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1955 में छात्र आंदोलन से हिल गयी थी कांग्रेस सरकार, मजबूर नेहरू को आना पड़ा था पटना

1955 में छात्र आंदोलन से हिल गयी थी कांग्रेस सरकार, मजबूर नेहरू को आना पड़ा था पटना

PATNA : भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू देश के लोकप्रिय नेता थे।  1952  के आम चुनाव के बाद देश के लगभग हर राज्य में कांग्रेस की सरकार थी। विपक्ष बेहद कमजोर था। कोई भी दल या नेता कांग्रेस को चुनौती देने की स्थिति में नहीं था। लेकिन देश के महाशक्तिशाली नेता माने जाने वाले नेहरू को पहली बार बिहार में ही प्रबल विरोध का सामना करना पड़ा था।

1955 के छात्र आंदोलन से हिल गयी थी कांग्रेस सरकार

1950 के दशक में पटना विश्वविद्यालय का पूरे देश में बड़ा नाम था। तब इसको पूरब का ऑक्सफोर्ड कहा जाता था। उस समय कॉलेज आने-जाने के लिए सस्ता और सुलभ जरिया बस हुआ करती थी। अगस्त 1955 में श्रीकृष्ण सिंह की सरकार ने बस किराये में 25 पैसे की बढ़ोतरी कर दी। उस समय 25 पैसे का भी बहुत महत्व था। बीएन कॉलेज के छात्रों ने इसका विरोध शुरू किया। जल्द ही पटना विश्वविद्यालय के अन्य कॉलेज के छात्र भी इसमें शामिल हो गये। छात्र बढ़ा हुआ किराया वपास लेने की मांग करने लगे। तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह को बहुत सख्त नेता माना जाता था। सरकार झुकने को तैयार नहीं थी। 13 अगस्त 1955 को पटना विश्वविद्यालय के छात्रों ने एक विशाल विरोध मार्च निकाला। सरकार ने इस छात्र आंदोलन के कुचलने के लिए गोलियां चलवा दी। इस पुलिस फायरिंग में छात्र नेता दीनानाथ पांडेय मारे गये।

मजबूर नेहरू को आना पड़ा था पटना

दीनानाथ पांडेय के मारे जाने के बाद छात्र आंदोलन और विस्फोटक हो गया। अब किराया वापस लेने की मांग पीछे छूट गयी। गोली कांड के लिए जिम्मेदार माने जाने वाल तत्कालीन परिवहन मंत्री के इस्तीफे के लिए छात्र सड़कों पर उतर गये। श्रीकृष्ण सिंह की सरकार इस आंदोलन से घबरा गयी। सरकार को ये चुनौती बहुत भारी लगने लगी। बात दिल्ली तक पहुंची। कांग्रेस को किसी विरोध की आदत नहीं पड़ी थी। मजबूर हो कर नेहरू को पटना आना पड़ा। 30 अगस्त 1955 को नेहरू पटना पहुंचे। गांधी मैदान में सभा की। नेहरू ने इसके लिए प्रेस और कम्युनिस्टों को जिम्मेवार ठहराया। उस समय जय प्रकाश नाराय़ण पटना में ही रहते थे। अगले दिन जेपी ने एक प्रेस बयान जारी कर नेहरू के रवैये की खुलेआम आलोचना की। तत्कालीन परिवहन मंत्री के खिलाफ छात्रों का गुस्सा इतना अधिक था कि 1957 के दूसरे विधानसभा चुनाव में उनको हार झेलनी पड़ी।

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