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बच्चों में पढ़ने की ललक पैदा होती है बाल साहित्य से

बच्चों में पढ़ने की ललक पैदा होती है बाल साहित्य से

भाषा संवर्धन में बालसाहित्य का बेहद महत्व है। अच्छे बालसाहित्य का अध्ययन बच्चों को साहित्य से संवाद करने के अवसर प्रदान करता है और पढ़ी जा रही कहानी, कविता आदि पर अपनी राय बनाने के अवसर देता है। इससे बच्चों के भाषिक और संज्ञानात्मक कौशल का विकास होता है, साथ ही बालसाहित्य बच्चों की भावनात्मक बुद्धिमत्ता के विकास के भी अवसर प्रदान करता है।

कहानियों में वह ताकत होती है जो बच्चों के भावनात्मक विकास में सहायक हो सकती है। उदाहरण के लिए किसी कहानी में यदि बच्चे किसी विकट परिस्थिति से बाहर निकलने के लिए स्वयं निर्णय लेते हैं तो यह बात बच्चों के मन पर गहरी छाप छोड़ सकती है। बालसाहित्य बच्चों की रचनाशीलता को निखारता है, उन्हें नया सोचने और अपनी सोच को अभिव्यक्त करने के अवसर प्रदान करता है। बालसाहित्य बच्चों के व्यक्तित्व निर्माण में भी मदद करता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि बालसाहित्य हमारी साहित्यिक और सांस्कृतिक विरासत को बच्चों तक पहुँचाने का कार्य करता है।

CHILDRENS-CHILDHOOD-ARISES-FROM-CHILDHOOD2.jpgबालसाहित्य का बच्चों के लिए उपयोग करने से पहले बालसाहित्य है क्या इसके बारे में भी स्पष्टता होना आवश्यक है। बालसाहित्य को सामान्यतः बड़ों की बड़ी दुनिया में एक छोटा साहित्य लेखन माना जाता है। बच्चों की हरकतें, क्रियाकलाप, रोना-मचलना आदि सभी बचपना है मगर साहित्य में इस बचपने का सृजन करना कितना कठिन है, यह आज के बालसाहित्य को पढ़कर आसानी से समझा जा सकता है।

आम तौर पर बालसाहित्य को चार श्रेणियों में बाँटा जाता है-

वह साहित्य जिसे बड़ों द्वारा लिखा जाता है मगर उसके पात्र बच्चे होते हैं। बच्चों के बारे में बड़ों द्वारा लिखा गया साहित्य इस श्रेणी में रखा जा सकता है। ऐसे साहित्य को बच्चे पढ़ सकते हैं, कई बार पढ़ते भी हैं मगर यह साहित्य बच्चों को सम्‍बोधित करके नहीं लिखा जाता। ऐसे लेखक को बाल मनोविज्ञान की समझ तो होनी ही चाहिए, साथ ही बच्चों से लगाव और उनके सूक्ष्म अवलोकन का अनुभव भी होना चाहिए। भक्तिकाल में सूरदास की रचनाएँ इस श्रेणी में आती हैं तो आधुनिक काल में प्रेमचंद, निर्मल वर्मा आदि को इस श्रेणी में रखा जा सकता है।

दूसरी श्रेणी में वह साहित्य आता है जिसके पाठक बच्चे होते हैं और इसे बच्चों को सम्‍बोधित करके लिखा जाता है मगर वास्तव में यह साहित्य बड़ों द्वारा बच्चों को कुछ सिखाने के उद्देश्य से लिखा जाता है और बड़े चाहते हैं कि बच्चे इसे पढ़कर कुछ सीखें। इसे लिखते समय भी यह ध्यान में रखा जाता है कि बच्चे नासमझ होते हैं और उन्हें सही मार्गदर्शन देना, सही राह दिखाना बड़ों का कर्तव्य है। पंचतंत्र, हितोपदेश की कहानियाँ, भाषा की पाठ्यपुस्तकों की रचनाएँ इसी श्रेणी में आती हैं।

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बालसाहित्य की तीसरी श्रेणी ऐसे साहित्य की है जिसे बच्चे तो पढ़ना चाहते हैं मगर बड़े नहीं चाहते कि बच्चे इसे पढ़ें। कॉमिक्स, कार्टून, भूत-प्रेत, जादू-टोने, परियों आदि की कथाएँ इस श्रेणी में रखी जा सकती हैं। इन्हें पढ़ने के लिए बच्चे झूठ बोलते हैं, छिपाकर पढ़ते हैं, बहाने गढ़ते हैं और मार भी खाते हैं। जो भी हो मगर यह सच है कि बच्चों के मन में पढ़ने के प्रति प्रारम्भिक रुझान इन्हीं से पैदा होता है।   

चौथी श्रेणी में ऐसा साहित्य आता है जिसके लेखक बच्चे होते हैं और इसे पढ़ते भी वे ही हैं। इस रचनाओं को बड़े चाहें तो सुधार सकते हैं मगर ऐसे प्रयास कम ही देखने को मिलते हैं। फिर भी यदि बच्चों की रचनात्मकता को दिशा मिलती जाए तो उम्र के साथ उनकी सर्जना शक्ति विकसित होती जाती है और एक दिन बच्चे बड़ों की दुनिया में प्रवेश कर जाते हैं।


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