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राजद में भारी बवाल... आनंद मोहन छोड़ेंगे लालू का साथ ! RJD को दो टूक- समाजवाद के नाम पर दोगलापन बर्दाश्त नहीं

राजद में भारी बवाल... आनंद मोहन छोड़ेंगे लालू का साथ ! RJD को दो टूक- समाजवाद के नाम पर दोगलापन बर्दाश्त नहीं

पटना. राजनीति में कोई स्‍थायी दुश्‍मन या दोस्‍त नहीं होता. कुछ ऐसा ही पूर्व सांसद और बाहुबली आनंद मोहन के साथ दिख रहा है. लालू यादव के खिलाफ वर्ष 1990 के दशक में मोर्चा खोलने वाले बाहुबली आनंद मोहन के तेवर एक बार फिर तल्ख दिख रहे हैं. जैसे 90 के दशक में लालू यादव पर सवर्ण विरोधी होने का आरोप लगाकर आनंद मोहन ने अपनी राजनीति चमकाई थी एक बार फिर से कुछ वैसा ही दिखने लगा है. इस बार आनंद मोहन की जगह उनके बेटे और राजद विधायक चेतन आनंद ने अपनी ही पार्टी के सांसद मनोज झा के खिलाफ मोर्चा खोला है. चेतन ने यहां तक कहा कि समाजवाद के नाम पर दोगलापन बर्दाश्त नहीं करेंगे. 

दरअसल, चेतन आनंद का राजद के वरिष्ठ नेता के खिलाफ मुखालफत करने की वजह राज्यसभा में मनोज झा द्वारा पढ़ी गई एक कविता है. महिला आरक्षण विधेयक पर चर्चा के दौरान मनोज झा ने महिला आरक्षण में एससी-एसटी और ओबीसी महिलाओं के लिए विशेष कोटा निर्धारित करने की मांग करते हुए ओमप्रकाश वाल्मीकि की कविता पढ़कर बताया था कि कैसे समाज में ठाकुरों (राजपूतों) का वर्चस्व है जिससे दलित और ओबीसी समुदाय को हाशिये पर धकेला जाता है. 

मनोज झा ने सदन में जो कविता पढ़ी थी उसके बोल थे - "चूल्हा मिट्टी का, मिट्टी तालाब की, तालाब ठाकुर का। भूख रोटी की, रोटी बाजरे की, बाजरा खेत का, खेत ठाकुर का। बैल ठाकुर का, हल ठाकुर का, हल की मूठ पर हथेली अपनी, फसल ठाकुर की। कुआं ठाकुर का, पानी ठाकुर का, खेत-खलिहान ठाकुर के, गली-मोहल्ले ठाकुर के फिर अपना क्या?" मनोज झा के इसी बयान पर अब चेतन आनंद ने फेसबुक पोस्ट कर उनके विचारों का विरोध किया है.

चेतन की समाजवादी विचारधारा को चुनौती :अब चेतन आनंद ने इसे लेकर तल्ख अंदाज में कहा है कि "हम "ठाकुर" हैं साहब!! सबको साथ लेकर चलते हैं! इतिहास में सबसे अधिक बलिदान हमारा है! समाजवाद में किसी एक जाती को टार्गेट करना समाजवाद के नाम पर दोगलापन के अलावा कुछ नहीं! जब हम दूसरों के बारे में गलत नहीं सुन सकते तो अपने (ठाकुरों) पर अभद्र टिप्पणी बिल्कुल नहीं बर्दाश्त करेंगे!! #माननीय_संसद_श्री_मनोज_झा_के_विचारों_का_पुरजोर_विरोध!" ऐसे में चेतन आनंद का यह रूप एक तरह से सीधे सीधे लालू यादव की समाजवादी विचारधारा को चुनौती देने की भांति है. एक ओर चेतन आनंद राजद से ही सांसद हैं तो दूसरी और अपनी पार्टी की समाजवादी विचारधारा का विरोध कर रहे हैं. 

क्या लालू से हुआ मोहभंग : आनंद मोहन की पहचान राजपूत नेता के तौर पर रही है. डीएम जी. कृष्णैया की हत्या मामले में वर्षों तक जेल की सजा काट चुके आनंद मोहन की इसी वर्ष रिहाई हुई है. उसके बाद से वे लगातार राजपूतों के बीच सम्पर्क बढ़ाने में लगे हैं. 1990 के दशक वाली अपनी चिरपरिचित शैली में आनंद मोहन कई मंचों पर हुंकार भर चुके हैं. वहीं राजपूतों का एक वर्ग जो आनंद मोहन को राजपूतों का गौरव मानता है उसे चेतन आनंद का राजद के टिकट पर चुनाव जीतना नागवार गुजरा था. ऐसे में आनंद मोहन अपनी जाति के बीच अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखने के लिए लगातार प्रयासरत हैं. 

अब मनोज झा का ठाकुरों का निशाना बनाये जाने का प्रकरण एक ऐसा मुद्दा है जिस पर खुलकर चेतन आनंद ने विरोध जताकर यह संदेश दे दिया है कि वे राजपूतों का अपमान बर्दाश्त नहीं करेंगे. वहीं अगले लोकसभा चुनाव के पहले एक तरह का प्रेशर पोलिटिक्स भी होगा जिसका लाभ आनंद मोहन लेना चाहते हों. ऐसे में चेतन आनंद का अचानक से मनोज झा पर आग बबूला होना भविष्य की राजनीति के लिए एक संकेत माना जा सकता है जिसमें वे लालू यादव और राजद की नीतियों का विरोध करने का संकेत दे रहे हैं. 


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