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सांसद और विधायकों की तरह ग्राम प्रधानों से लेकर महापौरों तक को वेतन और भत्ता देने की उठी मांग, भाजपा सांसद चाहते हैं बदलाव

सांसद और विधायकों की तरह ग्राम प्रधानों से लेकर महापौरों तक को वेतन और भत्ता देने की उठी मांग, भाजपा सांसद चाहते हैं बदलाव

DESK. जनप्रतिनिधि के तौर पर जब सांसद और विधायकों को वेतन मिलता है तो ग्राम प्रधानों से लेकर नगर निगम के महापौरों तक संवैधानिक और वैधानिक रूप में वेतन, भत्ता और पेंशन दिए जाने के हकदार क्यों नहीं हैं? यह सवाल संसद में गूंजा है. भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री और राज्यसभा सांसद डॉक्टर राधा मोहन दास अग्रवाल ने संविधान संशोधन कर इसकी व्यवस्था करने की मांग की। इसे ग्राम प्रधानों से लेकर नगर निगम के महापौरों तक को उसी प्रकार की सुविधाएं और लाभ मिल सकते हैं जैसे सांसद और विधायक को मिलता है. 

डॉ. अग्रवाल ने कहा कि समान काम के लिए समान वेतन प्राप्त करना जनप्रतिनिधियों सहित सभी नागरिकों का संवैधानिक अधिकार है, लेकिन भारत में जनप्रतिनिधियों को दो वर्ग बना दिए गए हैं। राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, मंत्री, सांसद और विधायकों को संवैधानिक प्रावधानों के तहत कानून बनाकर वेतन, भत्ते तथा पेंशन की व्यवस्था की गई है।

उन्होंने कहा कि दुखद है कि ग्राम प्रधानों से लेकर नगर निगमों के महापौर तक किसी के लिए भी संवैधानिक रूप से वेतन, भत्ते और पेंशन की व्यवस्था नहीं की गई है। 1991-92 में संविधान के 73-74वें संशोधन का ढ़िंढ़ोरा तो बहुत पीटा गया, तथाकथित रूप से अधिकार भी दिए गए, लेकिन जनप्रतिनिधियों को आर्थिक सशक्तिकरण नहीं किया गया। आज लाखों की संख्या में जनप्रतिनिधि राज्य के मुख्यमंत्री और ब्यूरोक्रेसी की कृपा पर निर्भर हैं। जो अन्य जनप्रतिनिधियों के संवैधानिक अधिकार हैं, वह इन जमीनी स्तर के जनप्रतिनिधियों के लिए ब्यूरोक्रेसी की दया पर निर्भर हैं। यह राजनीतिक रूप से उन्हें कमजोर करती है।

राष्ट्रीय महामंत्री ने कहा, " आखिर जनप्रतिनिधियों के साथ यह सौतेला व्यवहार सरकार ने क्यों किया? क्या इन जनप्रतिनिधियों को अपने माता-पिता की देखरेख नहीं करनी होती है? क्या उन्हें अपने बच्चों की शिक्षा के लिए धन की जरूरत नहीं होती है? जो अपने माता-पिता और बच्चों के लिए ईमानदार नहीं होगा वो नागरिकों के लिए कैसे ईमानदार हो सकता है? जनप्रतिनिधि होने के कारण उनके खर्च बहुत बढ़ जाते हैं और आमदनी शून्य होती है। ये मजबूरी उन्हें भ्रष्टाचार की ओर धकेलती है।"

डॉ. अग्रवाल ने कहा, “जनप्रतिनिधियों के साथ यह दोहरा और सौतेला आचरण समाप्त होना चाहिए। हमारी मांग है कि मुख्यमंत्री और ब्यूरोक्रेसी की कृपा के हवाले करने की जगह पर सरकार संविधान के 73-74वें संशोधन को फिर से संशोधित करे और संवैधानिक रूप से ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के जनप्रतिनिधियों के लिए संवैधानिक अधिकार के रूप में वेतन, भत्त तथा पेंशन की व्यवस्था करें।”


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