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कुर्मी हो या कोयरी, धानुक हो या कहार, राजपूत रहे या फिर कायस्थ- भूमिहार कोई नहीं रहा सीएम नीतीश के साथ... ललन के JDU अध्यक्ष बनने का साइडइफेक्ट

कुर्मी हो या कोयरी, धानुक हो या कहार, राजपूत रहे या फिर कायस्थ- भूमिहार कोई नहीं रहा सीएम नीतीश के साथ... ललन के JDU अध्यक्ष बनने का साइडइफेक्ट

पटना. ललन सिंह जदयू के अध्यक्ष क्या बने एक एक कर हर जाति का बड़ा नेता जदयू से अलग होता चला गया। कुर्मी हो या कोयरी, धानुक हो या कहार, राजपूत रहे या फिर कायस्थ- भूमिहार। किसी जाति का बड़ा नेता नहीं रह पाया जदयू के साथ। 31 जुलाई 2021 को जिस तामझाम के साथ ललन सिंह को जदयू अध्यक्ष पद की कमान सौंपी गई थी दो वर्ष होते ही सबकुछ बदला बदला सा हो गया. जदयू के कई बड़े नेता यह कहकर जदयू से किनारे हो गए कि उन्हें पार्टी में तरजीह नहीं दी जाती. ज्यादातर नेताओं ने जदयू से नाता तोड़ते हुए ललन सिंह को ही कटघरे में खड़ा किया. 

जिस जदयू की रीढ़ के रूप में कुर्मी और कोयरी वोटर यानी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का लव-कुश समीकरण माना जाता रहा, उन जातियों के बड़े नेता भी जदयू से अलग हो गए. जदयू में घटनाक्रमों को याद करें तो किसी जमाने में सीएम नीतीश के खास माने जाने आरसीपी सिंह ने सबसे पहले जदयू का दामन छोड़ा. ललन सिंह को आरसीपी की जगह ही अध्यक्ष बनाया गया था. सीएम नीतीश के साथ लम्बे अरसे तक रहे आरसीपी भी उसी कर्मी जाति से आते हैं जो नीतीश कुमार की जाति है. लेकिन आरसीपी ने जदयू से अलग होकर भाजपा का दामन थाम लिया. 

कोयरी जाति से आने वाले उपेंद्र कुशवाहा का भी यही हाल रहा. उपेंद्र कुशवाहा ने तो अपनी पार्टी आरएलएसपी का जदयू में विलय कर लिया था. लेकिन नीतीश कुमार ने एनडीए से अलग होकर राजद के साथ बिहार में सरकार बनाई तो उपेंद्र कुशवाहा विरोध में उतर गए. स्थिति हुई कि वे जदयू से अलग होकर फिर से अपनी नई पार्टी बनाए और अब एनडीए का हिस्सा हैं. 

ललन के अध्यक्ष बनने के बाद जदयू छोड़ने वाले नेताओं की फेहरिस्त यहीं तक नहीं है. जदयू प्रवक्ता अजय आलोक जो कायस्थ जाति से आते हैं, उन्होंने भी अब भाजपा की सदयस्ता ग्रहण कर ली है. किसी जमाने में सीएम नीतीश के करीबी रहे एमएलसी रणवीर नंदन का भी जदयू से मोहभंग हो गया. वे भी अब भाजपा के साथ हो लिए हैं. जदयू के संस्थापक सदस्यों में एक रहे प्रमोद चन्द्रवंशी भी सीएम नीतीश और जदयू से अलग होकर अब भाजपा के नेता बन चुके हैं. 

ललन के अध्यक्ष बनने के बाद जदयू छोड़ने वाले नेताओं में राजपूत बिरादरी से आने वाली पूर्व सांसद मीना सिंह का नाम भी शामिल है. उनके पति स्व. अजीत कुमार सिंह कभी सीएम नीतीश के खास कहे जाते थे. लेकिन अब मीना सिंह भाजपा में जा चुकी हैं. कुछ दिनों पूर्व ही धानुक जाति से आने वाले प्रगति मेहता को जदयू ने पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया. अब 29 दिसम्बर को प्रगति मेहता भी भाजपा में शामिल हो रहे है. 

ऐसे में ललन के जदयू अध्यक्ष बनने से कई ऐसे पार्टी नेता सीएम नीतीश से अलग हो गए जो अपनी जाति के खास नेता माने जाते हैं. जदयू सूत्रों की मानें तो आरसीपी सिंह, उपेंद्र कुशवाहा, अजय आलोक, रणवीर नंदन, प्रमोद चंद्रवंशी, मीना देवी, प्रगति मेहता इन सबके पार्टी छोड़ने की एक वजह ललन सिंह के साथ इनके असहज रिश्ते रहे. यानी पार्टी जिन जातियों में इन नेताओं के चेहरे के सहारे मजबूत जनाधार बनाती वही नेता अब जदयू की राह में रोड़े बने हैं. सीएम नीतीश भी इन स्थितियों से वाकिफ हैं. और सम्भवतः जदयू नेतृत्व में परिवर्तन करने की खबरों का एक बड़ा कारण यह भी है कि ललन सबको साथ लेकर चलने में सफल नहीं साबित हुए हैं. 

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