पीएम मोदी की कथनी और करनी में अंतर... राजद के मनोज झा ने महिला आरक्षण पर केंद्र सरकार को घेरा, लालू ने पेश की मिसाल

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पटना/दिल्ली. राष्ट्रीय जनता दल के सदस्य मनोज झा ने गुरुवार को राज्यसभा में अपनी पार्टी की ओर से महिला आरक्षण विधेयक पर चर्चा में भाग लेते हुए मांग की कि अन्य पिछड़ा वर्ग की महिलाओं को भी कानून में शामिल किया जाए। झा ने कहा कि अभी भी समय उपलब्ध है और मैं अनुरोध करता हूं कि विधेयक को एक चयन समिति को भेजा जाए और इसमें एससी और एसटी के साथ ओबीसी को भी शामिल किया जाए.

मनोज झा ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर कटाक्ष करते हुए कहा कि नए संसद भवन को बड़ा कैनवास बताया गया था. लेकिन यहां कैनवास बड़ा और आकृति छोटी है. उन्होंने नारी शक्ति वंदन अधिनियम पर आपत्ति जताते हुए कहा कि इसे सुनकर पता ही नहीं चलता कि यह विधायी नाम है या किसी धार्मिक ग्रंथ का शीर्षक. झा ने कहा कि हमें यह समझना चाहिए कि अधिकार दया की श्रेणी में नहीं आता है. हम महिला आरक्षण को दया की भांति पेश कर रहे हैं. 

एससी-एसटी और ओबीसी को झटका : उन्होंने कहा कि 33 फीसदी का जो आरक्षण तय किया गया है इससे एससी-एसटी और ओबीसी को झटका लगा है. मौजूदा समय में लोकसभा की 412 सीटें सामान्य श्रेणी के लिए और 84 एसटी तथा 47 एसटी वर्ग के लिए है. अब महिला आरक्षण से एससी-एसटी के मौजूदा आरक्षण में ही उन्हें 33 फीसदी आरक्षण मिलेगा जबकि जरूरत इसके अतिरिक्त सीटों पर एससी-एसटी महिलाओं को आरक्षण देने की है. इसी तरह पिछड़े वर्ग की महिलाओं को भी सशक्त करने का सपना तभी पूरा होगा जब ओबीसी को आरक्षण मिले. 

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लालू ने पेश की मिसाल : लालू यादव को महिला सशक्तिकरण का नायक बताते हुए मनोज झा ने कहा कि लालू ही वह सख्श हैं जिन्होंने भगवतिया देवी को संसद पहुंचाया. गया में पत्थर तोड़ने वाली भगवतिया देवी सिर्फ लालू के कारण संसद पहुंची लेकिन उनके बाद कोई दूसरी भगवतिया देवी नहीं आई. यह दिखाता है कि महिलाओं के प्रति हमारा क्या नजरिया रहा है. उन्होंने कहा कि पीएम मोदी की कथनी और करनी में अंतर है. इसी कारण आज ओबीसी वर्ग के लिए विशेष आरक्षण का प्रावधान नहीं किया गया है. उन्होंने कहा कि आज भी हमारे समाज में यही स्थिति है कि ‘नाम से कुछ नहीं होता लेकिन उपनाम से सबकुछ होता है.’ इसलिए ओबीसी को आरक्षण मिलना चाहिए. 

50 फीसदी मिले आरक्षण :  बेगम शहनवाज और दिवंगत राजनीतिक नेता सरोजिनी नायडू को याद करते हुए झा ने कहा कि वर्ष 1931 में उन्होंने विधायिकाओं में "समान प्रतिनिधित्व" की थी.  झा ने पूछा कि विधेयक केवल 33 प्रतिशत आरक्षण देने का इरादा क्यों रखता है और 50 प्रतिशत या 55 प्रतिशत क्यों नहीं?