पहाड़ों पर विनाश तो बिहारियों पर निशाना क्यों? प्रलय के पीछे असली वजह क्या?.कैसे विकास के नाम पर विनाश की लिखी जा रही पटकथा..पढ़िए इनसाइड स्टोरी

पहाड़ों पर विनाश तो बिहारियों पर निशाना क्यों? प्रलय के पीछे  असली वजह क्या?.कैसे विकास के नाम पर विनाश की लिखी जा रही पटकथा..पढ़िए इनसाइड स्टोरी

पटना/ दिल्ली/ शिमला -इस साल का मानसून हिमाचल, उत्तराखंड में जिस तरह कहर बनकर बरपा है, वह  भयावह है.लंबे समय से जिस ग्लोबल वार्मिंग और पर्यावरणीय संकट के प्रति वैज्ञानिक चेता रहे थे, उसने अब हमारे दरवाजे पर दस्तक दे दी है.हिमाचल प्रदेश में 13 से 15 अगस्‍त के बीच हुई बारिश के चलते राज्‍य में भयंकर तबाही मची. अब तक 71 लोगों की मौत की खबर है. गर्मियों में पर्यटकों से भरा रहने वाला शिमला और हिमाचल के अन्‍य इलाकों में भारी बारिश के कारण भूस्‍खलन के बाद बड़े स्‍तर पर तबाही मची हुई है. 

हिमाचल मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्‍खू का विवादास्पद बयान

भयंकर तबाही के बाद प्रदेश में मची चीख पुकार के बीच हिमाचल मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्‍खू ने इंडियन एक्‍सप्रेस को दिए एक इंटरव्‍यू में एक विवादित बयान दे डाला था, उन्‍होंने हिमाचल में तबाही में ढहे मकानों के लिए बिहारी मजदूरों और बिहार राजमिस्‍त्रियों को दोष दे डाला.हिमाचल मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्‍खू के बयान की चारों ओर आलोचना होने लगी.सभी दलों ने उनके बयान की कठोर शब्दों में आलोचना की तब उन्हें सफाई देनी पड़ी.बता दें हिमाचल के मुख्‍यमंत्री ने इंडियन एक्‍सप्रेस को दिए अपने इंटरव्‍यू में पहले कहा था कि निर्माण कार्यो के लिए दूसरे राज्‍यों से लोग आते हैं और बिना वैज्ञानिकों तरीकों का इस्‍तेमाल किए यहां मंजिलें बनाए जा रहे हैं. इसके साथ उन्‍होंने कहा था कि प्रवासी आर्किटेक्‍ट (राजमिस्त्री) आते हैं, जिन्हें मैं बिहारी आर्किटेक्ट कहता हूं. वे यहां आए और मंजिला पर मंजिला बनाते गए हमारे यहां स्‍थानीय राजमिस्‍त्री नहीं हैं.राजनीति में किसी को दोषी ठहराने की परंपरा नयी नहीं है. राजनीतिक तरकश से तीर चलते हैं.सुक्खू को राजनीति करनी है.करें .दरअसल इस तबाही का कारण क्या है, ये जानना जरुरी है.

वैज्ञानिक सिद्धांतों और विशेषज्ञ सलाह की हुई उपेक्षा

हिमाचल में नदी घाटियों और पहाड़ी ढलानों की उन जगहों को वापस अपने कब्जे में लेने में प्रकृति को केवल एक विनाशकारी सप्ताह का समय लगा जिन पर इंसान ने दशकों के दौरान अतिक्रमण कर लिया था. पंद्रह अगस्त को शिमला में समरहिल की त्रासदी ने हर किसी को दुख से भर दिया. वहीं जगह-जगह बहुमंजिली इमारतों के ढहने के दृश्यों ने लोगों के रोंगटे खड़े कर दिये.समस्या बिहारी मजदूरों और बिहार राजमिस्‍त्रियों के कारण नहीं ,अंधाधुंध निर्माण, गलत नीतियों, खराब इंजीनियरिंग, ढीली निगरानी व्यवस्था और वैज्ञानिक सिद्धांतों और विशेषज्ञ सलाह की उपेक्षा के कारण पैदा हुई. इस मानसून में हिमाचल में बादल फटने, अतिवृष्टि-भूस्खलन आदि में मरने वालों का आंकड़ा तीन सौ को पार कर गया है, अभी कई लोग लापता हैं. भूस्खलन की सैकड़ों घटनाएं हुई हैं. राज्य को होने वाले आर्थिक नुकसान का आकलन सात हजार करोड़ से अधिक किया गया है.

