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हाईकोर्ट हैरान! बिहार में अब तक नहीं हुआ लोक प्रहरी संस्था का गठन, अधिकारी खुद पद धारण कर दे रहे हैं मुखियों पर कार्रवाई के आदेश

हाईकोर्ट हैरान! बिहार में अब तक नहीं हुआ लोक प्रहरी संस्था का गठन, अधिकारी खुद पद धारण कर दे रहे हैं मुखियों पर कार्रवाई के आदेश

PATNA : पंचायती राज कानून में लोक प्रहरी की भूमिका होने के बावजूद बिहार में आजतक इस संस्था का गठन नहीं किया गया है। जिसको लेकर हाईकोर्ट ने हैरानी जताई है। पटना हाईकोर्ट ने इस बात पर हैरानी जताई है कि बिहार में लोक प्रहरी की अनुशंसा बगैर ही सरकार मुखिया पर कार्रवाई कर रही है।जबकि ऐसा किया जाना नियमों के विरुद्ध है। पटना हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि मुखिया या उप मुखिया को हटाने से पहले अगर लोक प्रहरी की संस्तुति नहीं ली गई है तो वैसी कार्रवाई गैर कानूनी होगी। 

मामला सीतामढ़ी के डूमरी प्रखंड के बिशुनपुर ग्राम पंचायत से जुड़ा है, जहां पद के दुरुपयोग के आरोप पर पंचायती राज विभाग के प्रधान सचिव के आदेश से मुखिया कौशल राय को पदच्युत कर दिया गया। किंतु उक्त कार्रवाई करने में लोक प्रहरी से कोई संस्तुति नहीं ली गई। पंचायती कानून की संशोधित धाराओं में प्रावधान है कि मुखिया/उप मुखिया, प्रमुख को हटाने से पहले लोक प्रहरी की अनुशंसा जरूरी है। जिसके बाद मुखिया ने कोर्ट में सरकार के फैसले के खिलाफ याचिका दायर की थी।

हाईकोर्ट ने कहा राज्य सरकार के अधिकारी खुद बन गए लोक प्रहरी

हाईकोर्ट में न्यायाधीश डॉ. अनिल कुमार उपाध्याय की एकलपीठ ने कौशल राय की याचिका पर सुनवाई की। इस दौरान याचिकाकर्ता के वकील राजीव कुमार सिंह ने कोर्ट को बताया कि  एक दशक पहले ही पंचायती राज कानून में ऐसा संशोधन किया गया जिसके अनुसार पंचायती कानून की संशोधित धाराओं में प्रावधान है कि मुखिया/उप मुखिया, प्रमुख को हटाने से पहले लोक प्रहरी की अनुशंसा जरूरी है। लेकिन आजतक लोक प्रहरी संस्था का गठन तक नहीं हुआ। नतीज़ा है कि राज्य सरकार के अधिकारी लोक प्रहरी की शक्तियों को खुद से धारण कर इस्तेमाल कर रहे हैैं जो गैर कानूनी है। वहीं सरकारी मनमानेपन की बात भी सामने आई। 

वहीं अधिवक्ता राजीव कुमार सिंह कोर्ट को बताया कि उसी प्रखंड के बरियारपुर पंचायत के मुखिया पर ज्यादा गंभीर आरोप होते हुए भी उन्हें केवल चेतावनी देकर छोड़ दिया गया जबकि याचिकाकर्ता को उसके पद से हटा दिया गया। लोक प्रहरी जैसी संस्था के नही होने से अफसरशाही ऐसी मनमानी कर रही है। हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता की तरफ पेश किए गए तथ्यों पर सहमति जाहिर करते हुए उनके मुखिया पद से हटाए जाने को लेकर प्रधान सचिव के आदेश को निरस्त कर दिया। हाईकोर्ट का यह फैसला उन सभी मुखियाओं के लिए उदाहरण साबित होगा, जिनके खिलाफ पूर्व में पंचायती राज विभाग द्वारा कार्रवाई की गई है।


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