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हमाम में सब नंगे हैं!एक कुख्यात माफिया राजनेता जो बन गया सरकार की मजबूरी, आखिरकार क्यों हो रही रिहाई ,कहां गई CM योगी की माफिया के खिलाफ जीरो टॉलरेंस वाली नीति...?

हमाम में सब नंगे हैं!एक कुख्यात माफिया राजनेता जो बन गया सरकार की मजबूरी, आखिरकार क्यों हो रही रिहाई ,कहां गई CM योगी की माफिया के खिलाफ जीरो टॉलरेंस वाली नीति...?

दिल्ली- एक समय ऐसा था कि सरकार किसी भी हो, हर कैबिनेट में अमरमणि त्रिपाठी की  सीट  आरक्षित होती थी. पूर्वांचल के डॉन कहे जाने वाले हरिशंकर तिवारी के राजनीतिक वारिस रहे अमरमणि त्रिपाठी का जलवा ऐसा था कि उत्तरप्रदेश की राजनीति में वह कभी समाजवादी पार्टी, कभी बहुजन समाज पार्टी और कभी भारतीय जनता पार्टी के साथ रहकर सत्ता में रहे.लेकिन मधुमिता हत्याकांड के बाद उनके सितारे गर्दिश में चले गये.

अमर मणि त्रिपाठी की रिहाई

साल  2003 में, लखनऊ की पेपर मिल कॉलोनी में 9 मई को कवयित्री मधुमिता शुक्ला की गोली मारकर हत्‍या कर दी गयी थी. इस हत्याकांड का दोषी उत्तरप्रदेश के पूर्व कैबिनेट मंत्री अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि को ठहराया गया था. ये दोनों कई सालों से गोरखपुर जेल में बंद आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं.अब उनके अच्छे आचरण की वजह से उनकी शेष सजा समाप्त कर दी गयी है. उत्तर प्रदेश राज्यपाल की अनुमति से कारागार प्रशासन एवं सुधार विभाग ने इसका आदेश जारी किया. तो की सवाल उठने शुरु हो गए है. वहीं मधुमिता शुक्ला की बहन निधि शुक्ला ने कहा कि उन्होंने इस फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय का रुख किया है. सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल अमरमणि और उनकी पत्नी की रिहाई पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है.

अमर मणि त्रिपाठी की क्यों हुई रिहाई 

अब सवाल है कि आखिर जेल में बीस साल गुजारने के बाद कौन सी मजबूरी थी जो अमरमणि त्रिपाठी को सपत्नि रिहाई का आदेश दिया गया?  इस मामले में यूपी सरकार पर कई आरोप लग रहे हैं. योगी सरकार जो लगातार माफिया के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए देश ही दुनिया में लोकप्रिय हो रही है वहीं आदित्यनाथ सरकार अचानक एक सजायाफ्ता के लिए इतनी मेहरबानी पर क्यों उतर आई?  कांग्रेस के सक्रिय होने से पूर्वी यूपी में ब्राह्णण वोटों के बिखरने का डर सता रहा है बीजेपी को? तो क्या इसलिए बीजेपी अमरमणि त्रिपाठी को मैदान में ला रही है.उनके पुत्र अमनमणि लगातार भाजपा के संपर्क में रहे हैं.

यूपी में ब्राह्मण और ठाकुर की लड़ाई 

पहले आपके कुछ साल पहले लिए चलते हैं. उत्तरप्रदेश की राजनीति में ब्राह्मण और ठाकुर की लड़ाई राजनीति का केंद्र गोरखपुर रहा है. वैसे तो भारतीय राजनीति में जातियों के बीच राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई कोई नई बात नहीं है. गोरखनाथ मठ के महंत ठाकुर परिवारों से ही होते रहे हैं.गोरखनाथ मंदिर के तत्कालीन महंत दिग्विजय नाथ के समय में गोरखपुर यूनिवर्सिटी के तत्कालीन कुलपति सूरत नरायण मणि त्रिपाठी के समय ये वर्चस्व की जंग खूनी हो गई.माफिया डॉन हरिशंकर तिवारी के उदय के पीछे सूरत नारायण मणि त्रिपाठी को ही बताया जाता है.ताकतवर मठ से मुकाबले के लिए हरिशंकर तिवारी को सूरत नारायण ने तैयार किया.ब्राह्रणों की ओर से हरिशंकर तिवारी ने करीब चार दशकों तक मोर्चा संभाले रखा. गोरखपुर की स्थानीय राजनीति कभी हरिशंकर बनाम वीरेंद्र शाही, हरिशंकर बनाम वीर बहादुर सिंह, हरिशंकर बनाम योगी आदित्यनाथ के रूप में चलती रही. हरिशंकर तिवारी बनाम वीरेंद्र शाही के बीच गैंगवॉर के समय गोरखपुर दुनिया में दूसरा सबसे अधिक अपराध वाले शहर के रूप में कुख्यात रहा.यही समय था जब एक दारोगा के पुत्र अमरमणि त्रिपाठी माफिया डॉन हरिशंकर तिवारी के खेमे का प्रमुख सदस्य बनता है. बाद में नौतनवां की राजनीति को लेकर अमरमणि और हरिशंकर तिवारी में गहरे मतभेद हो गए.हरिशंकर तिवारी और अमरमणि एक दूसरे के धुर विरोधी हो गए.इस बीच मधुमिता हत्याकांड से राजनीति में मोड़ आया और अमर मणि को जेल जाना पड़ा.हरिशंकर तिवारी की मौत के बाद ब्राह्णणों का कोई दबंग नेता नहीं रहा. अमरमणि त्रिपाठी अपने गुरु हरिशंकर तिवारी की हर चाल से वाकिफ रहे हैं इसलिए यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि जल्द ही वो अपने गुरु की जगह ले सकते हैं.  जेल में रहते हुए भी अमरमणि त्रिपाठी राजनीति से कट नहीं. वहां से भी उनके कार्यकर्ताओं का काम होता रहा. अमरमणि को जेल हो गई लेकिन वे राजनीतिक रुप से कटे नहीं. हरिशंकर तिवारी संसार से विदा हो चुके हैं, ऐसे में उनकी जगह को उनके शिष्य अमरमणि त्रिपाठी भर सकते हैं. अमरमणि के रिहाई का विरोध कर कोई राजनीतिक दल ब्राह्मण जनाधार को नाराज नहीं करना चाहता.

