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बिहार: 65 फीसद आरक्षण के प्रावधान को 9वीं अनुसूची में शामिल करने का अनुरोध करेगी बिहार सरकार, भारतीय संविधान की 9वीं अनुसूची क्या है,जानिए

बिहार: 65 फीसद आरक्षण के प्रावधान को 9वीं अनुसूची में शामिल करने का अनुरोध करेगी बिहार सरकार, भारतीय संविधान की 9वीं अनुसूची क्या है,जानिए

पटना-  बिहार कैबिनेट ने बुधवार को फैसला किया कि वह राज्य सरकार की नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में वंचित जातियों का आरक्षण 50 से बढ़ाकर 65 प्रतिशत किए जाने संबंधी संशोधित प्रावधानों को संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल करने के लिए केंद्र सरकार से आग्रह करेगी ताकि इन्हें कानूनी चुनौती न दी जा सके। एक अधिकारी ने यह जानकारी दी।संविधान की नौवीं अनुसूची में केंद्रीय और राज्य कानूनों की एक सूची शामिल है जिन्हें अदालतों में चुनौती नहीं दी जा सकती है। 1992 में उच्चतम न्यायालय ने पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत निर्धारित की थी। अतिरिक्त मुख्य सचिव (कैबिनेट सचिवालय) एस. सिद्धार्थ नेे कहा कि बुधवार को मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में हुई बिहार कैबिनेट की बैठक में केंद्र से इस प्रावधान को संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल करने के अनुरोध के संबंध में प्रस्ताव पारित किया गया। सिद्धार्थ ने कहा कि राज्य सरकार की राय है कि विशेष परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए बढ़े हुए आरक्षण के संशोधित प्रावधानों को संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल करने से वंचित और पिछड़े वर्गों के लिए न्याय सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी। सिद्धार्थ ने कहा कि सामान्य प्रशासन विभाग ने यह प्रस्ताव पेश किया था। बिहार में जाति सर्वेक्षण के बाद, राज्य सरकार ने इस महीने की शुरुआत में विधानसभा में इसका विश्लेषण पेश किया था  राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर से दो विधेयकों को मंजूरी मिलने के साथ ही नयी आरक्षण प्रणाली लागू करने का मार्ग प्रशस्त हो गया था, जिसके बाद नीतीश कुमार सरकार ने मंगलवार को वंचित जातियों के लिए आरक्षण बढ़ाकर 65 प्रतिशत करने के लिए राजपत्रित अधिसूचना जारी की थी।सिद्धार्थ ने कहा, ‘राज्य सरकार की राय है कि विशेष परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए बढ़े हुए आरक्षण के संशोधित प्रावधानों को संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल करने से वंचित और पिछड़े वर्गों के लिए न्याय सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी।’ 

बता दें कि भारतीय संविधान की 9वीं अनुसूची के ऐतिहासिक रूप की करते हैं तो हम पाते है कि इसे भारत में हुए भूमि सुधार कानूनों के सन्दर्भ में लाया गया था | भारत में भूमि सुधार शुरू हुए तो उन्हें मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार के न्यायालयों में चुनौती दी गई, जिसमें से बिहार में न्यायालय ने इसे अवैध घोषित कर दिया था। इस विषम परिस्थिति से बचने और भूमि सुधारों को जारी रखने के लिये ही सरकार ने प्रथम संविधान संशोधन करने का फैसला किया था जिसके फलस्वरूप 8 मई, 1951 को तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु ने अनंतिम संसद में प्रथम संविधान संशोधन विधेयक प्रस्तुत किया, जिसके पश्चात् 16 मई, 1951 को यह विधेयक चयन समिति को भेज दिया गया। चयन समिति की रिपोर्ट के बाद 18 जून, 1951 को राष्ट्रपति की मंज़ूरी के साथ ही यह विधेयक अधिनियम बन गया। 9वीं अनुसूची में केंद्र और राज्य कानूनों की एक ऐसी सूची (Schedule) है, जिसको न्यायालय के समक्ष चुनौती नहीं दी जा सकती।आपको पता होना चाहिए कि वर्तमान में संविधान की 9वीं अनुसूची में कुल 284 कानून शामिल हैं, जिन्हें न्यायिक समीक्षा संरक्षण प्राप्त है अर्थात इन्हें अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती है। 9वीं अनुसूची को वर्ष 1951 में प्रथम संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से भारतीय संविधान में शामिल किया गया था। यह पहली बार था, जब संविधान में संशोधन किया गया था। यहाँ ध्यान देने योग्य बात है कि संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल विभिन्न कानूनों को संविधान के अनुच्छेद 31B के तहत संरक्षण प्राप्त होता है।


9वीं अनुसूची प्रकृति में पूर्वव्यापी  है, जिसका अर्थ है, न्यायालय द्वारा असंवैधानिक घोषित होने के बाद भी यदि किसी कानून को 9वीं अनुसूची में शामिल किया जाता है तो वह उस तारीख से संवैधानिक रूप से वैध माना जाएगा। जैसे कि हमने आपको ऊपर ही बताया कि पहले संविधान संशोधन के माध्यम से नौवीं अनुसूची में कुल 13 कानून शामिल किये गए थे, जिसके पश्चात् विभिन्न संविधान संशोधन किये गए और अब कानूनों की संख्या 284 हो गई है।

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