है. कोटा में देश के सबसे जाने-माने कोचिंग सेंटर मौजूद हैं. यह जगह लंबे समय से पढ़ाई के दबाव के कारण छात्रों के सुसाइड के लिए कुख्यात रहा है. लेकिन अब गुवाहाटी ने इस दर्दनाक रेस में आगे निकलना शुरू कर दिया है.
कामयाबी की दौड़ में जिंदगी से हार रहे बच्चे
बढ़ती हुई संख्या गला कट प्रतिस्पर्धा ने एक बड़ी समस्या की परत खोली है. वह है पढ़ाई का दबाव और इमोशनल सहारे की कमी. बच्चे और अडल्ट अपने सपनों को पूरा करने के लिए इतना दबाव महसूस करते हैं कि वे अक्सर डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं. लेकिन इसके बावजूद, इस मुद्दे को संभालने के लिए अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं. ज़रूरत है एक मानवीय, संवेदनशील और समग्र दृष्टिकोण की, जो न केवल छात्रों को शिक्षित करे, बल्कि उन्हें समझे, सहारा दे और जीवन की ओर प्रेरित करे. गुवाहाटी का संकट एक चेतावनी है. सवाल यह नहीं कि कितने और आँकड़े जुड़ेंगे. सवाल यह है कि हम कब जागेंगे?
असम के दूसरे शहरों को भी हाल बेहाल
यह केवल दर्ज आंकड़ों की बात नहीं है. अगर गुवाहाटी के सभी 17 पुलिस स्टेशनों के आंकड़ों को जोड़ा जाए. अकेले दिसपुर पुलिस स्टेशन ने 10 सालों में 53 आत्महत्याएं दर्ज की हैं, जो राज्य में किसी भी थाना क्षेत्र के लिए सबसे अधिक है. खेत्री (29), हतीगांव (23) और सोनापुर (12) में भी हालात भयावह हैं. यह आंकड़े महज़ संख्या नहीं, यह अधूरी रह गई कहानियां हैं, जिनमें संघर्ष, उम्मीद और आखिरकार एक चुप्पी होती है.