उत्तर प्रदेश में हाई कोर्ट ने लगाई निकाय चुनाव पर रोक, क्या बिहार के नगर निकाय चुनाव पर भी फंसेगा पेंच

पटना. निकाय चुनावों को लेकर जिस तरह की उहापोह की स्थिति बिहार में देखी गई अब कुछ वैसी ही स्थिति उत्तर प्रदेश में उभर आई है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ द्वारा प्रदेश के नगर निकाय चुनाव की अधिसूचना को लेकर जारी आदेश पर कहा गया कि राज्य निर्वाचन आयोग (SEC) को प्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव कराने की अधिसूचना जारी करने पर मंगलवार तक अंतरिम रोक लगा दी। पीठ ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह पांच दिसंबर की अधिसूचना द्वारा जारी मसौदा आदेश के आधार पर आज तक अंतिम अधिसूचना जारी न करे। इस मामले को लेकर सुनवाई पीठ मंगलवार को भी जारी रखेगी।
नगर निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण लागू करने में प्रक्रिया का पालन न करने का आरोप राज्य सरकार पर लगाते हुए दाखिल जनहित याचिका पर न्यायमूर्ति डीके उपाध्याय की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने यह आदेश दिया है। याचिकाकर्ताओं ने पांच दिसंबर, 2022 की अधिसूचना को चुनौती दी है, जिसमें राज्य ने सोमवार शाम तक आरक्षण तय करने पर आपत्ति मांगी थी। दरअसल याचिकार्ताओं ने नगर चुनावों में ओबीसी आरक्षण लागू करने में प्रक्रिया का पालन नहीं करने का आरोप यूपी सरकार पर लगाया है।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि उच्चतम न्यायालय ने इसी साल सुरेश महाजन के मामले में दिए गए फैसले में स्पष्ट तौर पर आदेश दिया था कि स्थानीय निकाय चुनावों में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण जारी करने से पहले तिहरा परीक्षण किया जाएगा। इसके अलावा यह भी था कि अगर तिहरा परीक्षण की औपचारिकता नहीं की जा सकती है तो अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) सीटों के अलावा बाकी सभी सीटों को सामान्य सीट घोषित करते हुए चुनाव कराए जाएंगे।
याचिका में आरोप लगाया है कि शीर्ष कोर्ट के स्पष्ट दिशानिर्देसों के बाद भी राज्य सरकार ने बिना तिहरा परीक्षण के पांच दिसंबर 2022 को ड्राफ्ट नोटिफिकेशन जारी किया है। इसमें ओबीसी के लिए आरक्षित सीटों को भी शामिल किया गया है। जिसके बाद इस याचिका को लेकर यूपी सरकार की ओर से विरोध करते हुए कहा गया है कि चुनाव कराने में देरी होगी। साथ ही पांच दिसंबर की अधिसूचना का एक मसौदा अधिसूचना है। याचिकाकर्ता या फिर जो भी व्यक्ति इससे असंतुष्ट हैं, वह आपत्तियां दाखिल कर सकते हैं। इसी को साबित करने के लिए राज्य सरकार ने कोर्ट से समय मांगा है ताकि वह अपनी बात को पूरी तरह से अदालत के समक्ष रख सकें।
राज्य सरकार की इस दलील से कोर्ट संतुष्ट नहीं हैं और चुनावी अधिसूचना के साथ-साथ पांच दिसंबर 2022 के उक्त मसौदा अधिसूचना पर भी अंतरिम रोक लगा दी है। पीठ का कहना है कि प्रथम दृष्टि से लगता है कि सरकार हाईकोर्ट द्वारा तय की गई प्रक्रिया को अपनाने की मंशा रखती तो पांच दिसंबर को जारी मसौदा अधिसूना में ओबीसी सीटों को शामिल नहीं किया जाता है। कोर्ट ने कहा है कि ओबीसी सीटों को तभी अधिसूचित किया जा सकता है जबकि तिहरा परीक्षण औपचारिकता को पूरा न कर लिया जाए। इस आदेश को कोर्ट ने पारित कर दिया है।
बिहार में भी इसी तरह की स्थिति देखने को मिली थी। यहां तक कि जब मामला पहले हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट तक गया तो कोर्ट ने बिहार सरकार को अतिपिछड़ा आरक्षण के प्रावधानों को तय करने के लिए डेडिकेशन कमिटी गठित करने कहा. अब बिहार में 18 और 28 दिसम्बर को चुनाव होना है। इस बीच, उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव को लेकर कोर्ट में मामला फंसा है। ऐसे में यह देखना होगा कि आगे 20 जनवरी को जब बिहार के चुनाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होती है तो कहीं कोर्ट कोई ऐसा फैसला ना सुना दे जो बिहार सरकार के निर्णय के विपरीत चला जाए.