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सोमनाथ के रास्ते पर चले हरिवंश, जदयू की आपत्ति को दरकिनार लोकसभा चुनाव के पहले नीतीश की बढ़ा दी चिंता

सोमनाथ के रास्ते पर चले हरिवंश, जदयू की आपत्ति को दरकिनार लोकसभा चुनाव के पहले नीतीश की बढ़ा दी चिंता

पटना. राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश जब जदयू की आपत्ति को दरकिनार कर नए संसद के उद्घाटन समारोह में शामिल हुए तो उन्होंने सोमनाथ चटर्जी का प्रकरण याद करा दिया. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जदयू को एनडीए से अलग हुए 10 महीने हो चुके हैं. बावजूद इसके जदयू से राज्यसभा सांसद हरिवंश अभी तक राज्यसभा केउप सभापति बने हुए हैं. माना जा रहा था कि नए संसद के उद्घाटन का नीतीश कुमार ने बहिष्कार किया है तो हरिवंश भी उसी रास्ते पर चलेंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. 

वहीं हरिवंश का निर्णय संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार के दौरान वर्ष 2008 में घटी एक घटना की भी याद दिला दी है. यूपीए-1 की सरकार में जब अमेरिका से परमाणु करार करने के मनमोहन सरकार के फैसले के विरोध में वामदलों ने मनमोहन सरकार से समर्थन वापस लिया तो वामदलों ने तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी से भी पद छोड़ने को कहा था. लेकिन सोमनाथ चटर्जी ने ऐसा करने से इंकार कर दिया. इसके बाद वामपंथी दलों ने उन पर तमाम तरह के आरोप लगाये गये जबकि सोमनाथ चटर्जी पूरे सदन की ओर से उनको दी गयी जिम्मेदारियों का निवर्हन कर रहे थे. वे 2009 तक स्पीकर पद पर बने रहे भले ही इस कारण उनके रिश्ते वामदलों के नेताओं से खराब हुए. 

अब हरिवंश भी उसी रास्ते पर हैं. जदयू पहले ही कह चुकी है कि हरिवंश ने उद्घाटन समारोह में शामिल होकर 'अपने पद के लिए अपनी जमीर' बेच दी. जदयू प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा कि 'जब संसदीय लोकतंत्र के इतिहास में एक काला अध्याय लिखा जा रहा था तो हरिवंश ने अपनी उपस्थिति से उस काले इतिहास के पहले पन्ने पर अपना हस्ताक्षर कर दिया है. यह बड़ी चिंता और चिंतन की बात है. हालांकि जदयू के इन आरोपों पर अब तक हरिवंश की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है. 

वहीं राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो हरिवंश पर हमलावर होने का नीतीश की पार्टी का निर्णय लोकसभा चुनाव के पहले जदयू की परेशानी को बढ़ा सकता है. हरिवंश के बहाने ही अब भाजपा को एक ऐसा चहेरा मिल सकता है जिसे आगे कर वह नीतीश की नीतियों और निर्णयों पर सवाल खड़े कर सकती है. हरिवंश की पिछले कई मौकों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी तारीफ कर चुके हैं. ऐसे में भाजपा अब यह कह सकती है कि हरिवंश ने अपनी संवैधानिक जिम्मेदारियों को पूरा करने पर ध्यान केंद्रित रखा जबकि नीतीश उन पर दबाव बनाते रहे. 

पिछले दिनों ही जदयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह भी भाजपा में शामिल हो चुके हैं. अब अगर हरिवंश को भी भाजपा अपने पाले में लाने में सफल रहती है तो यह बीजेपी की लोकसभा चुनाव के पहले नीतीश की पार्टी पर एक बड़ी मनोवैज्ञानिक बढ़त होगी. साथ ही भाजपा यह भी प्रचारित कर सकती है कि नीतीश अपनी मनमानी करते हैं जिस वजह से उनके वरिष्ठ नेता उनका साथ छोड़ते हैं या उनके निर्णयों पर आपत्ति जताते हैं. आने वाले समय के लिए हरिवंश ने नीतीश कुमार के लिए सियासी मुश्किलें बढ़ा दी हैं. 

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