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1931 में फुट डालो और राज करो के तहत अंग्रेजों ने कराई जातीय जनगणना तो महात्मा गांधी ने किया विरोध,नेहरू से लेकर सोनिया ने भी नहीं दी सहमति..अब बिहार में क्यों हुआ? इनसाइड स्टोरी

1931 में फुट डालो और राज करो के तहत अंग्रेजों ने कराई जातीय जनगणना तो महात्मा गांधी ने किया विरोध,नेहरू से लेकर सोनिया ने भी नहीं दी सहमति..अब बिहार में क्यों हुआ? इनसाइड स्टोरी

फूट डालो और राज करो की नीति के तहत अंग्रेजों ने जातीय जनगणना 1931 में कराई तो कांग्रेस और महात्मा गांधी के भारी विरोध के कारण साल 1931 के बाद जातीय जनगणना कराना अंग्रेजों ने बंद कर दिया.साल 2004 में मनमोहन सिंह की सरकार ने सहयोगी दलों के दबाव में जातीय जनगणना की शुरुआत की तो खुद सोनिया गांधी जातीय जनगणना के रिपोर्ट जारी नहीं होने दिए वहीं वेद प्रताप वैदिक के मेरी जाति हिंदुस्तानी के आगे मनमोहन सरकार को झुकना पड़ा . जिस गांधी ने जातीय जनगणना का प्रखर विरोध किया था उन्हीं के जयंती पर बिहार सरकार ने जातीय जनगणना के आंकड़े जारी किए. कांग्रेस ने स्वतंत्रता संग्राम के समय से हीं जातीय जनगणना का विरोध किया था. खुद सोनिया गांधी भी मनमोहन सरकार के समय इसका विरोध कर चुकीं हैं. उसी कांग्रेस ने हैदराबाद में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में जातीय जनगणना का प्रस्ताव पास किया. इंदिरा गांधी की राजनीति -जात पर न पात पर ,इंदिरा गांधी की बात पर मुहर लगेगी हाथ पर के नारे को राहुल गांधी ने छोड़ते हुए गांधी ,नेहरु ,इंदिरा के सिद्धांतों से विलग कर लियाा है, ये कहना है राजनीतिक पंडितों का. गांधी जी और  कांग्रेस का मानना था कि जातीय गणना से समाज में वैमन्षयता बढ़ेगा. अब कांग्रेस ने उस नीति को छोड़ कर जातीय जनगणना का समर्थन किया है.

बता दें 1931 की जनगणना में बिहार में पिछड़ों की आबादी ज्याद थी. राहुल कहते हैं कि बिहार में 84 फिसदी पिछड़े हैं तो राजनीतिक पंडितों के अनुसार दोषी कौन है? इतने साल बीतने के बाद आखिर उनकी स्थिति में सुधार नहीं हुआ तो क्यों नहीं हुई. बिहार में शुरुआती दसकों तक कांग्रेस की सरकार थी तो इसके लिए जिम्मेवार कौन है. अगर बिहार में कांग्रेस कह रही है कि पिछड़ी जातियों की संख्या ज्यादा है तो  उनके उत्थान कांग्रेस सरकार के समय क्यों नहीं हुआ?

पूर्व प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह पहले कह चुके हैं कि आर्थिक संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों का है अब राहुल कह रहे हैं कि पिछली जातियों को संख्या के आधार पर आरक्षण मिलना चाहिए पर पीएम मोदी ने इस पर सवाल भी खड़ा किया है. पीएम मोदी तो यहां तक कहे कि कांग्मरेस मनमोहन सिंह को क्या जवाब देगी. वहींमोहन सिंह ने साल 2011 में जातीय जनगणना कराई थी उसे खुद अधूरा बताया था. साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट में केंद्र हलफनामा दायर कर कह चुकी है कि आंकड़े अधूरे हैं तो राहुल की मांग है कि उसे मनमोहन सिंह के समय कराए गए जातीय जनगणना की रिपोर्ट जारी की जाए अन्यथा उसे कांग्रेस जारी कर देगी. सवाल ये है कि जब मनमोहन सिंह आंकड़ो को अधूरा बता चुके हैं तो राहुल आखिर अधूरे आंकड़े को जारी करा कर क्या संदेश देना चाहते हैं. 

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि जातीय जनगणना राजनीतिक लाभ के लिए जारी किया गया है. उनका कहना है कि विपक्ष का मकसद हो सकता है कि ओबीसी आरक्षण का कोटा बढ़ाने की मांग आंकड़ों के जरिए किया जाए. आरक्षण का कोटा बढ़ाने की मांग उठाकर लोकसभा चुनाव में ओबीसी वोटों को अपनी तरफ आकर्षित करने का हथियार के तौर पर इस्तेमाल हो.वहीं सीएम नीतीश ने देश की सबसे बड़ी अदालत में कहा था कि जातीय जनगणना नहीं वरन जाति आधारित सर्वे है. राजनीतिक पंडितों के अनुसार नीतीश लालू का मकसद सिर्फ राजनीतिक है. इनका मानना है कि देश की सबसे बड़ी अदालत से आरक्षण बढ़ाने की अनुमति मिले या नहीं मिले लेकिन राजनीतिक लाभ तो मिल हीं सकता है. बहरहाल जातीय जनगणना की रिपोर्ट जारी होने के बाद राजनीतिक बयानबाजी का दौर बिहार में शुरु हो गया है. हर राजनीतिक दल राजनीतिक चुल्हे पर अपनी रोटी सेंकने में लगा हुआ है. इसमें किसकी रोटी लोकसभा चुनाव 2024 में पकेगी यह समय बताएगा.

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