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कोरोना महामारी में घर लौटे प्रवासी मजदूर दिला सकते हैं किसी को जीत का रथ तो हो सकता है कोई जीत से दूर

कोरोना महामारी में घर लौटे प्रवासी मजदूर दिला सकते हैं किसी को जीत का रथ तो हो सकता है कोई जीत से दूर

DESK कोरोना महामारी के चलते  घर लौटे प्रवासी मजदूर बदल सकते हैं बिहार चुनाव का नतीजा. बिहार लौटे प्रवासी मजदूरों की बड़ी संख्या को मतदाता सूचि में जोड़ा गया है. ऐसे में कम अंतर वाली सीटों पर प्रवासियों का वोट जीत-हार तय कर सकता है। चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक इस बार करीब 67 लाख नए मतदाता बने हैं, जिनमें प्रवासियों की संख्या 16 लाख 24 हजार है। इनके अंदर बेरोजगार होने और मुश्किल हालात में कर्मभूमि से विस्थापित होने का दर्द बरकरार है। हालांकि, इनमें से कुछ को घर में भी रोजगार मिल चुका है, किंतु कई को फिर लौटकर जाना पड़ा है। 

बिहार में एक ट्रेंड और देखा जाता है कि चुनाव के समय प्रवासी लोग अपने-अपने गांव लौटकर आते हैं। मनपसंद प्रत्याशी के पक्ष में वोट डालते हैं। ऐसे में 2.22 फीसद प्रवासियों का रुझान परिणाम को प्रभावित कर सकता है।मार्च  से जून तक के महीने में मजदूरों को पलायन का सामना करना पड़ा. प्रवासी  मजदूरों के लिए ना तो तभी सरकार मदद में उतरी ना ही विपक्ष. 

इसके बाद जब मौजूदा केंद्र सरकार से जब प्रवासी  मजदूरों के मरने वालों कि संख्या जब मांगी गई तो सरकार ने अपने हाथ खड़े कर लिए. ऐसे में बिहार NDA पर कितना भरोसा कर ती है ये देखना दिलचस्प होगा. प्रवासी मजदूरों पर लगातार विपक्ष भी निशाना साधते दिखी है. पलायन का हवाला देते हुए विपक्ष ने कहा ना तो पलायन रोक पाए ना हे बढती महामारी. बिहार को बर्बाद कर के छोड़ दिया है नितीश कुमार ने.

चुनाव आयोग के मुताबिक 25 सितंबर तक मतदाता सूची में सात करोड़ 29 लाख 75 हजार 565 मतदाता हैं। इनमें प्रवासियों की संख्या 16 लाख 24 हजार है। सबसे अधिक एक लाख नौ हजार 108 प्रवासी मतदाता पश्चिम चंपारण में हैं। जबकि, सबसे कम 10 हजार 557 प्रवासी मतदाता लखीसराय के हैं। जहानाबाद, अरवल, भागलपुर, मधुबनी, पूर्वी चंपारण, समस्तीपुर और सारण में लौटे सभी प्रवासी मतदाता सूची में शामिल कर लिए गए हैं। अपर मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी संजय कुमार सिंह ने बताया कि 13 लाख 93 हजार 872 प्रवासी पहले से मतदाता सूची में शामिल थे। इसके अलावा दो लाख 30 हजार 812 प्रवासी को अभियान चलाकर मतदाता बनाया गया है।  

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