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10 साल की सजा होते ही अनंत के 42 साल के सियासी सफर पर लगा ब्रेक, 1980 में पहली बार बिहार ने सुना था नाम, 2005 में मोकामा में कर दिया कमाल

10 साल की सजा होते ही अनंत के 42 साल के सियासी सफर पर लगा ब्रेक, 1980 में पहली बार बिहार ने सुना था नाम, 2005 में मोकामा में कर दिया कमाल

पटना. छोटे सरकार के नाम से प्रसिद्ध मोकामा के बाहुबली विधायक अनंत सिंह को 10 साल कारावास की सजा सुनाई गई है. अनंत के पैतृक आवास से एके 47 और ग्रेनेड मिलने के मामले में उन्हें पटना के विशेष एपी-एमएलए कोर्ट ने सजा सुनाई है. कई संगीन मामलों में आरोपी अनंत सिंह को पहली बार किसी मामले में सजा सुनाई गई है. और इसके साथ ही अनंत सिंह के सियासी सफर में एक बड़ा ब्रेक भी लगना तय माना जा रहा है. दरअसल, मोकामा से विधायक अनंत सिंह भले पहली बार एमएलए वर्ष 2005 में बने लेकिन उनके सियासी जीवन का बीजारोपण वर्ष 1980 में ही हो गया था. 

विधानसभा चुनाव 1980 में मोकामा विधानसभा क्षेत्र से कांगेस उम्मीदवार श्याम सुंदर सिंह ‘धीरज’ को कड़ी टक्कर दे रहे थे कम्युनिस्ट नेता शिव शंकर शर्मा. उस चुनाव में शिव शंकर शर्मा को मोकामा टाल इलाके के युवा नेता दिलीप सिंह (अनंत सिंह के बड़े भाई) भी खुद ही साथ दे रहे थे. हालांकि पहलवान प्रवृति के दिलीप सिंह का साथ शिव शंकर शर्मा को गंवारा नहीं था क्योंकि दिलीप की छवि दबंग किस्म की थी. जब शिव शंकर शर्मा ने दिलीप का साथ लेने से मना कर दिया तब उसी समय श्याम सुंदर सिंह धीरज ने दिलीप की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया. उस चुनाव में धीरज ने जीत हासिल की. कहा जाता है कि धीरज की जीत का बड़ा कारण दिलीप सिंह का साथ रहा जिन्होंने अपने छोटे भाई अनंत सिंह के साथ मिलकर टाल के इलाकों में वोटों को गोलबंद करने में अहम भूमिका निभाई. 

हालांकि दिलीप और धीरज की यह दोस्ती ज्यादा दिनों तक नहीं चली. पांच साल बाद वर्ष 1985 में फिर से चुनाव होता है. इस बार धीरज को चुनाव मैदान में टक्कर देने के लिए दिलीप भी उतर जाते हैं. मोकामा में त्रिकोणीय मुकाबला हुआ. धीरज, दिलीप और शिव शंकर शर्मा में जोरदार मुकाबला हुआ लेकिन मामूली अंतर से श्याम सुंदर सिंह धीरज चुनाव जीत गए. दिलीप ने जोरदार टक्कर दी लेकिन चुनाव हारने के बाद दिलीप ने धीरज पर सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग करने का आरोप लगाया. 

वहीं दूसरी और दिलीप के भाई अनंत सिंह भी अब तेजी से मोकामा टाल और बाढ़ के इलाकों में लोकप्रिय हो रहे थे. उन पर कई प्रकार के संगीन आरोप लग चुके थे. इस बीच वर्ष 1990 में फिर से विधानसभा चुनाव हुआ. इस बार दिलीप सिंह ने लालू यादव की पार्टी जनता दल के टिकट पर मोकामा से चुनाव लड़ा और कांग्रेस उम्मीदवार धीरज को मात देकर पहली बार विधानसभा पहुंचे. उस चुनाव में पहली बार अनंत सिंह ने भी अपने भाई दिलीप के लिए जोरदार घेराबंदी की और दिलीप की जीत के साथ ही अनंत भी तेजी से लोकप्रिय हो गए. 

बीतते सालों के साथ ही दिलीप सिंह के मुकाबले अनंत सिंह की लोकप्रियता बढ़ी. जब 1995 में विधानसभा चुनाव हुआ तब फिर से दिलीप सिंह ने धीरज को हराया. उस बार उनकी जीत में अनंत सिंह की बड़ी भूमिका मानी गई जिन्होंने मोकामा टाल के इलाकों में अपना दमखम दिखाया. लगातार दो बार चुनाव जीतने वाले दिलीप सिंह जहां राजनीति के मैदान में शीर्ष सफलता की ओर बढ़ रहे थे वहीं उनके भाई अनंत सिंह मोकामा और बाढ़ के इलाकों में अपना वर्चस्व बढ़ा रहे थे. अनंत सिंह का दमखम कुछ इस तरह से बढ़ने लगा कि लोग उन्हें अब ‘छोटे सरकार’ भी कहने लगे. 

