जनप्रतिनिधियों और प्रशासन को मुंह चिढ़ा रही है ग्रामीणों का बनाया चचरी पुल, बाढ़ में मिट्टी बहने के बाद अब तक नहीं बना वैकल्पिक रास्ता

जनप्रतिनिधियों और प्रशासन को मुंह चिढ़ा रही है ग्रामीणों का बनाया चचरी पुल, बाढ़ में मिट्टी बहने के बाद अब तक नहीं बना वैकल्पिक रास्ता

KATIHAR : एक तरफ बिहार सरकार बड़े-बड़े पुल का निर्माण कर रही है, वहीं दूसरी तरफ ग्रामीणों की बस्ती में बाढ़ में तबाह हो चुके रास्तों को सुधारने के लिए छह-छह साल तक सुध नहीं ली जाती है। नतीजा यह कि ग्रामीण अपनी इंजीनियरिंग कौशल का प्रयोग कर खुद चचरी पुल का निर्माण कर अपने लिए अपने लिए रास्ते का निर्माण करने को मजबूर है। ग्रामीणों की मांग है कि गांव में चचरी पुल की जगह स्थायी पुल का निर्माण किया जाए।

ग्रामीणों की इंजीनियरिंग का यह मामला दो विधानसभा कटिहार और कोढ़ा  के बीच बसे हसनगंज प्रखंड के चापी घाट की है। जहां घाट को जोड़ने वाले पुल 2017 के प्रलयकारी बाढ़ में ध्वस्त हो गया था। हर साल बाढ़ राहत के नाम करोड़ों रुपए फूंकनेवाली सरकार उस घटना के बाद से अब तक यहां दूसरा पुल नहीं बना सकी है। पुल नहीं के कारण स्थिति ऐसी हो जाती है कि या तो वह पानी से भरे रास्ते में उतर कर जाएं या 15 किमी लंबे रास्ते का इस्तेमाल करें। इस समस्या को दूर करने के लिए ग्रामीणों द्वारा एक लाख की राशि से बांस के चचरी पुल का निर्माण कराया है। जिस पर भारी मोटरसाइकिल भी जान जोखिम में लेकर गुजरते हैं। तस्वीर में देख सकते हैं कि कैसे एक साथ तीन बाइक बांस के पुल पर गुजर रहे हैं।

जनप्रतिनिधि और प्रशासन से निराश

महानंदा और कोसी को जोड़नेवाली चापी घाट को लेकर लोगों का कहना है कि जब 2017 में यहां बाढ़ में मिट्टी बहने से रास्ता बंद हो गया तो दोनों विधानसभा के विधायकों, सांसद सहित जिला प्रशासन से भी पुल बनाने की मांग कर चुके हैं। लेकिन कहीं से पुल को बनाने को लेकर गंभीरता नहीं दिखी। ऐसे में लोग चाहते हैं कि जल्द दोनो विधानसभा को जोड़ने वाले हसनगंज के चापी घाट पर एक बार फिर पुल का निर्माण करवाया जाए।

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