बिहार उत्तरप्रदेश मध्यप्रदेश उत्तराखंड झारखंड छत्तीसगढ़ राजस्थान पंजाब हरियाणा हिमाचल प्रदेश दिल्ली पश्चिम बंगाल

LATEST NEWS

केके पाठक के फरमान का असर, सरकारी स्कूलों से 20 लाख छात्रों के नाम काटे गए, पाठक के निर्देश पर विफरे विपक्ष के स्वर में स्वर मिला रही सत्ता पक्ष की सहयोगी पार्टी

 केके पाठक के फरमान का असर, सरकारी स्कूलों से 20 लाख छात्रों के नाम काटे गए, पाठक के निर्देश पर विफरे विपक्ष के स्वर में स्वर मिला रही सत्ता पक्ष की सहयोगी पार्टी

डेस्क-  शिक्षा विभाग का अपर मुख्य सचिव केके पाठक के बनते हीं हड़कंप मच गया. जो मास्टर साहब समय से स्कूल न आने के लिए जाने जाते थे वे समयसे पहले विद्यालय पहुंचने लगे. केवल शिक्षकों पर हीं नहीं छात्रों पर भी पाठक का डंडा चला, फरमान हुआ कि बिना सूचना के तीन दिन से ज्यादा समय तक विद्यालय में अनुपस्थित छात्रों का नाम काट दिया जाए. इसी क्र में  शिक्षा विभाग द्वारा अनुपस्थित रहने के कारण 20 लाख से अधिक छात्रों के नाम सरकारी स्कूलों से काटे जाने के कारण नीतीश कुमार को विरोधियों के साथ-साथ अपने सहयोगियों का भी विरोध झेलना पड़ रहा है. 

 जिन बच्चों के स्कूलों से नाम काटा गया है उनमें 2.66 लाख छात्र ऐसे हैं जिन्हें 10वीं और 12वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा में शामिल होना था. शिक्षा विभाग ने एक सितंबर, 2023 से उपस्थिति में सुधार के लिए अभियान शुरू करने के बाद अक्टूबर के तीसरे सप्ताह तक  सरकारी स्कूलों से 20,60,340 छात्रों के नाम काट दिए हैं. शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक द्वारा जारी निर्देश के बाद यह कदम उठाया गया है. बता दें के के पाठक ने दो सितंबर, 2023 को सभी जिलाधिकारियों को लिखे एक पत्र में लगातार तीन दिनों तक अनुपस्थित रहने वाले छात्रों को निष्कासित करने करने जैसे कठोर कदम उठाने का आदेश दिया था जबकि बाकी उपस्थित रहने वाले बच्चे पाठ्यपुस्तकों और पोशाक के लिए प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) योजना का लाभ उठा सकते हैं. बता दें कि बिहार में 75,309 सरकारी स्कूल हैं.

के के पाठक ने दो सितंबर को लिखे अपने पत्र में कहा कि राज्य में ऐसे स्कूल हैं जहां छात्रों की उपस्थिति 50 प्रतिशत से कम है. यह गंभीर चिंता का विषय है. इसके लिए संबंधित जिला शिक्षा अधिकारियों के हस्तक्षेप की आवश्यकता है. सभी संबंधित डीईओ को निर्देश दिया गया है कि वे अपने संबंधित क्षेत्रों में ऐसे पांच स्कूलों का चयन करें और अनुपस्थित छात्रों के माता-पिता से छात्रों की उपस्थिति में सुधार के लिए संवाद करें. शिक्षा विभाग को शिकायत मिली है कि डीबीटी योजनाओं का लाभ लेने के लिए छात्रों ने सिर्फ सरकारी स्कूलों में दाखिला लिया है, जबकि वे निजी स्कूलों में पढ़ते हैं. वहीं कुछ छात्रों के राज्य के बाहर (राजस्थान के कोटा में) रहने की भी जानकारी मिली .के के  पाठक ने अपने पत्र में लिखा था कि ऐसे छात्रों का पता लगाया जाना चाहिए और इन छात्रों का नामांकन रद्द किया जाना चाहिए, जो केवल डीबीटी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए सरकारी स्कूलों में नामांकित हैं.उन्होंने अपने पत्र में कहा था कि विभाग छात्रों को सालाना 3000 करोड़ रुपए का डीबीटी लाभ प्रदान करता है. यदि ऐसे छात्रों में से 10 प्रतिशत का भी नामांकन रद्द कर दिया जाता है, जो केवल डीबीटी लाभ के उद्देश्य से यहां नामांकित हैं, तो सीधे 300 करोड़ रुपए की बचत होगी जिसका उपयोग कुछ अन्य कार्यों के लिए किया जा सकता है.

वहीं के के पाठक के आदेश का विरोध सरकार में शामिल दल भी कर रहे हैं.भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी- मार्क्सवादी लेनिनवादी (भाकपा-माले) लिबरेशन के विधायक संदीप सौरव ने कहा कि  यह विभाग द्वारा लिया गया एक तानाशाही निर्णय है. विभाग को छात्रों के करियर के साथ खेलने का कोई अधिकार नहीं है. विभाग को पता होना चाहिए कि सरकारी स्कूल अभी भी शिक्षक और कक्षाओं की भारी कमी का सामना कर रहे हैं.उन्होंने कहा कि विभाग छात्रों की 100 प्रतिशत उपस्थिति की उम्मीद कैसे कर सकता है, जब उच्च कक्षाओं में भौतिकी, रसायन विज्ञान और गणित जैसे विषयों को पढ़ाने के लिए कोई शिक्षक नहीं हैं? यह विभाग की जिम्मेदारी है कि वह पहले सरकारी स्कूलों में सभी बुनियादी ढांचागत और शैक्षणिक सुविधाएं प्रदान करे और फिर छात्रों के लिए अनिवार्य उपस्थिति नियम लागू करे. वहीं ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन  के राष्ट्रीय महासचिव  सौरव ने बिहार सरकार की नीति का विरोध करते हुए कहा कि हम शिक्षा विभाग के इस आदेश को तत्काल वापस लेने की मांग करते हैं.

 तो वहीं  बिहार विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता विजय कुमार सिन्हा ने सरकार पर करारा हमला करते हुए कहा कि अगर बिहार में सरकारी स्कूल शिक्षकों की भारी कमी का सामना कर रहे हैं, तो छात्रों के पास कोई विकल्प नहीं होगा, वे  निश्चित रूप से अपना पाठ्यक्रम पूरा करने के लिए निजी कोचिंग संस्थानों में शामिल होंगे.उन्होंने कहा कि  नीतीश कुमार सरकार राज्य में सरकारी स्कूलों की बिगड़ती स्थिति को सुधारने में बुरी तरह विफल रही है. मुझे कहना होगा कि बिहार में शिक्षा प्रणाली में गंभीर कमियों को छिपाने के लिए राज्य सरकार द्वारा छात्रों को प्रताड़ित किया जा रहा है. हम उन छात्रों के नामांकन की तत्काल बहाली की मांग करते हैं जिनके नाम काट दिए गए हैं.

Suggested News