इस बीच वर्ष 2000 के चुनाव में दिलीप सिंह को टक्कर देने के लिए मैदान में उतरे मोकामा के सूरजभान सिंह जो बिहार ही नहीं पूरे अंडरवर्ल्ड के बेताज बादशाह कहे जाते थे. सूरजभान ने राजनीति के मैदान में भी अपनी बादशाहत दिखाई और निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर उन्होंने दिलीप सिंह को बड़े अंतर से हरा दिया. उस चुनाव में अनंत सिंह ने अपने भाई दिलीप को जीत दिलाने के लिए खूब जोर आजमाइश की लेकिन वे सफल नहीं हुए. कहा जाता है कि उस चुनाव में सूरजभान को भीतरखाने नीतीश कुमार का भी साथ मिला जो उस समय बाढ़ के सांसद थे और बाद में बिहार मुख्यमंत्री बने. हालांकि नीतीश और सूरजभान की दोस्ती ज्यादा समय तक नहीं चली. 2004 के लोकसभा चुनाव में सूरजभान ने रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा से बलिया लोकसभा क्षेत्र से सांसद का चुनाव जीता. दूसरी ओर लालू यादव और दिलीप सिंह के बीच बढती दूरियों के कारण बाढ़ के लदवा स्थित अनंत सिंह के पैतृक आवास पर एसटीएफ ने छापेमारी की. अनंत सिंह उस छापेमारी में बच गए लेकिन उनके कई लोग हताहत हुए. 

यहीं से अनंत सिंह और नीतीश कुमार साथ आने लगे. वर्ष 2005 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने जदयू उम्मीदवार के तौर पर अनंत सिंह को मोकामा से उम्मीदवार बनाया. फरवरी और नवंबर 2005 में दो बार हुए चुनाव में अनंत सिंह ने लोजपा के नलिनी रंजन शर्मा उर्फ़ ललन सिंह को मात दिया जो अपराध की दुनिया में बड़े नाम थे. उन्हें इंडियाज मोस्टवांटेड कहा गया. अनंत ने लोजपा के नलिनी रंजन शर्मा को 2835 मतों से हराया. यहां से जो अनंत का विधायक बनने का सफर शुरू हुआ वह अजेय हो गया. अनंत ने फिर से वर्ष 2010 में जदयू के टिकट पर मोकामा विधानसभा सीट से जीत हासिल की. इस बार उन्होंने लोजपा प्रत्याशी सोनम देवी को 8954 मतों से हराया. हालांकि उसके बाद वर्ष 2014 आते आते अनंत सिंह को नीतीश कुमार के रिश्ते बदलने लगे. पुटुस हत्याकांड में नाम आने के बाद 2015 के विधानसभा चुनाव के पहले अनंत सिंह की गिरफ्तारी हुई. उनके पटना स्थित सरकारी आवास पर पुलिस ने छापेमारी की और कई प्रकार की अवैध सामग्री बरामद की. 

हलांकि नीतीश और लालू यादव के साझा विरोध के बाद भी वर्ष 2015 में लगातार चौथी बार अनंत सिंह ने चुनाव जीता. उन्होंने मोकामा सीट से विधानसभा चुनाव निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर सफलतापूर्वक लड़ा. उनका चुनाव चिन्ह एक डीजल पंप था. अनंत सिंह ने जद (यू) के उम्मीदवार नीरज कुमार को 18,361 मतों से हराया. सीएम नीतीश कुमार के खास से उनके सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वि बन गए अनंत ने वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में मुंगेर लोकसभा से अपनी पत्नी नीलम देवी को मैदान में उतारा. नीलम के सामने थे राजीव रंजन सिंह उर्फ़ ललन सिंह जो मौजूदा जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और सीएम नीतीश के सबसे खास. उस चुनाव में ललन सिंह को हराने में अनंत सिंह सफल तो नहीं हुए लेकिन बिहार की सबसे हॉट सीट के रूप में मुंगेर बना रहा. हालांकि 2020 के विधानसभा चुनाव में अनंत सिंह ने फिर से जेल में रहते हुए ही जदयू उम्मीदवार राजीव लोचन को 35 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से हराया. 

इस बीच अगस्त 2019 में अनंत सिंह के घर से एके 47, ग्रेनेड और कारतूस मिलता है. इस मामले में 25 अगस्त 2019 से अनंत सिंह न्यायिक हिरासत में जेल में बंद हैं. इस कांड की सुनवाई स्पीडी ट्रायल के तहत प्रतिदिन यानी 34 माह तक चली. इस कांड में विधायक अनंत सिंह को सुप्रीम कोर्ट तक से जमानत नहीं मिली थी. इस मामले विधायक और उनके केयर टेकर पर 15 अक्टूबर 2020 में आरोप गठित किया गया था. इसके बाद विशेष लोक अभियोजक ने 13 पुलिस अभियोजन गवाहों को कोर्ट में पेश किया. विधायक की ओर से बचाव पक्ष में 34 गवाह पेश किए गए. अब इसी मामले में अनंत सिंह को 10 साल जेल की सजा हुई है. 

ऐसे में वर्ष 2020 विधानसभा चुनाव में पांचवी बार विधायक बनने वाले अनंत सिंह अब विधानसभा के सदस्य भी नहीं रह जाएंगे. अनंत के घर से एके 47, ग्रेनेड बरामदगी मामले को बिहार सरकार ने विशेष कांड की श्रेणी में रखा है और इस मामले आरोपी के खिलाफ ट्रायल के लिए विशेष लोक अभियोजक को नियुक्त किया गया था. इस कांड का अनुसंधान बाढ़ अनुमंडल की तत्कालीन एएसपी लिपी सिंह ने किया था और विधायक व केयर टेकर के खिलाफ कोर्ट में 5 नवंबर 2019 को चार्जशीट दायर की थी. अब दोनों को 10 साल कारावास की सजा सुनाई गई है. छोटे सरकार यानी अनंत सिंह के करीब 42 सालों के सियासी सफर पर कोर्ट ने फ़िलहाल ब्रेक लगा दिया है. दरअसल, अनंत सिंह को अगर हाई कोर्ट से जमानत नहीं मिलती है तब वे न सिर्फ जेल में रहेंगे बल्कि सजायाफ्ता होने के कारण वे जेल से निकलने के बाद भी अगले 6 साल तक चुनाव नहीं लड़ पाएंगे. 

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