BIHAR NEWS : अस्पताल की खस्ता हालत! 1,2,3...6 वेंटिलेंटर मौजूद, लेकिन नहीं हो रहा इस्तेमाल, इलाज के अभाव में दम तोड़ रहे हैं मरीज

ARA : हजारों कोशिशों के बाद भी बिहार के सरकार स्वास्थ्य व्यवस्था को पूरी तरह से सुधारा नहीं जा सका है। लगभग एक माह पहले सीएम नीतीश कुमार ने सभी जिलों के सिविल सर्जन को आदेश दिया था कि अस्पतालों में भेजे गए वेंटिलेटर्स को चालू करने की व्यवस्था करें। लेकिन इसके बाद भी हालात जस के तस बने हुए हैं। मामला आरा जिले के सदर अस्पताल से जुड़ा है। जहां एक दो नहीं, पूरे छह वेंटिलेटर्स की सुविधा उपलब्ध है, लेकिन बात अगर मरीजों को इससे होनेवाले लाभ की करें तो उसकी संख्या शून्य है। बुधवार को यहां शहर के मौला बाग से आए एक मरीज की सिर्फ इसलिए मौत हो गई क्योंकि अस्पताल में वेंटिलेटर्स का लाभ नहीम मिल सका। अब मरीज की मौत के बाद अस्पताल प्रबंधन की नींद टूटी है और वेंटिलेटर्स को शुरू करने की कोशिश तेज कर दी गई है।
कोविड वार्ड के प्रभारी डॉ पीके सिन्हा ने बताया कि गुरुवार को आईसीयू का वेंटिलेटर चालू करने के लिए टेक्नीशियन के साथ चर्चा की गई है। एक-दो आवश्यक पार्ट-पुर्जों की आवश्यकता है, जिसके उपलब्ध हो जाने पर अस्पताल प्रशासन जल्द ही इसे चालू करने के लिए प्रयासरत है। इसके पूर्व जिला प्रशासन ने अनुरोध किया था कि सक्षम लोग आएं और इसे चलायें। 29 अप्रैल को सिविल सर्जन और डॉक्टरों की बैठक में डीएम ने कहा था कि सदर अस्पताल में वेंटिलेटर उपलब्ध हैं। उसे चलाने के लिए कर्मी नहीं रहने के कारण इसका उपयोग नहीं हो पा रहा है। ऐसी स्थिति में जिला प्रशासन की ओर से अपील की गयी थी कि मानवहित में वेंटिलेटर को चलाने संबंधित कार्य के लिए जो लोग सक्षम हैं, वे सिविल सर्जन और जिला प्रशासन से संपर्क स्थापित कर जानकारी दे सकते हैं।
एक साल पहले आया,लेकिन इस्तेमाल करना किसी को नहीं आता
मालूम हो कि सदर अस्पताल के आईसीयू में पिछले एक साल से वेंटिलेटर बिना इस्तेमाल के पड़े हैं। कोरोना की दूसरी लहर में गंभीर रूप से प्रभावित मरीजों के इलाज में वेंटिलेटर का इस्तेमाल किया जाता है। वेंटिलेटर के अभाव में मरीजों को पटना के अस्पतालों में चक्कर लगाना पड़ रहा है। वहीं सदर अस्पताल के आईसीयू में एक नहीं छह वेंटिलेटर का इस्तेमाल नहीं हो रहा है। बताया जाता है कि पिछले साल ही सभी छह वेंटिलेटर आया था। इसे इंस्टॉल भी कर दिया गया। लेकिन, इसे इस्तेमाल करना किसी डॉक्टर या कर्मी को नहीं आता है। इसी कारण यह शोभा की वस्तु बनकर रह गया है।