बिहार की राजनीति में धड़ल्ले से आ रहे पूर्व आईपीएस, राजद का एक तो पीके का 12 ने थामा दामन, पार हुई सुनील की नैया पीछे रह गए पाण्डेय जी

DESK: भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी रहे गुप्तेश्वर पांडेय ने सेवा निवृति से पहले अपनी नौकरी छोड़ कर राजनीति में उतरे, लेकिन बैरंग लौट गए। वहीं सुनील कुमार ने विधानसभा का चुनाव जीता और राज्य सरकार में मंत्री बने। शायद यही वजह है कि आज कई आईपीएस अधिकारी इलाकाई हसरतों की नुमाइंदगी का सपना लिए अलग- अलग दलों से जुड़ रहे हैं। पार्टियाँ भी इन्हें खूब तवज्जो दे रही हैं। प्रशांत किशोर के संगठन जनसुराज से करीब दर्जन भर आईपीएस जुड़े हैं तो राजद ने भी कर्नाटक के पूर्व डीजीपी को पार्टी में हाथों हाथ लिया है।
बिहार में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनता दल ने भी अपनी छवि चमकाने के लिए भारतीय पुलिस सेवा के एक वरीय रिटायर्ड अफसर को पार्टी में दाखिल करा लिया है। प्रशांत किशोर ने छह को शामिल कराया था, अब उनके साथ आने वाले 12 और रिटायर्ड आईपीएस का नाम सामने आ चुका है। अब बड़ा सवाल यह उठता है कि बिहार में रिटायर्ड आईपीएस का मतलब ट्रेनी Indian Political Service हो गया है। क्या सभी आईपीएस से मंत्री बने सुनील कुमार की तरह बिहार की राजनीति की ट्रैक पर फर्राटा भर सकेंगे?
राजद में भी शामिल हुए पुलिस अधिकारी
भारतीय पुलिस सेवा के अवकाश प्राप्त अधिकारी और तमिलनाडु के पूर्व डीजीपी करुणासागर बिहार की सियायत में कदम रखने जा रहे हैं। उन्होंने राजद की सदस्यता ले ली है। करुणासागर तमिलनाडु कैडर के 1991 बैच के अधिकारी हैं। कई साल तक केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के दौरान विभिन्न एजेंसियों में अपनी सेवा दे चुके हैं। लम्बी सेवा के दौरान इन्हें कई पुरस्कारों और सम्मान भी मिल चुके हैं।
जनसुराज की टीम में 8 अवकाश प्राप्त पदाधिकारी
1. जितेंद्र मिश्रा (समस्तीपुर ), सेवानिवृत पुलिस महानिरीक्षक
2. एसके पासवान (वैशाली), सेवानिवृत महानिदेशक
3. केबी सिंह ( सारण ), सेवानिवृत पुलिस उप- महानिरीक्षक
4. उमेश सिंह (बेगूसराय), सेवानिवृत पुलिस महानिरीक्षक
5. अनिल सिंह (सुपौल), सेवानिवृत पुलिस उप- महानिरीक्षक
6. शिवा कुमार झा (सुपौल), सेवानिवृत पुलिस उप- महानिरीक्षक
7. अशोक कुमार सिंह (सिवान), सेवानिवृत पुलिस महानिरीक्षक
8. राकेश कुमार मिश्रा (सहरसा), सेवानिवृत महानिदेशक
बहरहाल बिहार की जटिल राजनीति में ये अफसरशाह खुद को कितना सेट कर पाते हैं यह तो आने वाला समय ही बतायेगा, लेकिन इतना तय है कि इनकी फेहरिस्त लंबी होने जा रही है। और बिहार की राजनीति में ये अपनी क्या राह बनाते हैं और वो कितना सरल रह पाता है यह अगले साल से ही पता लगने लगेगा।