चटनी ने प्रधानमंत्री पर चलाया ऐसा जादू कि बनानेवाली महिला को सीधे बुला लिया दिल्ली, 15 अगस्त की मुख्य कार्यक्रम की होगी खास मेहमान

NEW DELHI : खाने की थाली में चटनी जायका बदलने का काम करती है। कई ऐसे भी मिल जाएंगे, जिन्हें चटनी के बिना खाना पसंद भी नहीं आता है। लेकिन चटनी के कारण किसी को प्रधानमंत्री से मिलने का मौका मिल जाए, ऐसे मामले बहुत ही कम सामने आते हैं। उत्तराखंड के गांवों में रहनेवाली एक महिला ऐसी ही खुशकिस्मत लोगों में से एक है, जिनकी बनाई चटनी का स्वाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इतना पसंद आया कि उन्होंने उस महिला को 15 अगस्त के मुख्य कार्यक्रम के लिए नई दिल्ली बुला लिया, जहां वह पीएम के खास मेहमान के रूप में शामिल होंगी।
उत्तराखंड की रहनेवाली इस महिला का नाम सुनीता रौतेला(40) है। सुनीत द्वारा पीएम मोदी को चटनी भेजे जाने के करीब 4 महीने बाद महिला को यह आमंत्रण मिला है। उत्तरकाशी के एक दूर-दराज गांव में रहने वाली इस महिला ने चटनी से भरी एक जार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजा था। जिसके बाद अब महिला को दिल्ली के लाल किले पर आयोजित होने वाले कार्यक्रम में स्पेशल गेस्ट के तौर पर शामिल होने का मौका मिला है।
बताया गया कि 40 साल की सुनीता रौतेला अपने पति के साथ उत्तरकाशी के झाला गांव की रहने वाली हैं। रौतले ने अपने पति और करीब 162 गांव वालों को साथ लेकर एक फार्मर-प्रोड्यूसर ऑर्गनाइजेशन (FPO )- उपला तकनोर कृषक उत्पादक संगठन बनाया। यह संगठन पिछले साल मई के महीने में अस्तित्व में आय़ा था।
इसी साल मार्च के महीने में रौतेला ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चटनी भेजा था। दो महीने बाद गांव के प्रधान हरीश राना को प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ से एक चिट्ठी मिली। इस चिट्ठी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रौतेला की मेहनत और उनकी चटनी दोनों की जमकर तारीफ की थी।
यूएनडीपी ने बदली किस्मत
सुनीता रौतेला झाला में रहने वाली उन कई अन्य महिलाओं में शामिल हैं जो बमुश्किल से थोड़े-बहुत सेव का उत्पादन कर पाती हैं। करीब एक साल पहले उनकी आर्थिक स्थिति भी बेहद खराब थी। रौतेला के पति भरत रौतेला का कहना है कि हमारे जेसै छोटे सेव उत्पादकों के लिए यह काफी दुखदाई था कि हमारा काफी उत्पादन बर्बाद हो जाता था क्योंकि सेव समय से पहले गिर जाते थे। इसके अलावा कम दाम और ट्रांसपोर्ट की सुविधा ना होने की वजह से भी यह बर्बादी होती थी।
इसी दौरान उन्हें पता चला कि सरकार की एक योजना है जिसके तहत कुछ गांव वाले साथ मिलकर एक ग्रुप बना सकते हैं औऱ UNDP से मदद हासिल कर गांव में फूड प्रोसेसिंग की शुरुआत कर सकते हैं। United Nations Development Programme से संस्थागत सहायता मिलने के बाद और कुछ अन्य गांव वालों के साथ मिलकर कड़ी मेहनत करने के बाद अब रौतेला इस इलाके में बदलाव का पर्याय बन चुकी हैं।
उन्होंने बताया कि पहले सीजन के दौरान UNDP ने मुफ्त में मशीनरी दी थी। हमने इस दौरान 15 लाख रुपये के जैम और चटनी बेचे। इसके बाद यह पहला वर्ष था जब खर्च काफी ज्यादा आया लेकिन इसके बावजूद हमे 1.2 लाख रुपये का मुनाफा हुआ। अब इस ग्रुप ने इस साल 6-8 लाख रुपये के मुनाफे का लक्ष्य रखा है।