PATNA: देश में महिला आरक्षण कानून पास हो गया है. संसद से पास होने और राष्ट्रपति की मुहर के बाद नारी शक्ति वंदन अधिनियम कानून का रूप ले लिया है. 2029 से लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिलने लगेगा. यानि संसद से लेकर राज्य विधानसभाओं तक कुल सीटों में तैंतीस प्रतिशत महिला जन प्रतिनिधि ही दिखेंगी. मोदी सरकार के इस कदम के बाद दल के नेता भी उस राह पर चल पड़े हैं. 2029 के मद्देनजर नेताओं द्वारा अभी से तैयारी शुरू कर दी गई है. भाजपा के एक पूर्व सांसद ने 2029 लोकसभा चुनाव के मद्देनजर पत्नी को राजनीति में उतार दिया है. महिला आरक्षण कानून के तहत 2029 में अगर उनकी पसंदीदा रिजर्व सीट जहां से वो सांसद रहे हैं, अगर वह सीट महिला के लिए आरक्षित हुई तो वैसी स्थिति में वे तो बेटिकट हो जाएँगे, लेकिन पत्नी अगर राजनीति में रहेगी तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा. वो नहीं तो पत्नी ही सही.ताकत को उन्हीं के हाथों में रहेगा. इसी सोच के साथ माननीय ने पत्नी को अपने दल में एक पद दिला दिया है. हालांकि पूर्व सांसद के इस चाल को उनके दल के नेता भांप रहे हैं.
पति-पत्नी का टाइटल समान देख शुरू हुई कानाफूसी
एक पूर्व सांसद ने अपनी पत्नी को दल के एक विंग का प्रवक्ता बनवा दिया है. पूर्व सांसद की पत्नी के दल में होने की जानकारी लोगों को तब लगी जब उन्हें प्रवक्ता की जिम्मेदारी दी गई. सूची में सिर्फ नाम देख कर लोगों को पता नहीं चला, लेकिन जैसे ही टाइटल देखा, पार्टी नेताओं के कान खड़े हो गए. क्यों कि पूर्व सांसद का टाइटल और पत्नी की टाइटल दोनों समान है. लिहाजा दल के नेताओं को यह समझते देर नहीं लगी. दरअसल पूर्व सांसद की टाइटल उनकी जाति ही है.लिहाजा लोगों को समझने में तनिक भी देर नहीं लगी.
पूर्व सांसद को 2029 की चिंता
आखिर, पूर्व सांसद व वर्तमान में सूबे के उपरी सदन के सदस्य को पत्नी को प्रवक्ता बनाने की नौबत क्यों आन पड़ी...? दल के नेताओं ने ही इसकी तहकीकात शुरू की. जानकारी इकट्ठा करने के बाद लोग इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि 2024 लोस चुनाव तक कहीं कोई दिक्कत नहीं है. चूंकि आरक्षित सीट पर दावेदारी है, लिहाजा दावेदारी प्रबल है. पत्नी को राजनीति में लाने के पीछे का असली मकसद 2029 का लोस चुनाव है. महिला आरक्षण का कानून पास हो गया है. 2029 लोकसभा चुनाव में महिलाओं के लिए 33 फीसदी सीटें आरक्षित हो जाएंगी. आरक्षित सीट जहां से वे सांसद बने थे, अगर आरक्षित में भी महिला रिजर्व हो गई तो भी उन्हें फर्क नहीं पड़ेगा. वो नहीं तो पत्नी. पार्टी को भी समझाने में भी आसानी होगी कि वो(पत्नी) लंबे समय से राजनीति में सक्रिय है, टिकट दीजिए. पार्टी के समक्ष पक्ष मजबूत हो सकता है. पार्टी को भी टिकट देने में परेशानी नहीं होगी.
पति-पत्नी दोनों हैं प्रवक्ता
बता दें, जिस पूर्व सांसद की बात कर रहे हैं वो मोदी लहर में बिहार की एक आरक्षित सीट से चुनाव जीतकर संसद पहुंच चुके हैं. लेकिन अगले चुनाव में उनकी सीट सहयोगी के खाते में चली गई. लिहाजा वे दूसरी दफे संसद नहीं पहुंच सके. हालांकि पार्टी ने उन्हें सूबे के बड़े सदन में भेज कर क्षतिपूर्ति कर दी थी. साथ ही सरकार में वजीर की जिम्मेदारी भी दिलवाई थी. वर्तमान में वे संगठन का काम देख रहे हैं. पूर्व सांसद मूल संगठन में प्रवक्ता हैं तो पत्नी विंग की प्रवक्ता. यानि पति-पत्नी दोनों प्रवक्ता हैं. वैसे, दल के कई अन्य नेता हैं जो आगे की राजनीति को साधने की कोशिश में जुट गए हैं. वे भी पत्नी को आगे करने की जुगत में जुटे हैं.