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मन के गहनतम भावों की अभिव्यक्ति के लिए मातृभाषा ही सबसे सहज, भोजपुरी में लेखक-पाठक संबंध घनिष्ठ : सरोज सिंह

मन के गहनतम भावों की अभिव्यक्ति के लिए मातृभाषा ही सबसे सहज, भोजपुरी में लेखक-पाठक संबंध घनिष्ठ : सरोज सिंह

PATNA : मन के गहनतम भावों की अभिव्यक्ति के लिए मातृभाषा ही सबसे सहज होती है। मैंने अपने घर और परिवेश से भोजपुरी सीखी है, इसीलिए रचना के लिए आने वाले गहन भाव स्वाभाविक रूप से भोजपुरी में आते हैं। इसीलिए मैंने भोजपुरी को लेखन भाषा के रूप में चुना। उक्त बातें भोजपुरी की साहित्यकार सरोज सिंह ने कहीं। ये बातें भोजपुरी - हिंदी के प्रसिद्ध लेखक सरोज सिंह ने प्रभा खेतान फाउंडेशन, मसि इंक द्वारा आयोजित एंव श्री सीमेंट द्वारा प्रायोजित आखर कार्यक्रम में बातचीत के दौरान कही।उनसे बातचीत की हिंदी के प्रसिद्ध पत्रकार निराला बिदेसिया ने। एक सवाल के जवाब में सरोज सिंह ने कहा कि हिंदी में भी मैं लिखती हूँ, और भोजपुरी में भी, पर भोजपुरी में लेखक-पाठक अंतःसंबंध बहुत घनिष्ट है। 

भोजपुरी साहित्य में महिलाओं की उपस्थिति के सवाल पर उन्होंने कहा शिक्षा-सत्ता-सम्पत्ति से महिलाओं को दूर रखा गया। भोजपुरी समाज में यह समस्या ज्यादा रही. जबतक भोजपुरी साहित्य मौखिक परंपरा में था, तबतक महिलाओं का साहित्य में दखल था, लेकिन लिखित साहित्य के आगमन के बाद, व्यवस्थित शिक्षा से बाहर होने कारण महिलाएं साहित्य में पीछे छूट गयीं. स्त्री-विषयों पर स्त्रियां ज्यादा जीवंत साहित्य की रचना कर सकती हैं, क्योंकि उन्होंने इन विषयों को जिया होता है। उन्होंने हिंदी में "द्रौपदी" और भोजपुरी में एक कविता सुनाई।अपनी आगामी योजनाओं के बारे में उन्होंने बताया कि वे फिलहाल भोजपुर क्षेत्र के व्यंजनों और खान-पान के इतिहास पर शोधपरक रचना कर रही हैं। 

प्रसिद्ध कथाकार ऋषिकेश सुलभ ने कहा कि सरोज सिंह के पास कहानियों की नई भाषा और नया मुहावरा है। उनकी लेखनी में अपनी मातृभाषा की महक है। भगवती प्रसाद द्विवेदी जी ने भोजपुरी में स्त्री लेखन के बारे में विस्तार से जानकारी दी। वहीं भैरवलाल दास जी ने भोजपुरी के थरुहट समाज जो मातृसत्तात्मक रही उसके विषय में कहा। कार्यक्रम में पद्मश्री उषा किरण खान, कथाकार ऋषिकेश सुलभ, भैरवलाल दास, शिव कुमार मिश्र, रत्नेश्वर सिंह, संजय चौधरी आदि लोग मौजूद हुए।


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