बिहार उत्तरप्रदेश मध्यप्रदेश उत्तराखंड झारखंड छत्तीसगढ़ राजस्थान पंजाब हरियाणा हिमाचल प्रदेश दिल्ली पश्चिम बंगाल

LATEST NEWS

BREAKING : बिहार में आरक्षण 65 फीसदी करने पर पटना हाईकोर्ट ने नीतीश सरकार से मांगा जवाब

BREAKING : बिहार में आरक्षण 65 फीसदी करने पर पटना हाईकोर्ट ने नीतीश सरकार से मांगा जवाब

पटना. बिहार सरकार द्वारा पिछड़ी  जातियों व अन्य के लिए आरक्षण कोटा 50 प्रतिशत से बढ़ाकरे 65 फीसदी करने के विरुद्ध पटना हाईकोर्ट में शुक्रवार को सुनवाई हुई. चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ ने गौरव कुमार व अन्य की जनहित याचिकायों पर सुनवाई की। कोर्ट ने  नये आरक्षण कानून पर रोक लगाने से इंकार कर दिया है.  हालंकि कोर्ट ने राज्य सरकार को 12 जनवरी,2024 तक जवाब देने का निर्देश दिया। वहीं इस मामले अब अगली सुनवाई जनवरी 2024 में होगी।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नीत राज्य सरकार ने जातीय गणना सर्वे के बाद विभिन्न वर्गों की आबादी के हिसाब से आरक्षण बढ़ाया है. इसके तहत एससी को 20 फीसदी, एसटी को 2 फीसदी और  पिछड़ी जाति (बीसी) और अत्यंत पिछड़ी जाति को  43 फीसदी आरक्षण दिया गया है. बिहार विधानमंडल के शीतकालीन सत्र में इसे सर्वसम्मती से पारित भी किया गया. वहीं राज्यपाल की ओर से स्वीकृति मिलने के बाद नये आरक्षण को बिहार गजट में भी प्रकाशित किया जा चुका है. 

हालांकि पिछले दिनों आरक्षण बढ़ाने के बिहार सरकार के निर्णय को पटना हाई कोर्ट में चुनौती दी गई. इसे लेकर याचिका दायर की गई और नये आरक्षण कानून पर रोक लगाने  की मांग गई. लेकिन फिलहाल कोर्ट ने नये आरक्षण कानून पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है. वहीं राज्य सरकार को 12 जनवरी 2024 तक जवाब देने का निर्देश दिया है. दरअसल, बिहार में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ी जाति (बीसी) और अत्यंत पिछड़ी जाति समूहों के लिए कोटा में 65% तक की बढ़ोतरी को चुनौती देते हुए पटना हाई कोर्ट में पिछले महीने ही एक अन्य याचिका दायर की गई। यह लोकहित याचिका अंजनी कुमारी तिवारी ने दायर की है।

याचिका में इस पर आपत्ति जताई गई है कि जाति आधारी सर्वेक्षण अधूरा ऐवं पक्षपाती है।याचिका में कहा गया है कि कोटा बढ़ोतरी कानून में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया गया है। इसमें शीर्ष अदालत ने तय किया था कि किसी भी हाल में आरक्षण की सीमा पचास प्रतिशत ने नहीं बढ़ाई जा सकती है । इस लोकहित याचिका द्वारा इन संशोधनों पर रोक लगाने की मांग की गयी है। संशोधित अधिनियम राज्य सरकार ने पारित किया है,वह भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। अब इस पर राज्य सरकार को 12 जनवरी 2024 तक जवाब देना होगा. 

Suggested News