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'खुला' के जरिये बेगम ने दिया तलाक... शौहर ने केरल हाईकोर्ट के फैसले को चैलेंज किया तो सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला

'खुला' के जरिये बेगम ने दिया तलाक... शौहर ने केरल हाईकोर्ट के फैसले को चैलेंज किया तो सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला

दिल्ली- देश की सबसे बड़ी अदालत मुस्लिम महिलाओं द्वारा  खुला  के जरिए तलाक की एक याचिका को सुनने के लिए राजी हो गया है. सुप्रीम कोर्ट में  इस याचिका में केरल हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी गई है जिसमें उसने मुस्लिम महिलाओं को खुला के जरिए अपने पति से तलाक लेने की छूट दी गई.  एक मुस्लिम महिला अपने शौहर से अलग होना चाहती थी, उसने खुला के जरिए शौहर को तलाक दे दिया.केरल हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए  अब यह मामले सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है.

सुप्रीम कोर्ट में सबसे पहले खुला उस समय चर्चा में आया था जब ‘तलाक-ए-हसन’ के मामले में सुनवाई हो रही थी. तब जस्टिस एस.के. कौल और जस्टिस एम.एम. सुंदरेश की बेंच ने कहा कि अगर पति और पत्नी एक साथ नहीं रहना चाहते तो संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत तलाक दिया जा सकता है. तलाक-ए-हसन के मामले में शौहर अपनी बीवी को तीन महीने में एक-एक कर तीन बार तलाक बोलता है. तीन महीने पूरे होने और आखिरी बार तलाक बोलने पर दोनों के बीच रिश्ता खत्म हो जाता है.

 इस्लामिक कानून में निकाह  दो पक्षों के बीच एक अनुबंध है. लेकिन कुछ मामलों में पति-पत्नी के बीच तलाक हो जाता है. इस्लामिक कानून में तलाक को एक बुराई माना जाता है. लेकिन कुछ मामलों में इस बुराई को एक आवश्यकता के रूप में माना जाता है . मुस्लिम कानून के तहत,  शौहर या उनकी बेगम की इच्छा से या दोनों के आपसी समझौते से निकाह को समाप्त किया जा सकता है. यदि शौहर के अनुरोध पर निकाह  भंग हो जाता है तो इसे तलाक कहा जाता है. इसी तरह, बेगम भी अपने शौहर को तलाक दे सकती है यदि वह इस बात से संतुष्ट है कि वे दोनों अपने वैवाहिक संबंधों को निभाने में सक्षम नहीं हैं. मुस्लिम महिला अपने आप को वैवाहिक बंधन से मुक्त कर सकती है जिसके लिए पति को उसे एक खुला देना होगा और जब उन्होंने ऐसा किया है तो तलाक-उल-बैन होगा.

मुस्लिम महिलाओं के पास यह विकल्प है कि वे ‘खुला’ के जरिये अपनी निकाह को समाप्त करने के अधिकार का इस्तेमाल परिवार अदालत में कर सकती हैं, ‘शरीयत काउंसिल’ जैसी निजी संस्थाओं में नहीं. कोर्ट ने कहा कि निजी संस्थाएं ‘खुला’ के जरिये शादी समाप्त करने का फैसला नहीं दे सकतीं,ना ही विवाह विच्छेद को सत्यापित कर सकती हैं. अदालत ने कहा, ‘‘वे न्यायालय नहीं हैं और ना ही विवादों के निपटारे के लिए मध्यस्थ हैं.’’ अदालत ने कहा कि ‘खुला’ मामलों में इस तरह की निजी संस्थाओं द्वारा जारी प्रमाणपत्र अवैध हैं.

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