ब्राह्मणों को साधने के लिए अमरमणि त्रिपाठी की रिहाई

जब मुख्यमंत्री आदित्यनाथ बने तो हरिशंकर तिवारी के घर पुलिस ने छापा मारा, सरकार किसी की भी रही हो किसी ने छापा मारने की जहमत नहीं उठाई थी. छापा के बाद आदित्यनाथ की छवि ब्राह्मण विरोधी की बनी. ब्राह्मण कांग्रेस का परंपरागत वोट माना जाता है,यूपी में कांग्रेस के मजबूत होने के बीच योगी की छवि ब्राह्णण विरोधी होने का खामियाजा भाजपा को भुगतना पड़ता. सियासी जानकार मानते हैं कि ब्राह्मणों को साधने के लिए अमरमणि त्रिपाठी की रिहाई हुई है. 

 मधुमिता शुक्ला हत्याकांड

उत्तर प्रदेश का मधुमिता शुक्ला हत्याकांड  ऐसा मामला था, जिसके खुलने पर उत्तरप्रदेश समेत पूरे देश में हड़कंप मच गया था. तत्कालीन मायावती सरकार के कद्दावर मंत्री अमरमणि त्रिपाठी की गिरफ्तारी हुई. सीबीआई ने इस मामले की जांच की. 9 मई 2003 को लखनऊ के निशातगंज थाना क्षेत्र की पेपर मिल कॉलोनी में 24 वर्षीय मधुमिता शुक्ला की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. घटना की जानकारी होने पर पूरे राजधानी क्षेत्र में हडकंप मच गया. सूचना पर पुलिस पहुंची. जांच में सामने आया कि बदमाशों ने फ्लैट के अंदर बेहद करीब से मधुमिता को गोली मारी थी। पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेजा.

मामला हाईप्रोफाइल था, पोस्टमार्टम के बाद पुलिस की अभिरक्षा में मधुमिता के शव को उनके गृहजनपद लखीमपुर खीरी पहुंचाया जा रहा था, शव के साथ पुलिस का एक अधिकारी भी था, बताया जाता है कि अधिकारी अपनी गाड़ी में बैठकर मधुमिता की पोस्टमार्टम रिपोर्ट पढ़ रहे थे, इसी दौरान उन्होंने में देखा कि हत्या के वक्त मधुमिता 7 माह की प्रेग्नेंट थी, यहीं पर अधिकारी का माथा ठनक गया, उन्होंने तत्काल शव को वापस लाकर दोबारा पोस्टमार्टम कराया.गर्भस्थ शिशु का डीएनए जांच के लिए भेजा. मधुमिता के साथ रहने वाले नौकर देशराज से भी पुलिस पूछताछ कर रही थी. पूछताछ में सामने आया कि मधुमिता और मंत्री अमरमणि त्रिपाठी के बीच प्रेम प्रसंग था. इसी बीच मधुमिता के गर्भस्थ शिशु की डीएनए जांच रिपोर्ट भी आ गई. रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि बच्चा अमरमणि त्रिपाठी का है. इसके बाद पुलिस ने अमरमणि पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया, हालांकि जांच बेहद संभलकर की जा रही थी, क्योंकि अमरमणि मायावती के कद्दावत मंत्रियों में से एक थे.मधुमिता शुक्ला की बहन निधि शुक्ला ने केस की पैरवी शुरू कर दी. पूर्व में आरोप लगे कि प्रदेश सरकार केस में मंत्री का बचाव कर रही है. ऐसे में निधि शुक्ला ने केस को किसी दूसरे राज्य में ट्रांसफर कराने की अपील की, जिसके बाद केस को उत्तराखंड में ट्रांसफर किया गया. सीबीआई ने इस केस को अपने हाथों में लिया. अमरमणि की गिरफ्तारी हुई. इसके बाद से अमरमणि त्रिपाठी, उनकी पत्नी और अन्य सहयोगी जेल में डाल दिया गया.

अब ऐसे में देखना होगा कि अमरमणि त्रिपाठी की रिहाई उत्तरप्रदेश की राजनीति में कौन सा गुल खिलाती है, जानकारों का कहना है कि  बीस साल जेल में रहने के बाद भी त्रिपाठी की पकड़ अभी भी पूर्वी यूपी के ब्राह्मणों के बीच बरकरार है.


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