पटना: देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस डर के साये में हैं। आपने सही पढा, डर के साये में। दरअसल लोकजनशक्ति पार्टी में हुई टूट के बाद कांग्रेस पार्टी अलर्ड मोड में हैं। दरअसल एक तरफ यह बातें भी फिजां में तैर रही हैं कि कांग्रेस पार्टी के कुछ विधायक टूट सकते हैं, वहीं दूसरी तरफ राज्य कांग्रेस प्रभारी भक्त चरण दास के सूबे में दौरे के बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष समेत चार कार्यकारी अध्यक्षों के भी बदले जाने की खबर है। इसके बाद प्रदेश कांग्रेस के सभी नेताओं की नींद उड गयी है। खबर यहां तक है कि दिल्ली दरबार भी कुर्सी बचाने व टूट से बचने के लिए अपना पूरा दम दिखा रहा है।
इस बार पार्टी की है अलग सोच
राजनीति पर अपनी पैनी नजर रखने वाले लोगों की माने तो कांग्रस पार्टी किसी भी कीमत पर पार्टी में टूट नहीं होने देना चाहती है। लोकजनशक्ति पार्टी में टूट होने के बाद पार्टी अपने विधायकों, नेताओं को पूरी तरह से एकजुट रखना चाहती है। इधर पार्टी के बिहार प्रदेश प्रभारी भक्त चरण दास के दौरे के बाद इस चर्चा ने भी जोर पकड लिया है कि सूबे में कांग्रेस के अध्यक्ष समेत चार कार्यकारी अध्यक्ष को भी हटाया जा सकता है। जाहिर है, ऐसी खबर के बाद पार्टी के नेताओं की लाइजनिंग भी तेज हो गयी है। सूत्रों की माने तो इस बार पार्टी की विशेष नजर पिछड़ी-अति पिछड़ी और दलित नेताओं पर है। इधर भक्त चरण दास भी सूबे में लगातार एक्टिव हैं और यहीं पर रूक कर सबको फीडबैक लेने के साथ ही प्रदेश कांग्रेस के वरीय नेताओं को दिल्ली में आलाकमान से मिलने को भी कहा है। ज्ञात हो कि वर्तमान में सूबे के मंत्री और जदयू के वरिष्ठ नेता अशोक चौधरी ने करीब तीन साल पहले कांग्रेस पार्टी से चार एमएलसी को तोड़ा था। उसके बाद से ही कांग्रेसी विधायकों को तोड़ने के लिए डोरे डालने की कोशिश जारी है।
विधानसभा चुनाव की हार से सबक
दरअसल गुजरे विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी का प्रदर्शन आशा के अनुरूप नहीं रहा। राजनीति के जानकारों की माने तो कांग्रेस पार्टी में टूट की खबरों का यह भी एक अहम कारण हो सकता है। सूबे में पद देने में कांग्रेस ने सोशल इंजीनियरिंग में कोताही बरती। इसे भी पार्टी के कमजोर प्रदर्शन का कारण माना जा रहा है। अब पार्टी कमर कसते हुए इसी नजरिये से पद देने पर विचार कर रही है और पार्टी के कुछ नेता लगातार दिल्ली दरबार के संपर्क में हैं और वहां पर हाजिरी लगा रहे हैं। जिन लोगों के नाम सूबे में कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चर्चा में सबसे आगे हैं उनमें राजेश राम, प्रेमचंद मिश्रा, अनिल शर्मा, श्याम सुंदर सिंह धीरज, अखिलेश सिंह व कौकब कादरी शामिल हैं। पार्टी को सूबे में आगे बढ़ाने के लिए ऐसे नेता की जरूरत है तो तार्किक रूप से अपनी बातों को रखने के साथ ही दमदार तरीके से भी अपनी बातों को रख पाता हो।
पार्टी का जातीय समीकरण पर ध्यान
सूबे की अन्य प्रमुख पार्टियां राजद, बीजेपी व जदयू पिछड़ी, अति पिछड़ी और दलित जातियों को अनदेखा नहीं करती हैं। इस बार पार्टी भी इसी समीकरण पर ध्यान दे रही है। इन तीनों की ही पकड़ सूबे में सबसे ज्यादा है। वर्तमान में अगर देखा जाये तो प्रदेश कांग्रेस के चार कार्यकारी अध्यक्ष हैं, जिनमें राजपूत, भूमिहार, हरिजन व मुस्लिम हैं। जानकारों की माने तो पिछड़ी, अति पिछड़ी और दलित जातियों की हकमारी अध्यक्ष से लेकर कार्यकारी अध्यक्ष की कुर्सी देने में हुई है। इसलिए कांग्रेस इस बार इस पर विचार करने के मूड में है। पार्टी पर इस समीकरण का दबाव है। पार्टी के वरिष्ठ पिछड़ी- अति पिछड़ी जाति के नेताओं चंदन यादव, मंजीत आनंद साहु, प्रवीण कुशवाहा, विजेन्द्र चौधरी जैसे नेता पार्टी में हैं, जिन पर पार्टी की नजर है।
हटेंगे वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 70 सीटों पर लड़ा और महज 19 सीट जीत पाई। इस तरह कांग्रेस बिहार में 29 सीट से 19 पर आ गई। यहां तक कहा गया कि इतनी सीटों पर कांग्रेस की जगह राजद या लेफ्ट चुनाव में अपने उम्मीदवारों को उतार देता तो विधानसभा चुनाव के परिणाम ही कुछ और आते। पार्टी को हुए दस सीटों के नुकसान ने खेल को ही बिगाड़ कर रख दिया। हालांकि पार्टी के कमजोर प्रदर्शन को लेकर नेताओं, समर्थकों के अपने तर्क हैं। इनकी माने तो कांग्रेस उम्मीदवारों की हार का कारण यह था कि उनको जो भी सीटें मिली, वह कमजोर थी। जबकि यह भी सच है कि पार्टी में चल रही आंतरिक गुटबाजी ही उसके लिए भारी पड गयी। बिहार के शीर्ष कांग्रेसी नेताओं पर रुपये लेकर टिकट देने के भी आरोप लगे। हालांकि इस बारे में भक्त चरण दास अपनी रिपोर्ट को दिल्ली दरबार में सौंप चुके हैं। जानकारों की माने तो वर्तमान में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मदन मोहन झा का हटना लगभग तय है। पार्टी के सक्रिय विधायक के रूप में पहचाने जाने वाले अजीत शर्मा चूंकि कांग्रेस ने विधायक दल का नेता हैं इसलिए वह प्रदेश अध्यक्ष नहीं होंगे। अब आलाकमान पर सबकी नजरें टिकी हुई हैं कि सूबे में पार्टी का नेतृत्व संभालने की जिम्मेदारी किस नेता को दी जायेगी।