2024 से बड़ी आस, 5 राज्यों का चुनाव भी पास, लोकसभा चुनाव तक गर्म रहेगी सियासी फिजा, जानिए क्या है राजनीतिक समीकरण, चुनौती और डर?

पटना- साल 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं. इस साल के अंत तक मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के अलावा दक्षिण भारतीय राज्य तेलंगाना और मिज़ोरम में विधानसभा के चुनाव होंगे. इन चुनावों को लेकर राजनीतिक सरगर्मियां तेज़ हो गई हैं, हलचल काफ़ी बढ़ गई है.

छत्तीसगढ़ में 90 सीटे विधानसभा की हैं. भूपेश बघेल के नेतृत्व में कांग्रेस साल 2018 में कांग्रेस ने भारतीय जनता पार्टी  को करारी शिकस्त दी थी.  कांग्रेस यहां 68 सीटों पर जीतकर भाजपा के लिए महज 15 सीटें छोड़ी थी. तब से भाजपा काम नहीं कर पाई है और भूपेश बघेल ने राज्य और पार्टी दोनों में अपनी स्थिति मजबूत कर ली है. पिछले चुनाव में पांच सीटें जीतने वाली जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ अब इस बार कमजोर स्थिति में है और बहुजन समाज पार्टी अपनी वफादारी के मामले में लचीली साबित हो रही है.

मध्य प्रदेश में विधानसभा की 230 सीटे हैं . यहां शासन में भाजपा है.साल 2018 में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ ने पार्टी को राज्य में जीत दिलाई थी.  बाद में भारतीय जनता पार्टी  के वरिष्ठ नेता और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कांग्रेस से ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों को भाजपा में शामिल करके सरकार गिराने में कामयाबी हासिल की. इससे थोड़ी देर के लिए भाजपा में भी तनाव की स्थिति उत्पन्न हो गई थी.भाजपा के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र तोमर भी सिंधिया के इलाके से ही आते हैं और कई दशकों तक एक-दूसरे के धुर विरोधी रहने के बाद अब उन्हें एक साथ ही चुनाव लड़ना होगा.कांग्रेस और कमलनाथ ने इस चुनाव को  करो या मरो का संघर्ष बना दिया है।. कमलनाथ के लिए यह चुनाव इतना महत्त्वपूर्ण है कि जब उन्हें पार्टी प्रमुख बनाने पेशकश की गई तो उन्होंने उसे ठुकरा दिया, क्योंकि उन्हें लग रहा है कि कांग्रेस के पास राज्य में सत्ता में आने का एक और मौका है.

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आदिवासी आबादी का मतदान किस ओर रहेगा यह देखना महत्त्वपूर्ण होगा। कांग्रेस या भाजपा, जिसे भी आदिवासी समाज का वोट मिलेगा उस दल को फायदा मिलने की उम्मीद है.

मिजोरम में विधानसभा की 40 सीटें हैं, जोरमथांगा के नेतृत्व वाला मिजो नैशनल फ्रंट ईसाई बहुल राज्य अपनी सीमा अशांत मणिपुर से साझा करता है और कभी भूमिगत नेता लालडेंगा के लेफ्टिनेंट रहने वाले यहां के 78 वर्षीय नेता जोरमथांगा हमेशा इस पर जोर देते हैं कि उनके राज्य को सावधानीपूर्वक चलना होगा.मणिपुर से कुकी शरणार्थियों का आना राज्य पर अस्थिर प्रभाव डाल सकता है.

राजस्थान में विधानसबा की 200 सीटें हैं. अशोक गहलौत दोहरी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. प्रदेश के बड़े कांग्रेस नेता सचिन पायलट को दिया गया आश्वासन पूरा नहीं किया गया. लिहाजा, जहां चुनाव में कांग्रेस भाजपा से लड़ेगी, वहीं एक तरह से वह खुद से भी लड़ रही होगी.भाजपा ने अपने मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में अब तक किसी का नाम तय नहीं किया है. पार्टी अभी भी अपनी रणनीति पर काम कर रही है. फिर भी पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र शेखावत के साथ-साथ नए पदोन्नत किए गए केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल भी इस बार चुनावी मैदान में हैं. इससे इस बार के चुनावी परिणाम दिलचस्प होने की उम्मीद है.

तेलंगाना में विधानसबा की विधानसभा की 119 सीटें हैं.के चंद्रशेकर राव मुख्यमंत्री हैं. इस बार के विधानसभा चुनाव में असल परीक्षा भारत राष्ट्र समिति के बजाय भारतीय जनता पार्टी  के लिए होगी. साल 2018 के चुनाव में महज एक सीट जीतने वाली पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनाव और कई उपचुनावों में अच्छा प्रदर्शन कर कई सीटों पर जीत दर्ज की है.करिश्माई वक्ता माने जाने वाले प्रदेश के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने बड़े पैमाने पर कल्याणकारी एजेंडे को आगे बढ़ाया है और पहले उन्होंने राष्ट्रीय महत्त्वाकांक्षाओं के साथ शुरुआत की थी, जिसे अब उन्होंने त्याग दिया है.कड़ी लड़ाई होने की उम्मीद है.

भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस, दोनों के लिए बहुत मायने रखते हैं क्योंकि पिछले विधानसभा के चुनावों में कांग्रेस को मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में जीत हासिल हुई थी.इन राज्यों में किसी तीसरी राजनीतिक शक्ति की ग़ैर-मौजूदगी में मुक़ाबला कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच आमने-सामने का है.जहाँ छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस की सरकारें पाँच सालों तक चलीं, वहीं मध्य प्रदेश में उनकी सरकार तब गिर गई जब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने संगठन से बग़ावत करके अपने समर्थकों के साथ भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया.कांग्रेस के 22 विधायक उनके साथ भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए थे, सरकार गिर गई जिसके बाद भारतीय जनता पार्टी फिर से मध्य प्रदेश की सत्ता में लौट आई.

विधानसभा के चुनावों का ‘वोटिंग पैटर्न’ आम चुनावों से बिलकुल अलग होता है और ज़रूरी नहीं है कि राज्यों के चुनावों के नतीजों से इस बात का अंदाज़ा लगाया जा सके कि कुछ ही महीनों के बाद होने वाले आम चुनावों पर इनका कितना असर पड़ेगा.इन तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि गुजरात और उत्तर प्रदेश के बाद लोकसभा में अगर भाजपा को सबसे ज़्यादा सीटें मिलीं थीं तो वो इसी इलाके से मिलीं थीं.

वहीं अगर तीन राज्यों में भाजपा का ख़राब प्रदर्शन होता है तो फिर उसके पास सिर्फ़ उत्तर प्रदेश, असम, गुजरात और उत्तराखंड जैसे राज्य ही रह जायेंगे. इन तीन राज्यों में सिर्फ़ दो ही राजनीतिक दलों का दबदबा रहा है इसलिए लोकसभा चुनावों में विपक्ष की एकता पर यहाँ के नतीजों का असर पड़ सकता है.

राजस्थान में हर पांच सालों के बाद सत्ता परिवर्तन का एक रिवाज चला आ रहा है और विश्लेषक कहते हैं कि इसलिए कांग्रेस के सामने इस बार के चुनावों में काफ़ी चुनौतियां हैं, पार्टी की अंदरूनी कलह जो सार्वजनिक है और सत्ता विरोधी भावना भी है.हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक विधानसभा चुनाव में हार से सबक़ लेते हुए भाजपा तीनों राज्यों में किसी तरह का जोखिम नहीं उठाना चाहती है और फूंक फूंक कर कदम बढ़ा रही है.