सीएम नीतीश को घायल कर रहा उनका ही तीर ... बड़ा सवाल आखिर हरिवंश के खिलाफ क्यों नहीं कार्रवाई कर रही जदयू, जानिए क्या है पेच

सीएम नीतीश को घायल कर रहा उनका ही तीर ... बड़ा सवाल आखिर हरिवंश के खिलाफ क्यों नहीं कार्रवाई कर रही जदयू, जानिए क्या है पेच

पटना. राज्य सभा उप सभापति और जदयू सांसद हरिवंश ने  दिल्ली सेवा बिल पेश किए जाने के दौरान वोट नहीं डाला. ऐसे में अब बड़ा सवाल है कि क्या हरिवंश का वोट नहीं डालना जदयू द्वारा जारी व्हिप का उल्लंघन है? साथ ही क्या अब जदयू उनके खिलाफ अनुशानात्मक कार्रवाई कर सकती है. दरअसल, दिल्ली सेवा बिल पेश किए जाने के दौरान हरिवंश सदन में उपसभापति के तौर पर आसन पर थे. नियमो के अनुसार सदन के आसन पर मौजूद सभापति और उपसभापति वोटिंग नहीं करते हैं. हरिवंश के वोटिंग के दौरान आसन पर होने के कारण वे नियमों के तहत ही वोटिंग से करने से बच गए. बावजूद इसके कई सवाल मौजूं हैं. 

दरअसल, दिल्ली सेवा बिल के दौरान जदयू ने एक तीन लाइन का व्हिप जारी कर अपने सांसदों को वोटिंग में शामिल होने के लिए कहा था लेकिन हरिवंश इस व्हिप से बच गए. अब बड़ा सवाल है कि जदयू का अगला कदम क्या होगा. क्या हरिवंश को इसके लिए अनुशासनात्मक कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा? संसदीय प्रणाली के जानकारों के अनुसार जदयू फ़िलहाल ऐसा कुछ नहीं कर सकती है. हरिवंश के सदन में अध्यक्ष के रूप में भूमिका निर्वहन करने से वे जदयू के व्हिप से बच गए हैं. 

राज्यसभा में करीब  8 घंटे तक दिल्ली सेवा बिल पर बहस हुई और इस दौरान कई नेताओं ने चर्चा में भाग लिया. सूत्रों के अनुसार भाजपा को पता था कि हरिवंश के लिए मुश्किलें बढ़ने वाली हैं. नियमों के तहत उन्हें पार्टी के व्हिप को मानना पड़ेगा. अगर वे उसे नहीं मानते तो उनके खिलाफ कार्रवाई होती और उनकी संसद की सदस्यता भी जा सकती थी. सूत्रों का कहना है कि भाजपा ने इसलिए पूरी तैयारी की थी कि कैसे जदयू के तीर से हरिवंश को बचाया जाए. संभवतः इसी कारण सदन की लंबी कार्रवाई के दौरान हरिवंश को वोटिंग के समय सदन के अध्यक्ष के तौर पर कार्य निर्वहन के लिए लगा दिया गया. 

क़ानूनी जानकारों की मानें तो इससे फ़िलहाल हरिवंश के लिए व्हिप मानने की बाध्यता दूर हो गई है. वहीं राजनीतिक सूत्रों का कहना है कि जदयू में हरिवंश को लेकर सबकुछ ठीक नहीं है. पार्टी को हरिवंश की भाजपा से नजदीकियां खल रही हैं. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने काफी भरोसे के साथ बुद्धिजीवी वर्ग से आने वाले हरिवंश को राज्यसभा भेजा था. नीतीश चाहते थे कि हरिवंश वहां प्रभावी तरीके से जदयू के प्रखर वक्ता के तौर पर पार्टी के विचारों को वहां पेश करें. वहीं अब बदले राजनीतिक समीकरण में नीतीश की पार्टी जदयू पिछले एक साल से एनडीए से अलग हो चुकी है. वहीं हरिवंश इसके बाद भी राज्यसभा में उप सभापति बने हैं. अब यही नीतीश कुमार और जदयू को चुभ रहा है कि उनका ही तीर अब उन्हीं को घायल कर रहा है. 

ऐसे में बड़ा सवाल है कि जदयू और नीतीश कुमार अपनी पार्टी के सांसद हरिवंश के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई क्यों नहीं कर रहे. इसके पहले भी हरिवंश ने नए संसद के उद्घाटन स्तर में जदयू के विरोध के बाद भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मंच साझा दिया था. वहीं अब तक वे संसद में उप सभापति बने हुए हैं. नियमों के तहत हरिवंश अपनी जगह सही हैं. लेकिन सवाल जदयू के लिए उठता जा रहा है कि एक दौर में जब इसी तरह जदयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव ने नीतीश कुमार के खिलाफ जाकर भाजपा से नजदीकियां बढ़ाई थी तब उनके खिलाफ पार्टी ने सख्त रुख अपनाया था. शरद यादव की राज्यसभा सदस्यता भी चली गई थी. सियासी हलकों में यही सवाल अब उठ रहा है कि नीतीश कुमार आखिर अब इसी तरह की कार्रवाई हरिवंश के खिलाफ करते हैं. या फिर हरिवंश के मामले में पार्टी अलग रख रखेगी. 


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