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चुनाव में क्षेत्रिये दलों के लिए कांग्रेस बनी मुसीबत, बिहार चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन फिसड्डी, प्रदेशों में पार्टी संगठन की हालत खराब

चुनाव में क्षेत्रिये दलों के लिए कांग्रेस बनी मुसीबत, बिहार चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन फिसड्डी, प्रदेशों में पार्टी संगठन की हालत खराब

पटना... केंद्र में 2014 की सरकार आने के बाद से देश में होने वाले चुनावों में कांग्रेस प्रदर्शन लगातार गिरता जा रहा है। लोकसभा हो या विधानसभा, हर चुनावी रण में कांग्रेस को विरोधियों से मात मिल रही है। अब सवाल ये उठने लगा है कि क्या कांग्रेस सहयोगियों के लिए समस्या बनती जा रही है। इसकी कई वजहें हैं। कारणों की लंबी फेहरिस्त में कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व पर भी सवाल उठे हैं। दरअसल कांग्रेस आज के दिनों में किसी भी राज्य में अकेले चुनाव लड़ने की स्थिति में नजर नहीं आती है। अगर किसी राज्य में उनकी सरकार है, उदाहरण के तौर पर महाराष्ट्र को ले लीजिए तो भागदारी होते हुए भी मजबूत स्थिति में नहीं है। 

वहीं, अब बात करें बिहार विधानसभा चुनाव 2020 की तो 70 सीटों पर लड़ने वाली कांग्रेस को महज 20 सीट ही मिले, जबकि उन्हें पिछले चुनाव में आंकेड़े इससे बेहतर थे। कारण जो भी, लेकिन कांग्रेस को अब विचार करने की जरूरत है, क्योंकि बिहार विधानसभा चुनाव में सबसे अधिक खराब पारफाॅरमेंस रहा तो वो कांग्रेस की पार्टी रही। विधानसभा चुनाव में हम और वीआईपी जैसे क्षेत्रीय दलों का प्रदर्शन कांग्रेस से बेहतर रहा है। चुनाव में पार्टी की जीत का प्रतिशत 27.1 फीसदी रहा, जबकि आरजेडी ने 52.8 फीसदी रहा। राजद ने कांग्रेस को 70 सीट अपनी खुशी से नहीं दी थी, बल्कि कांग्रेस ने अकेले चुनाव लड़ने का दबाव बनाकर यह सीटें हासिल की थी। दूसरे प्रदेशों में भी कांग्रेस का यही रवैया रहा है।

ऐसा सिर्फ बिहार में नहीं हुआ है, इससे पहले हुए कई राज्यों के चुनावों में भी पार्टी का प्रदर्शन कमजोर रहा है। महाराष्ट्र, झारखंड और तमिलनाडु चुनाव के आंकड़े बताते हैं कि कांग्रेस गठबंधन के सहयोगी पर दबाव डालकर अधिक सीट हासिल कर लेती है, पर उसकी जीत का प्रतिशत सहयोगी से कम रहता है। वर्ष 2017 के यूपी चुनाव में कांग्रेस-समाजवादी पार्टी ने यूपी के लड़के के नारे के साथ गठबंधन  किया। इन चुनाव में पार्टी 114 में से सिर्फ सात सीट ही हासिल कर पाई।

पिछले साल हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 147 सीट पर चुनाव लड़कर 44 सीट हासिल की, जबकि एनसीपी ने 121 सीटों में से 54 सीट जीती। झारखंड चुनाव में भी कांग्रेस 31 में 16 सीट जीत पाई। जबकि जेएमएम ने 43 में 30 सीट पर जीत दर्ज की। तमिलनाडु में भी कांग्रेस की जीत का प्रतिशत गठबंधन के सहयोगी डीएमके से कम है।

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि सबसे पहले हमें यह स्वीकार करना होगा कि प्रदेश में संगठन कमजोर है। बकौल उनके, ज्यादातर प्रदेशों में पार्टी संगठन की हालत खराब है। यही वजह है कि विधानसभा और लोकसभा में जीत का प्रदर्शन खराब रहता है। 


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