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भाजपा इस हथियार से नीतीश- लालू की ओबीसी राजनीति की करेगी काट, पीएम मोदी के राजनीतिक एटम बम से सांसत में हैं जातीय जनगणना का समर्थन करने वाले, बीजेपी चौका छक्का लगाने को है तैयार

भाजपा इस हथियार से नीतीश- लालू की ओबीसी राजनीति की करेगी काट, पीएम मोदी के राजनीतिक एटम बम से सांसत में हैं जातीय जनगणना का समर्थन करने वाले, बीजेपी चौका छक्का लगाने को है तैयार

दिल्ली- नीतीश कुमार ने एनडीए में रहते हुए नरेंद्र मोदी के खिलाफ गड्ढा खोदना शुरू कर दिया था. नीतीश कुमार ने 2019 में ही बिहार विधानसभा से जातीय जनगणना का प्रस्ताव पास करवा लिया था. अगले साल 2020 में एक बार फिर विधानसभा में प्रस्ताव पास करवाया गया. 2021 में वह बिहार का सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले और उनसे आग्रह किया कि देश भर में जाति आधारित जनगणना होनी चाहिए.

इंडिया बैनर वाला एकीकृत इंडिया महागठबंधन में शामिल दल राष्ट्रीय जनगणना में जातियों की गिनती की मांग कर रहा है. राहुल गांधी, ममता बनर्जी, स्टालिन, मल्लिकार्जुन खड़गे समेत कई नेताओं ने राष्ट्रीय जनगणना में जातियों की गिनती की मांग की है.राहुल गांधी ने तो नरेंद्र मोदी को 2011 के जातीय जनगणना की रिपोर्ट सार्वजनिक करने की चुनौती दी थी. तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार ने बिहार में जातीय जनगणना कराकर इस मुद्दे को पहले ही हवा दे चुके हैं.

जातीय जनगणना के जरिये नीतीश-तेजस्वी बिहार में बीजेपी की हिंदुत्व की राजनीति का काट तलाश रही है तो कांग्रेस से तमाम विपक्षी दलों को भी ओबीसी राजनीति के जरिए वोट बैंक साधना चाहते हैं. बता दें 1931 के बाद देश में कभी जातीय जनगणना नहीं हुई, एनएसओ के सर्वे से अनुमान लगाया गया कि  भारत में ओबीसी की आबादी 44.4 प्रतिशत है. क्षेत्रिय दलों की राजनीति का आधार जाति और भाषा है, इसलिए क्षेत्रिय दल जातीय गणना को महत्वपूर्म मानते हैं.

 बात बिहार की तो सरकार में शामिल प्रदेश भाजपा को भी साल 2021 में  नीतीश कुमार और लालू यादव की मांग का समर्थन करना पड़ा.लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार ने जाति आधारित जनगणना का प्रस्ताव ठुकरा दिया, तो नीतीश ने एलान किया कि बिहार में राज्य सरकार जाति आधारित जनगणना करवाएगी. 2022 में एनडीए से बाहर आकर लालू यादव के समर्थन से फिर नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बन गए, और उन्होंने बिहार में जातीय सर्वे करवा भी लिया है. एक एप में सारी जानकारियाँ एकत्र कर ली गई हैं, जिसे नीतीश सरकार कभी भी जारी कर सकती है. जाति आधारित जनगणना का मूल उद्देश्य यह है कि ओबीसी वर्ग को उसकी जनसंख्या के आधार पर आरक्षण का लाभ दिया जाए. जो आंकड़े तैयार किए गए हैं, उनमें बताया जाएगा कि किस जाति की कैसी शैक्षणिक और आर्थिक स्थिति है. जाति आधारित जनगणना करवा कर नीतीश कुमार और लालू यादव ने पूरे देश में हिन्दुओं को 1989 की तरह जातीय आधार पर बांटने की गहरी साजिश रची थी.