पहाड़ लोग हैं भयभीत

उफनती नदियां, गरजते बरसाती नाले और दरकते पहाड़ लोगों को भयभीत कर दिया है.हिमाचल और उत्तराखंड में लगातार बादल फटने की घटनाओं से लोग दहशत में है. कुदरत का बदला मिजाज क्यों कहर बरपा रहा है.वैज्ञानिकों का मानना है कि जिन इलाकों में बांधों का निर्माण होता है वहां पर्यावरण में असामान्य आर्द्रता बादल फटने की प्रक्रिया को अंजाम देती है. इस कारण त्रासदी ज्यादा हो रहा है.

वैज्ञानिक अध्ययन से हुआ खुलासा

उत्तराखंड में जोशीमठ के धंसने के बाद सामने आए एक वैज्ञानिक अध्ययन में बताया गया कि सीवर लाइन का पानी पहाड़ों के भीतर डालने से उनके दरकने की गति बढ़ी है.अंग्रेजों के समय के कई निर्माण जस-के-तस खड़े हैं और बाद के पुल नदियों में बहते नजर आते हैं. अंग्रेजों के जमाने में पर्वतीय टूरिस्ट स्थलों में आवासीय भवनों के लिये सीमित मंजिलों के निर्माण की ही अनुमति थी. हिमाचल और उत्तराखंड के हिमालयी पहाड़ अपेक्षाकृत नये हैं. निर्माण कार्यों के लिये पेड़ों के कटान ने पहाड़ों की उस परत को नष्ट किया है जो तेज बारिश से भूस्खलन को रोकती थी.

पहाड़ हो गए हैं खोखला 

 निर्माण संबंधी, काफी ज्यादा रही हैं तो इसके दोषी बिहारी मजदूरों और बिहार राजमिस्‍त्रियों नहीं हैं. जानकारों के अनुसार निर्माण कार्य  इतना ज्यादा हो रहा है कि कि प्रकृति के लिए न तो इसे सह पाना संभव हो रहा था और न ही भरपाई करना. वैध-अवैध खनन, पहाड़ों की खड़ी ढलानों और नदियों के बाढ़ क्षेत्रों में भवन निर्माण, पनबिजली परियोजनाओं जैसी घटनाओं के साथ-साथ लगातार किया गया. विस्फोट और उससे निकले मलबे की डंपिंग, सड़क निर्माण और चौड़ीकरण, हजारों पेड़ों की कटाई- ये ऐसी इंसानी गतिविधियां रहीं जिनके खिलाफ प्रकृति की प्रतिक्रिया जुलाई में एक हफ्ते के दौरान देखने को मिली और यह सब अचानक नहीं हुआ. कम समय में अधिक तेज बारिश पहाड़ों को खोखला कर रही है

विशेषज्ञ की सलाह की अवहेलना का शिकार

 दरअसल, वातानुकूलित कमरों में बैठकर पहाड़ों की विकास योजनाओं को बनाने वाले यह भूल जाते हैं कि विकास का मैदानी फार्मूला पहाड़ों में नहीं दोहराया जा सकता. इस तथ्य के बारे में नीति-नियंताओं को गंभीरता से सोचना होगा. जीवन शैली पहाड़ के मिजाज के अनुरूप होनी चाहिए, अन्यथा हमें पहाड़ के रौद्ररूप देखने के लिये बार-बार तैयार रहना होगा. हिमाचल मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्‍खू के बिहारी मजदूरों और बिहार राजमिस्‍त्रियों को दोषी ठहरा देने से समस्या का हल नहीं होगा. सुखविंदर सिंह सुक्‍खू साहब अंधाधुंध निर्माण, गलत नीतियों, खराब इंजीनियरिंग, ढीली निगरानी व्यवस्था और वैज्ञानिक सिद्धांतों और विशेषज्ञ की सलाह की अवहेलना का शिकार हमें होना होगा तब तक जब तक हम प्रकृति के अनुसार नहीं चलेंगे.क्योंकि प्रकृति अपना रौद्र रुप दिखाती है तो उसे रोकने का समर्थ किसी में नहीं है आप में भी नहीं.


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