नीतीश कुमार, लालू यादव और अखिलेश यादव ने इंडिया महागठबंधन की मुम्बई बैठक में राजनीतिक प्रस्ताव में जातीय आधारित जनगणना की मांग की कोशिश की तो ममता बनर्जी, केजरीवाल और उद्धव ठाकरे ने विरोध किया. जब प्रस्ताव में जातीय जनगणना पर विवाद पैदा हो गया तो  प्रस्ताव पास नहीं हो सका. बिहार की हो चुकी जातीय जनगणना चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के लिए भारी पड़ सकता है, इसका असर देश के सबसे बड़ी संख्या वाले लोकसभा सीट वाले राज्य  उत्तरप्रदेश की चुनावी राजनीति पर भी पड़ सकता है.इसकी काट भाजपा को मिल गया है.मनमोहन सरकार के दौरान  फरवरी 2014 में पिछड़ा वर्ग आयोग ने आरक्षण की वास्तविक स्थिति का आकलन करवाने की सिफारिश की थी, जिसे मनमोहन सरकार ने मंजूरी दे दी थी. इसमें यह देखना था कि ओबीसी वर्ग को आरक्षण का कितना लाभ मिला, किन जातियों को कितना लाभ मिला, और कौन सी जातियां लाभ उठाने से वंचित रह गई.उद्देश्य था कि जो जातियां आरक्षण का लाभ उठाने में वंचित रह गई, उन्हें कैसे मुख्यधारा में लाकर लाभ दिया जाए.आयोग ने यह सब काम करवाने के लिए मनमोहन सरकार से बजट माँगा था, लेकिन मनमोहन सरकार के  पैसा अलॉट करने से पहले हीं चुनाव हो गया. नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने, उन्होंने 2017 में दिल्ली हाईकोर्ट की पूर्व मुख्य न्यायाधीश रोहिणी की अध्यक्षता में एक कमेटी बना दी. शुरू में कमेटी को अध्ययन के लिए सिर्फ 12 हफ्ते का समय दिया गया था.कार्यकाल बढ़ता रहा और अब इस समिति ने अपना रिपोर्ट सौंप दिया. न्यायाधीश रोहिणी ने यह रिपोर्ट 31 जुलाई को राष्ट्रपति को सौंपी. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि ओबीसी आरक्षण का लाभ सिर्फ दबंग जातियों ने ही उठाया है, अब उन जातियों को आरक्षण के लाभ से वंचित किया जाना चाहिए. रोहिणी कमेटि का यह अध्ययन लोकसभा चुनाव 2024 में नीतीश-लालू की जातीय जनगणना की राजनीति की काट में मोदी के लिए सबसे बड़ा हथियार बन सकता है.

रोहिणी समिति की रिपोर्ट संसद के विशेष सत्र में रखी जाएगी और आरक्षण का लाभ उठाने वाली नेताओं की जातियों को सही स्थिति से परिचित करवाएगी. पीएम नरेंद्र मोदी और भाजपा को बिहार और उत्तर प्रदेश में लालू, नीतीश और अखिलेश की राजनीति की को भोथरी करेगी. भाजपा के लिे ये सबसे बड़ा हथियार साबित हो सकता है.

रोहिणी समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण का 95 फीसदी लाभ सिर्फ 25 प्रतिशत ओबीसी जातियों ने उठाया, जबकि अति पिछड़ी 75 प्रतिशत जातियों को कोई लाभ हीं नहीं मिला. रोहिमी समिति की  रिपोर्ट ओबीसी के नाम पर नीतीश लालू जैसे नेताओं जिन्होंने अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश की है को ओबीसी समाज में ही बेपर्दा कर सकती है.नीतीश ने पहले जिस जातीय आयोजन में शामिल होने से इनकार किया था, बाद में वे उसमें शामिल हुए. उन्हें तब शायद इसका अनुमान नहीं रहा होगा कि आगे चल कर उन्हें इसका कितना फायदा मिलने वाला है, वहीं रोहिणी कमेटि की रिपोर्ट आने के बाद भाजपा इस हथियार से इंडिया महागठबंधन के जातीय जनगणना की मांग करने वाले नेताओं को को करारा जवाब दे पाएगी और ओबीसी की राजनीति करने वाले नेताओं की सच्चाई जनता के सामने बेपर्दा कर सकती है.


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